जो कभी ज़बरदस्ती खेतों में जाया करती थी, बिना मन के किसानी किया करती थी, वो आज 900 से ज़्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग देती है आर्गेनिक फार्मिंग में निपुण बनाने की. आज की तारीख़ में खेती का शायद ही ऐसा कोई पैतरा होगा जो उसे नहीं आता होगा. खेती में बस फॉर्मल PhD की डिग्री ही नहीं है, बाकि एक डिग्री होल्डर जितनी नॉलेज है सविता दकले की. सोचने पर मजबूर करती है यह कहानी कि इतना बड़ा बदलाव आये तो कैसे?
ये है सविता दकले
"जब पहली बार खेत में गयी थी, तो मुझे याद है, ज़मीन इतनी चिकनी थी कि मैं फिसल गयी और सब मुझ पर हसने लगे थे. बुरा हद से ज़्यादा लग रहा था लेकिन उसे मैंने अपने लिए एक सबक बनाया, और आज मैं 7 लाख से ज़्यादा किसानों को जैविक खेती सीखा रही हूं. मैं उन्हें विभिन्न प्रकार की फसलों को बोना, कटाई की तरकीबें, उनका मूल्य निर्धारण और यहां तक कि कुछ मार्केटिंग की तकनीकें भी सीखा रही हूं,"- ये शब्द है सविता दकले के.
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बचपन से ही कुछ बड़ा करने का सपना देखती थी सविता
साल 2000 में सविता दकले ने एक फैक्टरी में काम शुरू कर दिया था. उस छोटी सी बच्ची ने, जिसे खेलना कूदना चाहिए था, उसने अपने परिवार की हर ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली. अपने दो छोटे भाइयों को पढ़ाना चाहती थी. घर पर माता पिता उसे काम करता देख कर अपने नसीब को हमेशा कोसते, लेकिन वो जानती थी कि वो सब संभाल लेगी.
लेकिन सविता दकले के घर पर हालात बद से बत्तर होते जा रहे थे. उसके माता पिता को अपनी और और घर बेचकर अपनी बेटियों की शादी करानी पड़ी. सविता दकले टूट रही थी, वह शादी नहीं करना चाहती थी क्यूंकि वह जानती थी की वह किसी और चीज़ के लिए बनी है. लेकिन अपने माता पिता की मजबूरी के आगे उसे हार माननी पड़ी. एक बच्ची जो जीना चाहती थी, उसे किसी के घर का संभालने का काम दे दिया गया.
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बाल विवाह के कारण जुड़ी किसानी से
एक किसान परिवार में शादी, और किसानी के बारे में कुछ ना जानती सविता दकले. जब भी अपने खेत में जाती, तो दूसरी औरतें उस पर हसतीं. सविता दकले ने हर हसीं को कुछ करने का जज़्बा बना लिया. एक दिन बस ऐसे ही हर दिन की तरह अपना काम कर रही थी, तभी SEWA ऑर्गनाइज़ेशन (सेल्फ एम्प्लॉयड विमेंस ऑर्गनाइज़ेशन) की एक मीटिंग में नसीब से जाने को मिला सविता दकले को.
बस अब सविता दकले समझ चुकी थी, कि यही है जो इतने वक़्त से उसे करना था. सविता दकले के पति ने भी उसे इस फैसले को पूरा करने में पूरा साथ दिया. सुनील दकले कहते है- "सविता दकले में हमेशा से कुछ सीखने का जज़्बा था. वह हर कमा को बहुत जल्दी खुद में ढाल लेती थी." हालांकि, ससुराल वाले परेशान थे की अब देहाड़ी कैसे आएगी, लेकिन सविता दकले पर उसके पति का पूरा विश्वास था.
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SEWA ऑर्गनाइज़ेशन से जुड़कर बदली ज़िंदगी
SEWA ऑर्गनाइज़ेशन में जब वह काम के लिए सिलेक्ट हो गयी, उस दिन से सविता दकले ने दिन रात एक कर दिए. दिन में खेतों पर काम करती, शाम को अपने बच्चों और घर वालों के लिए खाना बनाती, उन्हें वक़्त देती, और रात को दोबारा महिलाओं को आर्गेनिक फार्मिंग के बारे में सिखाती.
2017 में सविता दकले ने अपना एक फेसबुक ग्रुप बनाया, जिसका नाम उसने रखा 'वीमेन इन एग्रीकल्चर'. इस ग्रुप में आज 7 लाख से ज़्यादा मेंबर्स है. वह इतनी बेहतरीन काम कर रही थी कि फेसबुक के हेडक्वॉटर से उसे इन्विटेशन आई. वह बताती है- "अनुभव अवास्तविक था. मुझे एक स्मार्टफोन भी भेंट किया गया जिसका मैं आज भी उपयोग करती हूं."
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'वीमेन इन फार्मिंग' ग्रुप है आर्गेनिक फार्मिंग का वर्चुअल हब
आज सविता दकले लाखों महिलाओं को ट्रैन कर चुकी है और उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी है. सविता दकले बचपन से जानती थी कि वह एक नॉर्मल लाइफ के लिए नहीं बनी. इतनी परेशानियां, अड़चनें और तकलीफें होने के बावजूद भी आज सविता दकले साबित कर रहीं है कि 'इस दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं है.' बस करने की इच्छा और हार ना मानाने का जज़्बा कभी काम नहीं होना चाहिए. सविता दकले हर उस महिला के लिए उम्मीद और आत्मविश्वास की किरण है जो अपनी ज़िन्दगी को सवारने के लिए दिन रात मेहनत करती है
Self Help Group से जुड़कर भारत में करोड़ों महिलाएं बस इसी उम्मीद के साथ जुड़ी है की उनका जीवन भी एक दिन बदलेगा. भारत सरकार भी इन महिलाओं को सशक्त करने के लिए बरसक प्रयास कर रही है. अब वो दिन दूर नहीं जब देश महिलाएं अपने बलबूते पर आगे बढ़ाएंगी!