उत्तराखंड की कला संजोने वाली ऐपण गर्ल- मीनाक्षी खाटी

ऐसी ही एक और कला को संजोए रखा है हमारी ऐपण गर्ल ने. Minakshi khati नाम है इस लड़की का जिसने कुमाउनी कल्चर की कला को उत्तराखंड के हर घर में जीवित रखा है.

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रिसिका जोशी
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भारत में हर घर में कुछ ना कुछ ऐसा अक्सर देखने लायक मिल ही जाएगा आपको! चाहे फिर वो खाने के अनोखे व्यंजन हो या कोई कला. अपनी दादी, नानी, परनानी, की कला को संजोए रखना भारत की संस्कृति में शामिल है. ऐसी ही एक और कला को संजोए रखा है हमारी ऐपण गर्ल ने. मीनाक्षी खाटी (aipan girl minakshi khati) नाम है इस लड़की का जिसने कुमाउनी कल्चर की कला को उत्तराखंड (Uttarakhand news) के हर घर में जीवित रखा है.

Aipan Girl मीनाक्षी खाटी पारंपरिक कला को दे रहीं पहचान

24 साल की इस लड़की ने अपनी दादी और मम्मी से यह कला सीखी और आज पूरे देश में नाम कमा रही है. इस कला में मीनाक्षी की यात्रा तब शुरू हुई जब वह सिर्फ छह साल की थी. उत्तराखंड के रामनगर में रहती है मिनाक्षी (Minakshi khati). आज उनकी यह कला (Uttarakhand news hindiउत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में कई लोगों के लिए आजीविका में बदल गई है. ऐपण कुमाऊंनी समुदाय के बीच एक लोक कला है. माना जाता है कि यह एक दैवीय शक्ति का आह्वान करती है जो अच्छे भाग्य की शुरुआत और नकारात्मकता को दूर करती है.

minakshi khati

Image Credits: Rajya Sameeksha

ऐपण की कला का उपयोग दीवारों और फर्शों पर  designs बनाने में किया जाता है. इसमें "गेरू", जो जंगलों से प्राप्त लाल मिट्टी का रंग है, और चावल का स्टार्च, जिसे स्थानीय रूप से "बिस्वार" के रूप में जाना जाता है, शामिल है. ऐपण की नींव "गेरू" मिट्टी की तैयारी से शुरू होती है, इसके बाद "बिस्वार" पेस्ट का उपयोग करके विभिन्न डिजाइन तैयार किए जाते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में ऐपण को "अल्पना" या "अर्पण कला" के नाम से मान्यता प्राप्त है. 

मीनाक्षी ने ऐपण कला के इतिहास और उत्पत्ति पर शोध करने के लिए तीन साल समर्पित किए. उन्होंने पद्मश्री यशोधरा मठपाल जैसे प्रसिद्ध इतिहासकारों और विद्वानों से मार्गदर्शन भी लिया है. उनकी खोज से पता चला कि ऐपण कला की जड़ें चंद राजवंश से जुड़ी हैं, जो 8वीं शताब्दी के आसपास की है. प्राथमिक उद्देश्य क्षेत्र में युवाओं के बीच इस कला को लोकप्रिय बनाना था.

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Image Credits: Architectural digest india

Self help groups को सीखा रही ये कला

2018 में मीनाक्षी ने ऐपण के साथ अपना सफर शुरू किया. उन्होंने उत्तराखंड में 3,451 व्यक्तियों और भारत और विदेश दोनों में महिला स्वयं सहायता समूहों (Self help groups) सहित 5,241 ऐपण प्रशिक्षकों को भी ऑनलाइन प्रशिक्षण प्रदान किया है. उनकी प्रशिक्षण विधियों में सोशल मीडिया, स्कूलों में आयोजित कार्यशालाएँ और प्रदर्शनियाँ शामिल हैं.

उन्होंने दिसंबर 2019 में "मीनाकृति - ऐपण प्रोजेक्ट" नामक एक परियोजना भी शुरू की. उत्तराखंड में 4,000 से अधिक महिलाओं ने वित्तीय स्वतंत्रता (Financial literacy in shgs) हासिल करते हुए ऐपण को सफलतापूर्वक एक स्थायी आजीविका में बदल दिया है. वर्तमान में, उत्तराखंड सरकार ऐपण कला को सक्रिय रूप से समर्थन और बढ़ावा देती है. मीनाक्षी के मुताबिक ऐपण कला का सालाना कारोबार 40 लाख रुपये से ज्यादा हो गया है.

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Image Credits: architectural design india

प्रशंसा और मान्यता

ऐपण कला को संरक्षित करने के प्रति मीनाक्षी की अटूट प्रतिबद्धता ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए, जिनमें महिला मातृशक्ति पुरस्कार, मां नंदा शक्ति पुरस्कार, वीर बालिका, कल्याणी सम्मान और 2021 का सर्वश्रेष्ठ उद्यमी पुरस्कार शामिल हैं. दिसंबर 2022 में, उन्हें देहरादून के राजभवन में एक कार्यक्रम के दौरान (president of india) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ तीन मिनट की बातचीत में शामिल होने का सम्मान मिला. उन्होंने राष्ट्रपति को अपने नाम की एक पट्टिका भी भेंट की.

ऐपण कला के प्रति मीनाक्षी के जुनून ने न केवल इस पारंपरिक कला को सुरक्षित रखा है, बल्कि इसे उत्तराखंड में कई लोगों के लिए आजीविका के साधन में भी बदल दिया है. वे एक मिसाल है हर उस महिला के लिए जो अपने जीवन को बदलने के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार है.

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