Climate Change Fighters के रूप में उभर रहीं ग्रामीण महिलाएं

जिस समय दुनिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से कृषि पर नकारात्मक प्रभाव से जूझ रही है, भारत में ग्रामीण महिलाएं चुपचाप टिकाऊ और जलवायु-लचीली खेती की दिशा में आंदोलन का नेतृत्व कर रही हैं. 

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मिस्बाह
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Climate Change Fighters

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एक ओर जहां जलवायु परिवर्तन पारंपरिक कृषि पद्धतियों को चुनौती दे रहा है, वहीं रमा देवी जैसी ग्रामीण महिलाएं खेती के ज़रिये क्रांति का नेतृत्व कर रही हैं. आंध्र प्रदेश में स्वयं सहायता समूह (self help groups) की प्रमुख देवी, बदलती जलवायु में खेती के व्यावहारिक पहलुओं को संबोधित करते हुए, जलवायु-लचीले कृषि (climate-resilient agriculture) कौशल के साथ महिला किसानों को सशक्त बना रही है.

वीडियो के ज़रिये 'प्राकृतिक खेती' सीखा रहा समूह 

34 वर्षीया देवी साथी महिला किसानों (women farmers) को सही तरीके से खाद तैयार करने, जमीन पर कई तरह की फसलें उगाने, और  रासायनिक उर्वरक न इस्तेमाल करने की सलाह दे रही हैं.

 देवी, अन्य महिलाओं के साथ, ग्रामीण महिला समूहों का गठन करके लिंग मानदंडों को तोड़ना चाहती हैं जो जलवायु-अनुकूल फसलों (climate-friendly crops) और तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए गैर-लाभकारी संस्थाओं और स्थानीय सरकारों के साथ सहयोग करते हैं.

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वीडियो के ज़रिये देवी के समूह ने खाद बनाने का तरीका दिखाया और 'प्राकृतिक खेती' के बारे में जागरूकता फैलाई है. उन्होंने सिंथेटिक कीटनाशकों और उर्वरकों से बचने और इसकी बजाय गोबर का इस्तेमाल करने के बारे में बताया है.

उनके वीडियोज और जागरूकता के ज़रिये गांव के 786 किसानों में से 312 कपास, धान और आम के खेतों में प्राकृतिक पद्धतियां अपना चुके हैं.

75% ग्रामीण महिलाएं कृषि का हिस्सा, सिर्फ 12% के पास जमीन

“पुरुष इस तरह की जागरूकता नहीं कर सकते. उनकी प्राथमिकता सिर्फ पैसे कमाना है. महिलाओं में धैर्य बहुत अधिक होता है. मुझे यह काम करके खुशी महसूस हो रही है.'' देवी ने बताया. 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की 75% से ज़्यादा ग्रामीण महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं, लेकिन उनमें से केवल 12% के पास ही जमीन है. ज़्यादातर महिलाएं खेत मजदूर बनकर या परिवार के स्वामित्व वाले खेतों में अवैतनिक श्रमिक के रूप में काम करती हैं.

महिला स्वयं सहायता समूह सस्टेनेबल प्रथाओं को दे रहे बढ़ावा 

महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी गेम चेंजर साबित हो रही है. बैंक ऋण तक पहुंच के साथ, इन समूहों को वित्तीय ताकत मिलती है, जिससे परिवारों के भीतर निर्णय लेने में उनका प्रभाव बढ़ता है.

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लाखों लोगों को रोजगार देने वाला भारत का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहा है. प्राकृतिक खेती परियोजनाएं एक प्रतिक्रिया के रूप में उभर रही हैं, और महिलाओं का समूह किसानों को टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में सहायक है.

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टॉप 3 Greenhouse Emitters में भारत भी शामिल 

2021 संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में कृषि, कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 17% का योगदान देता है, जिसमें ब्राजील, इंडोनेशिया और भारत तीन बड़े एमिटर्स हैं.

देश में 75% से ज़्यादा ग्रामीण महिलाएं कृषि में काम करती हैं, लेकिन केवल 12% के पास जमीन है. इसके बावजूद, वे विलुप्त हो रहीं फसलों को पुनः जीवित कर रहीं है, नई तकनीक पेश कर रही हैं, और पारंपरिक मानदंडों को चुनौती दे रही हैं.women farmers

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देवी जैसी महिलाएं निडर होकर अधिक न्यायसंगत और सशक्त भविष्य की दिशा में काम कर रही हैं.

जिस समय दुनिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से कृषि पर नकारात्मक प्रभाव से जूझ रही है, भारत में ग्रामीण महिलाएं चुपचाप टिकाऊ और जलवायु-लचीली खेती की दिशा में आंदोलन का नेतृत्व कर रही हैं. 

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