नाबार्ड की पहल आदिवासी महिलाओं के लिए बनी वरदान

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने बंगाल के 11 जिलों में फैली आदिवासी आबादी के विकास के लिए 148.23 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं. यह पैसा 2005-06 से मार्च 2023 तक स्वीकृत किया गया था.

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रिसिका जोशी
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NABARD project for tribes

Image- Ravivar Vichar

ग्रामीण महिलाओं को आगे बढ़ाना ही देश को सर्वोच्च पद पर लाने का एकमात्र मार्ग है. यह बात देश का हर नागरिक भी समझ रहा है और साथ ही सरकार की ज़्यादातर परियोजनाएं उन्हें ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है. इसके साथ ही आदवासी महिलाओं (tribal women in india) को भी देश में आगे बढ़ाकर एक सम्मानीय दर्जा देने का ठान लिया है सरकार ने.

NABARD की पहल से आदिवासी महिलाएं हो रही सशक्त

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (schemes of NABARD) ने बंगाल के 11 जिलों में फैली आदिवासी आबादी के विकास (initiatives for tribal people) के लिए 148.23 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं. यह पैसा 2005-06 से मार्च 2023 तक स्वीकृत किया गया था. नाबार्ड ने उपयुक्त आय सृजन गतिविधियों और सामुदायिक सशक्तिकरण को अपनाकर आदिवासी परिवारों के एकीकृत विकास को बढ़ावा देने के लिए देश भर में WADI/ऑर्चर्ड मॉडल को दोहराने के लिए आदिवासी विकास कोष (TDF) की स्थापना की.

नाबार्ड की वाडी परियोजना

नाबार्ड की वाडी परियोजना (NABARD wadi project) ने बांकुरा जिले के मत्रा गांव के जलाहारी शबर पारा में बहुत बेहतरीन काम किया है. इस छोटे से गांव में 21 शबर परिवार रहते हैं, जिनमें से अधिकांश किसान हैं. आदिवासी किसानों के पास low lying land होती है जिसका उपयोग धान की खेती के लिए किया जाता है. मौसमी प्रवास बड़े पैमाने पर होता था और अधिकांश आदिवासी अपनी आजीविका के लिए दिहाड़ी मजदूर के रूप भी में काम करते थे.

इन्ही के समूह की एक महिला Sakhi Shabar ने इस प्रोजेक्ट में रूचि दिखाई और unused land पर बाग लगाने के लिए सहमत हो गईं. उनकी सफलता गेम चेंजर थी. उनके इस चुनाव के कारण कई आदिवासी परिवारों ने इस योजना को चुना है.

उन्होंने अपनी एक एकड़ जमीन पर आम और अमरूद के 40 पौधे लगाए, प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया और उर्वरक और कीटनाशक देकर उनका समर्थन किया गया. उनकी खेती की लागत कम हो गई और लाभ मार्जिन बढ़ गया. उनकी आय सालाना 20,000 रुपये से 25,000 रुपये तक बढ़ गई है जो की फल पकने के बाद भी बढ़ जाएगी.

आदिवासी महिलाओं का self help group

2022 में स्थापित, शिउलीबोना बिरसा मुंडा स्वानिर्भर दल नामक एक स्वयं सहायता समूह (tribal women self help group) ने उन 10 महिलाओं के सपनों को सफलतापूर्वक मदद की है, जिन्होंने बांकुरा जिले के छतना गांव के शिउलीबोना गांव में SHG का गठन किया था. इन महिलाओं को बकरी पालन, मुर्गीपालन, वर्मीकम्पोस्ट और नर्सरी पालने का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ. एक बार जब उनका प्रशिक्षण पूरा हो गया तो उन्होंने पश्चिम बंगा ग्रामीण बैंक से उपलब्ध ऋण से अपने घरों में एक नर्सरी और एक छोटी बकरी-पालन इकाई स्थापित की.

अपनी बकरी पालन इकाई का विस्तार करने के लिए उन्होंने आखिरी ऋण मार्च 2023 में 1,50,000 रुपये का लिया था. वर्तमान में उनमें से प्रत्येक की आय 15,000 रुपये से 18,000 रुपये प्रति वर्ष है. नाबार्ड द्वारा शुरू की गई वाटरशेड विकास परियोजना ने पुरुलिया के पिर्रा गांव की ममता महतो जैसे कई ग्रामीणों की मदद की है.

कई महिलाएं उनका अनुसरण कर रही हैं और वह अन्य किसानों के साथ वाटरशेड हस्तक्षेप के लाभों के बारे में अपना ज्ञान साझा करती हैं. नाबार्ड के पश्चिम बंगाल क्षेत्रीय कार्यालय की मुख्य महाप्रबंधक उषा रमेश ने कहा कि यह अपनी विभिन्न प्रचारात्मक और विकासात्मक गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. “हमारे पास 60 WADI/बगीचे विकास कार्यक्रम हैं जो 550 गांवों में 32,994 आदिवासी परिवारों को कवर करते हैं. आदिवासी आबादी की आजीविका में सुधार के लिए मुख्य घटक के रूप में छोटे बगीचे के साथ-साथ अंतरफसल और आजीविका गतिविधियों को लागू किया जा रहा है."

इस प्रोजेक्ट की सफलता महिलाओं के लिए बहुत फाएदेमंद साबित हो रही है. महिलाओं को आगे स्वावलंबी और सशक्त बनाने से हिदेश सशक्त होगा और आगे बढ़ेगा.

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