देश के सबसे बड़े महिला स्वयं सहायता नेटवर्क (women self help group network) समूहों में से एक, कुदुम्बश्री मिशन (kudumbashree) ने अपने 46 लाख सदस्यों को स्कूल वापस भेजने के लिए दो महीने का अभियान शुरू किया. थिरिके स्कूलिल (बैक टू स्कूल) कार्यक्रम (back to school campaign) ने केरल के सभी 14 जिलों के 2 हज़ार स्कूलों में आयोजित वीकेंड क्लासेज में 20 लाख से ज़्यादा महिलाओं को जगह दी.
50 लाख से ज़्यादा लोग बने Back To School कार्यक्रम का हिस्सा
20 हज़ार क्षेत्र विकास सोसायटी, 1,070 सामुदायिक विकास सोसायटी (CDS), 15 हज़ार संसाधन व्यक्ति, कुदुम्बश्री स्नेहिता, कई प्रशिक्षण समूहों के सदस्यों और राज्य-जिला मिशन कर्मचारी सहित 50 लाख से ज़्यादा लोग इस अनोखे अभियान का हिस्सा बने.
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पांच-विषय मॉड्यूल के तहत महिलाओं को वित्तीय नियोजन और माइक्रोफाइनेंस (Financial Planning and Microfinance), संगठन के लक्ष्य, सामाजिक एकजुटता, महिलाओं के लिए आजीविका के नए अवसर (New livelihood opportunities for women), और डिजिटल साक्षरता (digital literacy) के बारे में शिक्षित करना शामिल है. दो लाख से अधिक अयालकूटम व्हाट्सएप समूहों के साथ, महिलाओं को अभियान में आकर्षित करने के लिए मेसेजेस, पोस्टरों और वीडियो के साथ ठोस सोशल मीडिया कैंपेन से जोड़ा गया है.
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स्थानीय प्रशासन ने की कुदुम्बश्री के अभियान में मदद
कुदुम्बश्री अभियान (Kudumbashree) की सफलता सुनिश्चित करने में स्थानीय प्रशासन ने भी अहम भूमिका निभाई. पुथुकोड पंचायत की अकाउंटेंट दीपा कहती हैं, “महिलाएं अपने अयालकूटम की यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल आकर बहुत खुश हैं. पुथोकोड पंचायत में ही 4,300 अयालकूटम हैं, जिनमें महिलाएं खेती, खानपान, अचार बनाने आदि व्यावसायिक गतिविधियों में हिस्सा लेती हैं. उन्हें ब्लॉक इकाइयों से सब्सिडी मिलती है और कुदुम्बश्री से ऋण मिलता है."
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अलाप्पुझा जिले में, 100 वर्षीय राहेल थिरिके स्कूलिल कार्यक्रम के साथ एक बार फिर बचपन को जी रही है. बुढ़ापे की परेशानियों को भूलकर वह दूसरों की सहायता से विद्यालय की सीढ़ियां चढ़ती है. मनप्पदम में, कंचना (77) और थंगम (73) अपनी बेटियों के साथ कक्षाओं में गईं.
थिरिके स्कूलिल क्लासेज में आईं हर उम्र की महिलाएं
“मैंने सिर्फ सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की. इसलिए, एक बार फिर छात्र के रूप में स्कूल वापस आना बहुत अच्छा लग रहा है. हालांकि मेरा अपना कोई व्यवसाय नहीं है, मैं अयालकूटम का हिस्सा हूं और कुदुम्बश्री के बारे में और अधिक जानने की उम्मीद करती हूं, जिससे मैं अपना जीवन बदल सकूं.'' कंचना कहती हैं.
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त्रिस्सूर जिले के पोय्या पंचायत में, 84 वर्षीय अम्मिनी ने अपने जीवन में पहली बार स्कूल में दाखिला लिया, जब उन्होंने कुदुम्बश्री के थिरिके स्कूलिल अभियान (Thirike Schoolil in Kerela) की कक्षाओं में भाग लिया. औपचारिक शिक्षा की कमी के बावजूद, अम्मिनी का कहना है कि उन्हें जो सिखाया जा रहा था वह समझ में आया. वह कई वर्षों से खेतिहर मजदूर रही हैं.
गांधी स्मारक स्कूल में दोपहर 1.15 बजे लंच टाइम में घंटी बजते ही बच्चे अपनी माओं और दादियों के लिए लंच बॉक्स लाते दिखें. यह भूमिका में बदलाव है जो सुखद है. जो 35 लाख महिलाएं 10 दिसंबर को इस कार्यक्रम को पूरा करने जा रही हैं, उनके लिए क्लासेस ख़त्म जाते ही आशाओं से भरे नए जीवन की शुरुआत होगी.
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