कौशल और दृढ़ संकल्प के रोमांचक प्रदर्शन में, भारतीय महिला हॉकी टीम ने रांची में आयोजित फाइनल मैच में जापान को 4-0 से हराकर एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीता (indian female players).
Image Credits: Salima Tete/Instagram
सलीमा टेटे ने एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में निभाई अहम भूमिका
झारखंड के सिमडेगा की युवा फॉरवर्ड सलीमा टेटे (about Salima Tete in Hindi) ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने फाइनल में दो गोल किये और उन्हें 'प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' चुना गया.
सलीमा टेटे ने बताया, "मेरे पास हमेशा गति थी. लेकिन जब मैं जूनियर टीम में आई तभी मैंने सीखा कि इसे अपने फायदे के लिए कैसे इस्तेमाल करना है."
Image Credits: Salima Tete/Instagram
यह भी पढ़ें : 'खेल-खेल' में बदलाव
पिता ने कराया हॉकी से परिचित
टेटे का जन्म और पालन-पोषण झारखंड के सिमडेगा के बड़कीछापर गांव में हुआ. उनके पिता सुलक्षण एक शौकीन हॉकी खिलाड़ी (hockey player) थे और उन्होंने उन्हें कम उम्र में ही इस खेल से परिचित करा दिया था. टेटे अक्सर अपने पिता को दूसरे गांवों मैच खेलते हुए देखती थी. अपनी पिता से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी खेल में रूचि लेना शुरू कर दिया.
“हमारे पास मिट्टी का मैदान था जिस पर हम खेला करते थे. मैच से पहले हम वहां जल्दी जाकर पत्थर हटाया करते थे. ढीली मिट्टी पर हम नंगे पैर खेला करते थे.” सलीमा ने बताया .
Image Credits: Salima Tete/Instagram
चुनौतियों का किया सामना
टेटे खेलने के लिए जूते या उचित हॉकी स्टिक खरीदने में असमर्थ थी. यह चुनौतियां उन्हें खेलने से रोक न पाईं. वह अक्सर हॉकी स्टिक की जगह लकड़ी की छड़ी का इस्तेमाल करती थी और अपने गांव में मिट्टी के मैदान पर नंगे पैर खेलती थी.
Image Credits: Salima Tete/Instagram
12 साल की उम्र में, टेटे की प्रतिभा को पहचाना गया और उन्हें सिमडेगा में एक अकादमी में शामिल होने के लिए चुना गया. वह तेजी से रैंकों में उभरीं और जल्द ही जूनियर नेशनल जीतने वाली झारखंड टीम का हिस्सा बन गईं. 2016 में, टेटे ने भारतीय महिला हॉकी टीम (Indian women's hockey team) के लिए सीनियर डेब्यू किया.
टीम की उल्लेखनीय जीत निश्चित रूप से देश भर में और अधिक लड़कियों को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करेगी.
यह भी पढ़ें : हॉकी वाली सरपंच