महिलाओं को अपनी आजीविका और जीवन को बदलने से ना आज तक कोई रोक पाया है ना ही कोई रोक पाएगा. वे भले ही जीवन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करती हो लेकिन उन्होंने कभी भी इन परेशानियों को अपना जीवन बदलने के आड़े नहीं आने दिया.
Bamboo products बना कर तैयार कर रही आजीविका maharashtra की नमिता
ऐसी एक गृहिणी, मां और बांस कलाकार है (maharashtra stories in hindi) महाराष्ट्र के टेटवाली गांव की नमिता नामदेव भुरकुड, जिन्होंने अपने साथ 57 आदिवासी महिलाओं (tribal women made products) को दिवाली कंदील बनाने का प्रशिक्षण दिया. भारत की तो बात ही छोड़ दे, इनके कंदीलों की मांग ब्रिटेन और अमेरिका में भी की जा रही है.
Image Credits: The Better India
महाराष्ट्र के टेटवाली नामक एक छोटे से गाँव से जब नमिता आई थी तब उसे सिर्फ एक अच्छी गृहिणी होने के बारे में बताया गया था. वह ये जानती ही नहीं थी कि वह अपने परिवार के लिए कमाने वाली महिला भी बन सकती है. वह ये बात तो जान गयी थी कि उसे अपने जीवन को इस तरह कमरों में बैठे बैठे नहीं बिताना. उसे मेहनत करनी है, खुद को ढूंढ़ना है और आगे बढ़ना है. जब उसे महिला स्वयं सहायता समूहों के बारे में बता चला तो उसे अपने गाँव की महिलाओं के साथ मिलकर एक SHG तैयार भी किया और उसकी अध्यक्ष के रूप में सबका मार्गदर्शन भी किया.
यह भी पढ़े- महिलाओं को उद्यमिता से जोड़ रही बैम्बू खेती
बांस कलाकार है नमिता नामदेव भुरकुड
वह जानती थी कि वह पढ़ी लिखी नहीं है. लेकिन एक कला थी जो बख़ूबी आती था. वह एक परफेक्ट बांस कलाकार थी. उसे बांस के लड़की को सुन्दर उत्पादों में बदलने में बेहद रूचि थी. कंदील (आकाश लालटेन), फोन धारक, राखी, कूड़ेदान, फोटो फ्रेम, गाड़ियां, हैंगर, चाबी की चेन और बहुत कुछ तैयार कर चुकी थी नमिता.
बस यही काम को करते करते आज नमिता भारत में G20 शिखर सम्मेलन में अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने के लिए सात महिलाओं के एक समूह का नेतृत्व भी कर चुकी है.
Image credits: The Better India
Self help group की महिलाओं को सिखा रही बांस के प्रोडक्ट्स बनाना
वह कहती है-“ऐसा लगा जैसे हम किसी फिल्म में हों. हमारे चारों ओर नेता और प्रभावशाली लोग थे. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं ऐसी जगह पर रहूंगी, किसी टीम का नेतृत्व करना तो दूर की बात है.'' नमिता के self help group ने इस दिवाली 3,000 से अधिक कंदील बेचे. वह बताती हैं, ''हमारे उत्पाद अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों सहित पूरी दुनिया में बेचे जाते हैं.''
इस कला को सीखने से पहले के अपने दिनों को याद करते हुए नमिता बताती है कि- “मेरे दिन ज्यादातर सफाई, खाना पकाने और अपने परिवार की देखभाल करने के इर्द-गिर्द घूमते थे. मैं अपने पति के साथ खेतों में जाती थी, लेकिन बस इतना ही था."
लेकिन खेती से होने वाली कमाई से उनका घर अच्छे से survive नहीं कर पा रहा था. वे कहती हैं, ''मेरे पति और उनके भाई खेत में कड़ी मेहनत करते थे, लेकिन आराम से गुजारा करने के लिए कभी पर्याप्त पैसे नहीं होते. इसके अतिरिक्त, उपज हमेशा जलवायु और कई अन्य कारकों पर निर्भर करती." इसीलिए नमिता ने खुदके और परिवार के जीवन को बदलने की ठान ली.
यह भी पढ़े- 15 बिलियन पेड़ लगाने की मुहिम पर केन्या के SHG
Image credits: The Better India
परिवार का साथ था और मन में विश्वास था
यह 2001 में नमिता ने अपने business के शुरुआत की. पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने रोकने कि कोशिश की. कहा कि घर की महिलाए बहार काम करने नहीं जाती. उन्हें नमिता कुछ भी कमाने की क्षमता पर संदेह था, लेकिन उनकी सास हर वक़्त उनके साथ खड़ी थी. वह कहती हैं, ''हमारे पतियों और मेरी सास ने हम पर विश्वास दिखाने का फैसला किया और प्रशिक्षण के लिए जाने में हमें भरपूर समर्थन दिया.''
यह प्रशिक्षण गौरव श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाले 'केशव सृष्टि' नामक एक NGO द्वारा आयोजित किया जा रहा था. यह महिला सशक्तिकरण (women empowerment in india) को बढ़ावा देने और उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने की एक पहल थी.
पहल के बारे में बात करते हुए, गौरव कहते हैं, “इस पहल की शुरुआत क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए हुई. बांस के प्रचुर उत्पादन के बावजूद, इसका प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया गया. इसलिए, मैंने महिलाओं को बांस के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण देने के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन किया, जिन्हें बाद में देश भर में बेचा जाएगा.''
नमिता ने खुद इस प्रशिक्षण को लेने के बाद अपने गांव और आसपास के गांवों की कई महिलाओं को भी इस कला में प्रशिक्षित किया है.
वे कहती है- “मैं चाहती हूं कि अधिक से अधिक महिलाएं स्वतंत्र हों. मैंने अब तक 57 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और उम्मीद है कि मैं और अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित करूंगी. हमारी कंपनी की स्थापना से हमें और अधिक काम मिलने की उम्मीद है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गाँव की युवा लड़कियां अब काम के लिए शहर की ओर पलायन करने के बारे में नहीं सोचती हैं, वे गाँव में ही रहती हैं और बांस के उत्पाद बनाती हैं."
अपनी अब तक की यात्रा पर विचार करते हुए, नमिता कहती हैं, “यह इस बारे में नहीं है कि मैं हर महीने कितना कमाती हूं या मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला और गांव का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हूं, बल्कि यह उस आत्मविश्वास के बारे में है जो इसने मुझमें पैदा किया है. मैंने बचपन में इनमें से कोई भी काम करने की कभी कल्पना भी नहीं की थी, लेकिन आज, मैं यहाँ हूँ! मैं चाहती हूं कि हर महिला इस आजादी का अनुभव करे."