भारत में Financial Inclusion हासिल करने में चुनौतियां अभी बाकी हैं...

समान आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए Financial Literacy को हर नागरिक तक पहुंचाना होगा. Financial Inclusion के ज़रिये न सिर्फ गरीबी और लैंगिक असमानता दूर होगी, बल्कि आर्थिक स्थिरता और महिला सशक्तिकरण हासिल करने का लक्ष्य भी पूरा हो सकेगा.

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मिस्बाह
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Financial Inclusion in India

Image: Ravivar Vichar

सरकार और वित्तीय संस्थान लगातार प्रयास कर रहे हैं, ताकि 30% भारतीय गांव जो वित्तीय साक्षरता की कमी और खराब कनेक्टिविटी से जूझ रहे हैं, वहां Financial Services पहुंच सके.

सरकारी पहले दे रहीं Financial Inclusion को बढ़ावा

आजादी के बाद से, सरकारों ने वित्तीय समावेशन को प्राथमिकता दी है. इस प्रयासों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, सहकारी समितियों की स्थापना, प्राथमिकता वाले क्षेत्र को ऋण देना, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD), स्वयं सहायता समूह (women self help groups), NBFC की स्थापना शामिल थी.

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Image Credits: The Economic Times

आज, Financial Inclusion को बढ़ावा देने के लक्ष्य से जन धन योजना और मुद्रा ऋण योजना जैसी सरकारी पहले लागू की गई हैं. 2014 में शुरू की गई जन धन योजना में 2022-23 तक 486.5 मिलियन बैंक खाते खोले गए, जिनमें 1.98 लाख करोड़ रुपये का cumulative deposit balance था. इसके बाद 2015 में छोटे उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए मुद्रा ऋण पहल की गई, जिससे वित्त वर्ष 23 तक 3.82 लाख करोड़ रुपये का बकाया ऋण दिया गया.

Microfinance के बाद भी Credit Gap मौजूद

लेकिन वित्तीय समावेशन केवल बैंकिंग के बारे में नहीं है; यह व्यापक है, इसमें बीमा, पेंशन, बचत खाते, क्रेडिट और बहुत कुछ शामिल है. और जब इस नजरिए से देखा जाए तो ये योजनाएं काफी नहीं हैं.

माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI) देश के कोने कोने तक फाइनेंशियल इन्क्लूशन को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन अभी भी क्रेडिट अंतर बना हुआ हैं. Digital Lending Platforms भी गति पकड़ रहे हैं. इसके साथ ही, ज़्यादा ऋणग्रस्तता और अनुपालन की कमी का डर बना हुआ है.

Self Help Groups से जुड़ महिलाएं बन रहीं उद्यमी

महिलाओं को आर्थिक आज़ादी हासिल करने में स्वयं सहायता समूह (SHG women) मॉडल सफल साबित हो रहा है.  SHG के बीच सूक्ष्म उद्यमों में बदलने की गति बढ़ रही है. लेकिन, ये स्वयं सहायता समूह अक्सर सीमित पहुंच वाले छोटे उद्यम शुरू करते हैं. एक ही तरह के ज़्यादा उद्यम ज़रुरत से ज़्यादा कम्पीटीशन बढ़ाकर सदस्यों की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.

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Image Credits: Outlook India

बीमा और म्यूचुअल फंड इन क्षेत्रों में पकड़ हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. क्यूरेटेड सूक्ष्म-बीमा उत्पादों की कमी की वजह से चिट फंड जैसे जोखिम भरे विकल्प तेज़ी से लोगों को नुक्सान पंहुचा रहे हैं.

Digital Gap को दूर करना ज़रूरी

ग्रामीण भारत में डिजिटल गैप एक महत्वपूर्ण चुनौती है. डिजिटल विभाजन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मौजूद है. शहरी आबादी के 67% की तुलना में केवल 31% ग्रामीण आबादी इंटरनेट का उपयोग करती है.

रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारतनेट जैसी सरकारी योजनाएं, जिनका लक्ष्य ग्रामीण भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी सुधारना है, प्रभावी परिणाम देने में विफल रही हैं.

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Image Credits: WFP Trust

Financial Literacy से बढ़ेगा Financial Inclusion

अन्य चुनौतियों में वित्तीय सेवाओं तक सीमित पहुंच, वित्तीय साक्षरता में कमी, बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी से जुड़ी बाधाएं, cash only transactions और सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों की वजह से लैंगिक असमानता बनी हुई है.

समान आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए Financial Literacy को हर नागरिक तक पहुंचाना होगा. Financial Inclusion के ज़रिये न सिर्फ गरीबी और लैंगिक असमानता दूर होगी, बल्कि आर्थिक स्थिरता और महिला सशक्तिकरण हासिल करने का लक्ष्य भी पूरा हो सकेगा.

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