भारत में दिन-ब-दिन बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों (environmental challenges in India) के बीच स्थानीय महिलाएं मोर्चा संभाल रही हैं. लोकल समस्याओं का लोकल समाधान तलाशने में महिलाओं का ज्ञान, समझ, और अनुभव कारगर साबित हो रहा है. महिला क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स (climate activism) की लम्बी लिस्ट में, बात करते हैं उन तीन उल्लेखनीय Female Climate Activists की जिन्होंने अपनी 'जल, जंगल, जमीन' को बचाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डालदी.
Mildred लड़ी Kudankulam nuclear power project के ख़िलाफ़
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मिल्ड्रेड, साधना मीना और रोज़ ज़ाक्सा environmental defenders बन गई, जिन्होंने पर्यावरण और अपने लोगों के लिए खतरा पैदा करने वाली बड़े पैमाने की परियोजनाओं को चुनौती दी.
तमिलनाडु के इदिनथाकराई की रहने वाली मछुआरी महिला मिल्ड्रेड, Kudankulam nuclear power project के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का प्रमुख चेहरा बनी. इस प्रोजेक्ट से होने वाले नुकसानों से समुद्र और समुदाय की आजीविका को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई, जिसकी उन्हें कीमत चुकानी पड़ी. उनके खिलाफ 127 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसके बॉस वह पासपोर्ट तक नहीं बनवा सकती.
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Zinc Mining के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती Saadhna Meena
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राजस्थान में पर्यावरण कार्यकर्ता साधना मीना को जिंक माइनिंग के ख़िलाफ़ अपने अभियान में शारीरिक हमलों और वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ा . स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार में जन्मी और कम्युनिस्ट संबंधों वाले परिवार में शादी करने वाली मीना अपने समुदाय के अधिकारों के प्रति न सिर्फ जागरूक हैं, पर उनकी वकालत करने से पीछे नहीं हटती.
खनन की वजह से प्रदूषित जल निकाय, ग्राउंडवॉटर लेवल में गिरावट और कृषि उत्पादकता में कमी के बाद उन्होंने लोगों को एकजुट किया. एक्टिविज्म की वजह से अपने परिवार के भीतर विरोध और मतभेद का सामना करने के बावजूद, मीना ने खनन कार्यों से होने वाले पर्यावरणीय खतरों के खिलाफ अपने समुदाय से समर्थन जुटाना जारी रखा है.
Adivasi Activist Rose Xaxa ने लड़ी 'ज़मीन' कि लड़ाई
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झारखंड की Adivasi Activist रोज़ ज़ाक्सा, स्थानीय समुदायों के लिए वन अधिकारों (forest rights) को सुरक्षित करने के लिए अथक प्रयास करती हैं. 2001 में, ज़ाक्सा एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में गुमला में चर्च द्वारा संचालित गैर सरकारी संगठन ग्राम उत्थान में शामिल हुई. काम के दौरान वह कई गांवों में गई. उनकी ज़िम्मेदारियां स्वयं सहायता समूह (self help groups) बनवाने से लेकर सिलाई कक्षाएं संचालित करने तक थीं.
2008 में, जब वन अधिकार अधिनियम, या FRA लागू किया गया, तो उन्होंने गुमला और उसके पड़ोसी जिलों में वन अधिकार कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया. उनकी जिम्मेदारियों में आदिवासी लोगों को कानून के तहत उनके अधिकारों और उन्हें सुरक्षित करने की प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित और प्रशिक्षित करना शामिल था.
उनकी वकालत ने अधिकारियों और निगमों दोनों पर दबाव डाला, जिससे पारंपरिक भूमि पर स्थानीय समुदायों के अधिकार सुरक्षित हो सके.
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Female Climate Activists बना रहीं स्वस्थ और स्वच्छ भविष्य
इन पर्यावरण रक्षकों द्वारा सामना किए गए संघर्ष बड़े पैमाने की परियोजनाओं से प्रभावित समुदायों द्वारा अनुभव की गई चुनौतियों को दर्शाते हैं. विकट बाधाओं के बावजूद, मिल्ड्रेड, मीना और ज़ाक्सा अपने उद्देश्य में दृढ़ हैं. उनकी कहानियां भारत में environmental activism की जटिलताओं और खतरों पर प्रकाश डालती हैं. उनका बलिदान सभी के लिए स्वस्थ और स्वच्छ भविष्य की दिशा में अहम कदम है. ये female Climate Activists इस बात का सबूर हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में महिलाओं का ज्ञान, अनुभव, और योगदान महत्वपूर्ण है.