भारत में डीनोटिफाइड ट्राइब्स की संख्या करीब 150 है (number of denotified tribes in India), वहीं घुमंतू जनजातियों की जनसंख्या में लगभग 500 समुदाय शामिल हैं (total migrant tribes in India). सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर रह रहे ये लोग मुख्य धारा से अलग होने की वजह से कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं.
दीपा पवार ने NT-DNT के उत्थान को बनाया जीवन का लक्ष्य
दीपा पवार (Deepa Pawar) ने इन समुदायों के उत्थान को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया. 2015 में अनुभूति चैरिटेबल ट्रस्ट (Anubhuti Charitable Trust) शुरू किया. अनुभूति चैरिटेबल ट्रस्ट मुंबई के स्लम क्षेत्रों (Mumbai slum areas) में आदिवासी और प्रवासी समुदायों (tribal and migrant communities) में युवाओं की प्रगति (youth development) के लिए काम करता है.
Image Credits: Deepa Pawar/Linkedin
अच्छे से समझती है अपने समुदाय की परेशानियां
राजस्थान (Rajasthan) की लोहार जनजाति (Lohaar tribe) से आने वाली दीपा का परिवार, समुदाय के लोगों के साथ, 80 के दशक में महाराष्ट्र (Maharashtra) चले गए. उनकी जनजाति आज भी शिक्षा, आय सुरक्षा और जागरूकता की कमी जैसी कई सामाजिक बाधाओं (social challenges faced by tribes in Indian) का सामना कर रही है.
शिक्षा को बनाया बदलाव का ज़रिया
बचपन में दीपा ने शिक्षा का लक्ष्य तय कर, बेहतर ज़िन्दगी का ख्वाब देखा. पढ़ाई में रुचि और अपने समुदाय के प्रति चिंता ने उन्हें 14 साल की उम्र में काम करने के लिए प्रेरित किया. सामाजिक क्षेत्र में दो दशकों के काम, फ़ेलोशिप और डिग्री के बाद, उन्होंने कई पुरस्कार (Deepa Pawar achievements) जीते, जिनमें सबसे होनहार व्यक्तिगत श्रेणी में मार्था फैरेल पुरस्कार (Martha Farrell Award) भी शामिल है.
महाराष्ट्र में ठाणे जिले के बदलापुर की रहने वाली दीपा, सामाजिक क्षेत्र में सफल करियर के बावजूद अनुभूति ट्रस्ट शुरू करने के बारे में बताती है, ''एक दशक तक सामाजिक क्षेत्र में काम करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि एक बहुजन महिला होने के नाते मेरी पहचान कहीं अधिक हाशिए पर थी. मैं एक प्रवासी जनजाति से आती हूं. मेरी जनजाति ने पीढ़ियों से गरीबी से बाहर नहीं निकली है. लैंगिक हिंसा या अन्याय जैसी सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए कोई संसाधन या जागरूकता नहीं है.''
Image Credits: Deepa Pawar/Linkedin
यूथ लीडरशिप के ज़रिये दे रही समानता को बढ़ावा
दीपा ने युवा नेतृत्व (youth leadership) को बदलाव का ज़रिया बनाया. युवा महिलाओं और पुरुषों के साथ काम कर उन्होंने युवा समूहों (youth groups in Mumbai) का गठन किया और युवा नेताओं को अपने परिवारों और समुदायों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर लैंगिक समानता (Gender Equality) और अधिकारों (rights) को आगे बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग दी.
Image Credits: Deepa Pawar/Linkedin
दीपा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित 'राइट टू पी' अभियान (Right to Pee Campaign) की कोर टीम सदस्य (core team member) है, जो महिलाओं, लड़कियों, ट्रांस व्यक्तियों और विकलांगों के लिए सुरक्षित, सुलभ और सम्मानजनक सार्वजनिक शौचालयों (public toilets) के लिए एक जमीनी स्तर की युवा महिलाओं के नेतृत्व (women leadership) वाली पहल है. लड़कियों और महिलाओं के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय (social and economic justice) की आवाज़ बन, वह समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिखती है, समाचार चैनलों पर बोलती है, और सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं के साथ वकालत करती है (tribal woman activist).
सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय वजहों से, जिन चुनौतियों का सामना उनके समुदाय की कई पीढ़ियों ने किया, दीपा पवार उस दुष्चक्र की चाल धीमी कर रही है. उनकी कोशिशें हर युवा को अपनी किस्मत खुद लिखने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है.