ग्रोसरी लिस्ट में शायद इसका नाम शामिल न किया गया हो, पर इसके ब्राइट रंग और अलग से आकर की वजह से इसे खाने को मन ललचा जाता है. पिताया या ड्रैगन फ्रूट (dragon fruit) न्यूट्रिशन (nutrition) से भरपूर है और इसमें कई बीमारियों से लड़ने की ताकत भी है. स्वयं सहायता समूह (Self HelpGroup) की महिलाएं आर्गेनिक फार्मिंग (organic farming) को बढ़ावा दे रही है और कृषि को तकनीक से जोड़ रही हैं. इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए असम के गोलाघाट की SHG महिला ने कुछ नया करने का सोचा.
SHG सदस्य मंजू सैकिया ने ड्रैगन फ्रूट की खेती कर हासिल की आर्थिक आज़ादी
गोलाघाट जिले के काचामारी गांव की स्वयं सहायता समूह की सदस्य मंजू सैकिया ड्रैगन फ्रूट (SHG woman doing dragon fruit farming) की खेती कर आर्थिक आज़ादी हासिल कर रही है. उन्होंने और उनके पति ने साल 2022 में 38 कंक्रीट खंभों में लगभग 150 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए. DMMU गोलाघाट (DMMU Golaghat) और परियोजना निदेशक DRDA की एक पहल के ज़रिये जिला कृषि कार्यालय द्वारा पौधे प्रदान किए गए थे.
300 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचे ड्रैगन फ्रूट
पहला उत्पादन मई 2023 के महीने में शुरू हुआ. कटाई का मौसम साल में मई से दिसंबर तक होता है. शुरुआती निवेश सिर्फ 30 हज़ार रुपये था. करीब 70 % निवेश पोल्स बनवाने के लिए था. उन्होंने उर्वरक के रूप में केवल गाय के गोबर और खाद का इस्तेमाल किया. उन्होंने अब तक लगभग 60 किलोग्राम फल इकट्ठे किए हैं और उन्हें एवरेज रिटेल मूल्य 300 रुपये प्रति किलोग्राम पर आस-पास की जगहों में बेचा.
फसल के पहले वर्ष में एक पौधा 15 किलोग्राम तक उत्पादन कर सकता है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो उन्हें सीजन में लगभग 1,500 किलोग्राम फल मिलने की उम्मीद है. उनके मुताबिक ड्रैगन फ्रूट की खेती ग्रामीण लोगों के लिए आजीविका का अच्छा विकल्प हो सकती है (dragon fruit in villages). मंजू सैकिया से सीख और स्वयं सहायता समूह (SHG woman) की महिलाएं भी ड्रेगन फ्रूट की खेती कर उसे रोज़गार का ज़रिया बना सकती हैं.