3 दिसंबर, 1984 को Union Carbide Pesticide Plant के स्टोरेज टैंक से 27 टन से ज़्यादा जहरीली गैस मध्य Bhopal में लीक हो गईं. 8,000 लोगों की मौत हो गई. जीवित बचे लोगों और उनकी आने वाली पीढ़ियों पर विनाशकारी प्रभाव अभी जारी है (Bhopal Gas tragedy).
Meet Rashida Bee और Champa Devi Shukla ने की न्याय के लिए आवाज़ बुलंद
बीमारी, लाचारी, और मौत से चारों और पसरे सन्नाटे के बीच 2 महिलाओं ने न्याय मांगने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की. रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करने वाले अंतर्राष्ट्रीय अभियान के पीछे प्रेरक शक्ति बनीं (women activists on bhopal gas tragedy).
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"हम अभी भी बच्चों को बिना होंठ, नाक या कान के पैदा होते हुए देख रहे हैं. कभी-कभी नवजात बच्चों के पूरे हाथ ही नहीं होते. महिलाओं के बीच गंभीर प्रजनन संबंधी समस्याएं आम हो गई हैं, ” रशीदा बी ने बताया, जो गैस के संपर्क में आने से सांस और दृष्टि संबंधी समस्याओं से जूझ रही हैं.
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10 देशों के 1500 से ज़्यादा लोगों से मिला समर्थन
आपदा के बाद लॉन्ग-टर्म स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुईं हैं. ब्यूरोक्रेसी द्वारा प्रभावित मुआवजे की प्रक्रिया में देरी और यूनियन कार्बाइड के उत्तराधिकारी Dow Chemicals के खिलाफ कार्यवाही न होने से पीड़ित निराश हो गए.
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जवाब में, बी और शुक्ला ने जीवित बचे लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, साइट की सफाई और प्रभावित परिवारों के लिए सहायता की मांग करते हुए भूख हड़ताल कर, वैश्विक अभियान शुरू किया. उनकी इस मुहीम को दुनियाभर के 10 देशों से 1500 से ज़्यादा लोगों का समर्थन मिला.
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'झाड़ू मारो डॉव को' अभियान किया शुरू
कई महिलाओं ने मिलकर 'झाड़ू मारो डॉव को' अभियान शुरू किया. डॉव के शेयर की कीमतों में गिरावट आई, जो कॉर्पोरेट जवाबदेही पर जमीनी स्तर के आंदोलनों के प्रभाव को दर्शाता है.
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स्वास्थ्य चुनौतियों, गरीबी और सामाजिक कलंक का सामना करने के बावजूद, बी और शुक्ला डटी रहीं. उनकी साझेदारी ने धार्मिक मतभेदों को दूर करते हुए समाज में महिलाओं की अहम भूमिका पर ज़ोर दिया. दोनों कार्यकर्ताओं ने कानूनी लड़ाई लड़ी, यूनियन कार्बाइड और डॉव के खिलाफ मुकदमा दायर किया और अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों से समर्थन हासिल किया.
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अमेरिकी अपील न्यायालय में मिली जीत
2003 में, बी और शुक्ला ने मुंबई और नीदरलैंड में डॉव कार्यालयों में टॉक्सिक वेस्ट सैम्पल्स पेश किए. पूरे अमेरिका में 10 से ज़्यादा शहरों के दौरे किए. जिसकी वजह से मिशिगन में डॉव की शेयरहोल्डर मीटिंग में विरोध प्रदर्शन, न्यूयॉर्क के वॉल स्ट्रीट पर 12 दिनों की भूख हड़ताल और 25 कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों ने रैलियां आयोजित कीं. हजारों लोग यूनाइटेड किंगडम, चीन, स्पेन, थाईलैंड और कनाडा में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए.
1999 में, बी और शुक्ला दूसरे आपदा पीड़ितों और वकालत संगठनों के साथ यूनियन कार्बाइड के खिलाफ कार्रवाई मुकदमे में शामिल हुई. अमेरिकी अपील न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड की अपील को खारिज करते हुए, पीड़ितों के पक्ष में फैसला सुनाया.
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इस जीत के बाद, अमेरिका में कांग्रेस के आठ सदस्यों ने मुकदमे का समर्थन करते हुए अमीकस ब्रीफ दायर किया; कांग्रेस के 18 अन्य सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से डॉव से भोपाल आपदा पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने का आह्वान किया. अपने निडर और लगातार प्रयासों के लिए बी और शुक्ला ने 2004 Goldman Environmental Prize जीता.
रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला को बेसहारा पीड़ित के रूप में पहचान बनाना मंज़ूर नहीं था, उन्होंने लीडरशिप का रास्ता अपनाया, और बेबाकी से ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर न्याय मांगा. न्याय की उनकी निरंतर खोज ने पर्यावरणीय आपदाओं के लिए निगमों को जिम्मेदार ठहराने में जमीनी स्तर की सक्रियता की भूमिका पर जोर दिया.
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