आज यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom UK) और फ्रांस (France) को पछाड़कर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. इस ऊंचाई का श्रेय भारत की मजबूत घरेलू खपत (domestic consumption), बढ़ते सेवा क्षेत्र (service sector) और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (foreign direct investment) में वृद्धि को दिया जा सकता है. इस उल्लेखनीय आर्थिक विकास के बावजूद, जब महिलाओं के वित्तीय समावेशन (financial inclusion) और लैंगिक अंतर (gender gap) से भारत अभी भी जूझ रहा है. ऐतिहासिक रूप से, भारत में महिलाओं को वित्त तक पहुंच के मामले में बाधाओं और भेदभाव का सामना करना पड़ा है.
वित्तीय समावेशन की ज़रुरत
वित्तीय समावेशन (financial inclusion) महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भारत में, लगभग हर पांच में से एक महिला के पास बैंक खाते तक पहुंच नहीं है. वित्तीय समावेशन को बढ़ाने के उद्देश्य से देश की पहल के बावजूद, खाता उपयोग के साथ-साथ महिलाओं के बीच बचत और ऋण सुविधाओं तक पहुंच के मामले में बड़ी असमानताएं है. विभिन्न बाधाएं महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुंचने में बाधा डालती है, जिनमें पहचान का प्रमाण देने या मोबाइल फोन रखने में कठिनाइयां, बैंक शाखाओं से दूर रहना और बैंक खाते खोलने और उपयोग करने में सहायता की आवश्यकता शामिल है.
बैंकिंग प्रणाली में बदलाव
बोझिल कागजी कार्रवाई और लम्बी प्रक्रिया के कारण पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली महिलाओं से दूर हो गयी है. हालाँकि, फिनटेक कंपनियां टेक्नोलॉजी के ज़रिये वित्तीय सेवाओं में क्रांति ला रही है. डिजिटल इंडिया (Digital India) और यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) जैसी पहल ने स्मार्टफोन के जरिए वित्तीय पहुंच को आसान बनाया है. डिजिटल वॉलेट (Digital Wallet), मोबाइल मनी (Mobile Money) और पीयर-टू-पीयर लेंडिंग (peer-to-peer lending)से फिनटेक इस अंतराल को पाट रहे है और महिलाओं की वित्तीय स्वायत्तता (Financial Independence) बढ़ा रहे है. भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank Of India RBI) का वित्तीय समावेशन सूचकांक (Financial Inclusion Index) भी इसको दर्शाता है, जो की 2017 के 43.4 से बढ़कर 2022 में 56.4 हो गया. इन प्रयासों के माध्यम से, महिलाओं को ऋण (Loan) मिल पा रहे है, जिससे आर्थिक सशक्तिकरण और उद्यमशीलता गतिविधियों में स्वतंत्रता को बढ़ावा मिल रहा है.
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फाइनेंशियल लिट्रेसी है ज़रूरी
वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम (Financial Literacy Programme) महिलाओं को नकदी प्रबंधन (cash management), बचत (savings), बैंकिंग (banking), बीमा (insurance) के बारे में आवश्यक ज्ञान से लैस करके भारत में वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है. परंपरागत रूप से, महिलाएं घरेलू बजट संभालती है और अक्सर गृह उद्योग या व्यवसाय शुरू करने के लिए उत्सुक रहती है. वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम (Financial Literacy Programme) से इन महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाया जा सकता है. इसके अलावा, भारत की डिजिटल वित्तीय क्रांति (India’s digital financial revolution) अलग-अलग महिलाओं तक पहुंचाने में मददगार रहा है. डिजिटल साक्षरता (digital literacy) को बढ़ावा देकर, महिलाएं बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच सकती है. डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म (Digital Platform) की ओर यह बदलाव वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा देता है और महिलाओं को अपने वित्तीय कल्याण की जिम्मेदारी लेने के लिए सशक्त बनाता है.
नीति निर्धारण महिलाओं के पक्ष में
वित्तीय क्षेत्र की नीतियों में यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकता है कि महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक समान पहुंच मिले. ये नीतियां ऋण (credit), भूमि स्वामित्व (land ownership) और विरासत कानूनों (inheritance laws) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को संबोधित करती है. ऐसा ही एक उदाहरण प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Pradhan Mantri Mudra Yojana PMMY) है. इसके तहत महिला उद्यमियों को सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों (micro and small enterprises) के लिए आसान लोन (Loan) मिल जाता है. यह वित्तीय संस्थानों को महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित भी करता है. महिला सशक्तिकरण को सक्षम करने के लिए एक और महत्वपूर्ण उपाय महिलाओं के पास कानूनी संपत्ति अधिकार है. कर्नाटक जैसे राज्यों ने भूमि स्वामित्व में लैंगिक समानता (Gender Equality) को बढ़ावा देते हुए, विवाहित जोड़ों को संयुक्त स्वामित्व जारी करने की नीतियां लागू की है.
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माइक्रोफाइनेंस रहा मददगार
आज माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (microfinance institutions in India) की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. माइक्रोफाइनेंस (microfinance) वित्तीय समावेशन (Financial Inclusions) को बढ़ावा देने और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली कोशिश के रूप में उभरा है. माइक्रोफाइनेंस संस्थान (microfinance institution) महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों को पहचानते है. माइक्रोफाइनेंस (microfinance) योजनाएं भी महिलाओं को उद्यमशीलता के लिए प्रोत्साहित करती है. चाहे वह एक छोटी सी दुकान स्थापित करना हो, कुटीर उद्योग चलाना हो, या अपने समुदायों के भीतर सेवाएँ प्रदान करना हो, इन सबके लिए आवश्यक पूंजी यहीं से आती है. वित्तीय लाभ से परे, माइक्रोफाइनेंस सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देता है, जैसे-जैसे महिलाएं आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदार बनती है, वे सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने के साथ निर्णय लेने की शक्ति हासिल करती है.
वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) केवल बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच के बारे में नहीं है; यह आर्थिक सशक्तिकरण (Financial Empowerment) और सामाजिक परिवर्तन (Social Change) के बारे में है. सांस्कृतिक रूढ़ियां अक्सर इस विचार को कायम रखती हैं कि महिला आर्थिक रूप से निर्भर है या पैसे का प्रबंधन करने में असमर्थ है. जब महिलाएं अपने जैसे अन्य लोगों को बाधाओं को तोड़ते हुए देखती हैं, तो यह आत्मविश्वास जगाता है और उन्हें अपने वित्तीय भविष्य पर नियंत्रण रखने के लिए प्रेरित करता है.
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