जीज़ाऊंचा मी हो लेकी
भघा करून दाखवू शेती,
अमी सावित्री चा लेकी
भघा करून दाखवू शेती...
(जीजामाता की बेटियां हैं हम
खेती कैसे करें दिखाएंगे हम,
सावित्री की बेटियां हैं हम
खेती कैसे करें दिखाएंगे हम ...)
पानी फाउंडेशन (Paani Foundation) की इस फार्मर एंथम के शब्दों की गूंज महाराष्ट्र के उत्तर सोलापुर में बाणेगांव जा पहुंची. इस गीत का असर कुछ यूं हुआ कि किसान महिलाओं में खेती के ज़रिये अपनी किस्मत बदलने की उम्मीद जग गई.
Paani Foundation की अनोखी प्रतियोगिता कर रही किसानों का समर्थन
किसानों का हाथ थाम, 2016 से पानी फाउंडेशन ग्रामीण महाराष्ट्र में समुदायों को संगठित करने, कृषि के नए तरीके सिखाने और ग्रुप फार्मिंग (group farming) को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम कर रहा है.
किसानों का अपना वर्ल्ड कप है सत्यमेव जयते फार्मर कप (Satyamev Jayate Farmer Cup). रविवार विचार (Ravivar Vichar) से चर्चा के दौरान पानी फाउंडेशन ने बताया कि यह अनोखी प्रतियोगिता किसी मैदान में नहीं, खेतों में खेली जाती है. मिशन होता है सस्टेनेबल फार्मिंग (sustainable farming) के लिए गट बनाकर, बेस्ट प्रक्टिसेस का इस्तेमाल कर उत्पादकता को बढ़ाना.
Farmer Anthem की धुन ने किया कुछ इस तरह प्रेरित...
गीत की धुन में महिला किसानों ने खुद के खेत में लहलहाती फसल का सपना पिरोया. किसान वैजंती होनकोंबडे बताती है, "गीत ने हमारे अंदर जोश भर दिया कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं."
पर, इस सपने को पूरा करना आसान न था. सबसे बड़ी चुनौती थी खुद की ज़मीन न होना. अलग-अलग खेतों पर मज़दूरी कर रहीं इन महिलाओं के लिए ज़मीन खरीदना नामुमकिन था. पर कहते है न, "जहां चाह, वहां राह"
Group Farming से आसान हुई मुश्किलें
इन महिला किसानों (women farmers) को राह मिली पानी फाउंडेशन (Paani Foundation work) के साथ. उन्हें बताया गया कि ग्रुप फार्मिंग के ज़रिये उनका ये सपना पूरा हो सकता है. उनके पास अपनी ज़मीन नहीं थी, पर किसी और की ज़मीन को अपना बनाया जा सकता है.
फिर शुरू हुआ अलग-अलग किसान महिलाओं का गट के ज़रिये एक होने का सफ़र. इस सफ़र का अगला पढ़ाव था खेत की तलाश. साथ मिलकर इन महिलाओं ने ज़मीन की खोज में पूरे गांव के कई चक्कर काटे. बात न बनने पर, आस-पास के गांवों में फार्मलैंड तलाशने जा पहुंचीं.
ज़मीन नहीं, होंसला था
खेत की ये खोज महिलाओं को बाबासाहेब पांढरे के पास ले पहुंची. किसान पांढरे उस वक़्त अमरुद की खेती करने का विचार कर रहे थे. पर, महिलाओं की लगन और जज़्बा देख, उन्होंने मन बदल लिया. खेती के लिए किराए पर ज़मीन महिलाओं को देदी.
खेती के लिए ज़मीन ढूंढने की चुनौती ख़त्म हुई, तो दूसरी मुश्किल सामने आ खड़ी हुई. ज़मीन इतनी बंजर कि चारों ओर सिर्फ पत्थर ही नज़र आते. इस चुनौती को भी स्वीकारा और दिन-रात मेहनत की. महिलाओं की हिम्मत के आगे बंजर ज़मीन भी उपजाऊ बन गई.
गट बनाकर ज़मीन को बनाया उपजाऊ
आखिर, 11 महिलाओं का ये समूह अपना सपना पूरा करने के करीब पहुंचने लगा. सिस्टेमेटिक, साइंटिफिक ग्रुप फार्मिंग का तरीका अपनाया. कभी पत्थर से ढकी बंजर ज़मीन हरी-भरी होना शुरू हो गई.
लहराती फ़सल ने सबका ध्यान खींचा. एक वक़्त था जब उन्हें, खेती के लिए ज़मीन नहीं मिल रही थी, और अब दूर-दूर से लोग उनसे तकनीक सीखने आने लगे. आस-पास की महिलाएं उन्हें जादूगर मान चुकी थीं. जो पुरुष किसान पहले इन महिला किसानों की क्षमता पर शक करते थे, आज वह उनसे इस जादू का राज़ जानना चाहते थे.
समर्थन, जानकारी और तकनीक ने दूर की मुश्किलें
अपनी बंजर ज़मीन को हरी चादर में छुपा देख, बाबासाहेब पांढरे दंग रह गए, और कहने लगे, "ज़मीन किराये से देते समय मुझे इन महिलाओं की क्षमता पर ख़ास भरोसा नहीं था. पर, आज लगता है कि मुझे अपनी दूसरी फसलें भी उन्हें सौंप देनी चाहिए."
ग्रामीण भारत में, 84% महिलाएं अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं. कृषकों में करीब 33% और खेतिहर मजदूरों में लगभग 47% महिलाएं हैं. सामाजिक मानदंडों की वजह से ये महिलाएं तरह-तरह की चुनौतियों से जूझती हैं.
लेकिन, इनका समर्थन कर, सही जानकारी देकर और नई तकनीक से जोड़कर महिलाओं को कृषि क्षेत्र में सफ़लता का रास्ता नेविगेट करने में मदद की जा सकती है. उसी तरह जिस तरह पानी फाउंडेशन ने किया. पानी फाउंडेशन के समर्थन से इन महिलाओं ने साथ मिलकर काम करने की ताकत को पहचाना और ग्रुप फार्मिंग को बेहतर कल का ज़रिया बनाया.