पथरीली ज़मीन पर बिछी हरियाली की चादर
सिंगरौली (Singarauli) के आदिवासी (Tribal) बहुल इलाकों में तस्वीर बदली-बदली सी है. कुछ साल पहले तक जिस ज़मीन को पथरीली मान कर अपनी किस्मत समझ लिया. उन बंज़र ज़मीनों में हरियाली छाई हुई है. यह कहानी है देवसर (Deosar) ब्लॉक के सरौंधा (Saraundha) की. इस इलाके में डेढ़ हजार से ज्यादा किसान दीदियों की चर्चा देश में हो रही. जिन्होंने मेहनत कर अपनी ज़मीन को संवार दिया.
किसान दीदियों की बनी नई पहचान
सरौंधा (Saraundha) की रहने वाली किसान दीदी रामकली बताती है- "मेरे पास तीन एकड़ ज़मीन थी. आधे में पथरीली हिस्सा. एक बार जैसे-तैसे फसल मिलती. कमाई तो थी ही नहीं. घर चलाना तक मुश्किल था. गांव में समूह से जुड़ी.अफसरों ने साथ दिया. आज मेरा खेत देखने सब आते हैं. मैं हर सीज़न में 20 हजार का मुनाफा कमा रही. बच्चे भी अब अच्छे स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे.मैं शान से परिवार के साथ जीती हूं."
इसी गांव की धनोवा दीदी कहती है- " हमारे परिवार ने तो आस ही छोड़ दी थी. मन में आता था ज़मीन गिरवीं रख दें. कोई कमाई नहीं होती.अब एकदम बदल गया. खेत में काम मेहनत के बाद भी अच्छी फसल हो रही."
सरौंधा गांव की रामकली जिनके चेहरे पर मुस्कान बिखर गई (Image Credit: Ravivar Vichar)
ट्रेनिंग से ट्रेन हुई किसान दीदियां
मध्य प्रदेश (MP) के सिंगरौली जिले के सरौंधा में आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के समूह (SHG) से जुड़ी महिलाओं को गैर सरकारी सामाजिक संस्था (NGO) 'प्रदान' (Pradan) का साथ मिला. देखते ही देखते यहां किसान दीदियों और उनके परिवार की आर्थिक आर्थिक स्थिति में बदलाव आ गया. 'प्रदान' संस्था के अनुसार- "इस इलाके में हमारे लिए बड़ी चुनौती थी. देवसर ब्लॉक के सरौंधा में दो संकुल ग्राम संगठन (CLF) हैं. इसमें चेतना संकुल संगठन और तिनगुड़ी शामिल हैं. हमने किसान दीदियों और उनके परिवार को खेती करने के लिए संतोष सिन्हा जैसे एग्रीकल्चर एक्सपर्ट से ट्रेनिंग दिलवाई."
थ्री लेयर खेती से चमकी किस्मत
सरौंधा (Saraundha) में जहां एक सीज़न में भी फसल लेना मुश्किल था,वहां एडवांस खेती से मुनाफा लगातार मिलने लगा. किसान परिवारों को थ्री लेयर फार्मिंग (Three Layer Farming) खेती का मतलब सिखाया. ज़मीन के पथरीले हिस्से में बेल वाली लौकी, गिलकी, करेला जैसी सब्जियां लगवाईं. सेकेंड लेयर में गोभी, पालक, मैथी जैसे काम हाइट की सब्जियों को बोने की सलाह दी. एक हिस्से में ज़मीन के अंदर से मिलने वाली सब्जियां हल्दी, आलू और अदरक को बोना सिखाया. इस थ्री लेयर मेथड से किसान दीदियों की ज़िंदगी ही बदल गई.
सरौंधा गांव में रामकली का खेत जहां थ्री लेयर फसल दिखाई दे रही (Image Credit: Ravivar Vichar)
क्वालिटी सीड का कमाल
इस योजना में जहां ट्रेनिंग काम आई वहीं क्वालिटी सीड का कमाल भी देखने को मिला. 'प्रदान' संस्था सिंगरौली में किसान बहनों के खेत में बुआई के समय क्वालिटी सीड उपलब्ध करवाए. आदिवासी ब्लॉक को मिले फंड का सही उपयोग किया. 30 हजार रुपए के फंड में अब तक 20 हजार रुपए खर्च किए. शेष रुपए की मदद और की जाएगी. जिले में छह एक्ज़ीक्युटिव मॉनिटरिंग कर रहे.
जिले के ब्लॉक में कोर्डिनेशन से योजना का लाभ किसान दीदियों को मिला. आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) मगलेश्वर सिंह का कहना है- "सिंगरौली में किसान परिवारों ख़ास कर महिला किसानो को ख़ास प्रोत्साहित किया. ट्राइबल योजना के लाभ ने महिलाओं की पारिवारिक स्थिति को पूरी तरह बदल दिया."
किसानी पर ख़ास फ़ोकस
आदिवासी जिलों में पिछड़े और गरीब किसानों को शासन ने ख़ास फोकस किया.इसमें खेतों में ही मजदूरी करने वाली महिलाओं को आत्म सम्मान की जिंदगी जी सकें, इसके प्रयास किए जा रहे.यहां सात जिलों के आठ आदिवासी ब्लॉक में उन्नत किसानी और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए संस्था काम कर रही है. स्वयं सहायता समूह से जुड़ी दीदियों में बहुत उत्साह है. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLM) के स्टेट प्रोजेक्ट मैंनेजर (SPM) मनीष पंवार कहते है- "आजीविका मिशन के समूहों में महिलाओं को खास ट्रेनिंग देकर सक्षम बनाया जा रहा.इस समय सात जिलों के आठ ब्लॉक में विशेष ट्रेनिंग से सैकड़ों किसान दीदियों के आर्थिक हालत बदल गए."