दारेगांव, खुलताबाद की महिलाएं साथ वक़्त बिताती, साथ खुशियां और दर्द बांटती. जब उन्हें पता चला कि वह साथ मेहनत कर अपनी आमदनी बढ़ा सकती हैं, तो मानों सारे सवालों के जवाब मिल गए, सारी परेशानियां हल हो गईं. Paani Foundation के ज़रिये 'संयुक्त श्रम' के बारे में पता चला.
जानी 'संयुक्त श्रम' की अहमियत
Satyamev Jayate Farmer Cup एक अनोखी ग्रुप फार्मिंग (Group farming) प्रतियोगिता है, जो महाराष्ट्र के किसानों को साथ मिलकर खेती करने और महारष्ट्र को सूखा मुक्त बनाने के लिए प्रेरित करती है. इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर दारेगांव की महिला किसानों ने 'संयुक्त श्रम' की अहमियत जानी.
इन महिला किसानों ने अपने खेतों को हरी-भरी फसलों से सजाने का संकल्प लिया. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 'संयुक्त श्रम' का रास्ता अपनाया, और साथ मिलकर दिन-रात मेहनत की.
ग्रुप के रूप में मिला परिवार
साथ काम करने से महिलाओं को सिर्फ आर्थिक मुनाफा नहीं मिला, ग्रुप के रूप में एक ऐसा परिवार भी मिला जो सुख-दुख का साथी बन गया.
एक दिन जब महिलाओं ने अपनी ग्रुप सदस्य सुनीता के चेहरे पर उदासी देखी, तो सब उसका हाल पूछने लगी. आंखों में आंसू लिए सुनीता ने आर्थिक चुनौतियों से जुड़ी परेशानियां साझा की.
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सुनीता ने बताया, "अक्सर मुझे परिवार के भविष्य की चिंता रहती है. इतनी कम आमदनी में कैसे गुज़ारा होगा?"
गट की मदद से किया सिलाई का काम शुरू
उसकी बाते सुन सब भावुक हो गए. लेकिन, सुनीता को सिर्फ तसल्ली नहीं, साथ भी मिला. मीटिंग में, सुनीता को अतिरिक्त आमदनी शुरू करने में मदद करने का फ़ैसला लिया गया. पता चला कि सुनीता सिलाई काफी अच्छी क्र लेती है.
गट के सभी सदस्यों ने हज़ार-हज़ार रूपए इकट्ठा कर, सुनीता के लिए सिलाई मशीन खरीदी. नई मशीन के साथ सभी ने अपने कपड़े भी सिलने के लिए दिए. आस-पास के लोगों को सुनीता के नए बिज़नेस के बारे में बताया. ग्राहकों की भीड़ लग गई.
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ये समूह इस बात का सबूत है कि साथ मिलकर काम करने की शक्ति को मुनाफे से नहीं तोला जा सकता.
विरमगाव की रानी को मिला गट का समर्थन
स्नेह, एकता, और साथ की ये कहानी हर उस समूह की है जिसने ग्रुप फार्मिंग का रास्ता अपनाया. विरमगाव, खुलताबाद की महिलाओं ने जब साथ काम करना शुरू किया, तो उन्हें भी अपने ग्रुप के ज़रिये मानों एक परिवार और मिल गया.
विरमगांव में रानी ने शिवसंगमेश्वर महिला कपास समूह बनाया. गर्भवती होने के बावजूद उन्होंने खेतों में जाने से लेकर seed treatment और seed germination capacity test का काम संभाला. बुआई के दौरान, 3-4 महीने की गर्भवती होने पर भी, उन्होंने खेत में मेहनत करना जारी रखा.
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बिना कुछ बताए समूह ने की मदद
लेकिन, कुछ समय बाद ही उसे थकान होने लगी. अपने होने वाले बच्चे की सेहत और समूह की चिंताओं के बीच फंसी रानी ने अपने गट का साथ देना नहीं छोड़ा. उसकी सास और परिवार शुरू में चिंतित थे, और उसे गर्भावस्था के दौरान अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की सलाह दे रहे थे. उसकी सास गट के साथ काम करने के खिलाफ हो गई.
जब निराई-गुड़ाई का समय नजदीक आया, रानी को मजदूर ढूंढने में परेशानी होने लगी. पूरे हफ्ते मज़दूरों की खोज जारी रही. मदद नहीं मिलने पर, समूह के सदस्यों ने खेत पर रानी को बिना बताए काम पूरा कर दिया. जब रानी को पता चला कि उसके खेत में निराई-गुड़ाई का काम पूरा हो चूका है, वह भावुक हो गई. समूह ने निस्वार्थ भाव से उसका समर्थन किया.
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पहले करती थी विरोध, फिर बन गई भागीदार
इस भाव से आभारी होकर, रानी की सास ने बदले में समूह में शामिल होने का फैसला किया. वह अपनी बहू की जगह काम करने लगी. समूह के सदस्यों ने न सिर्फ खेत के काम में सहायता की, बल्कि रानी के लिए एक भावपूर्ण गोद भराई का भी आयोजन किया.
रानी की सास, जो शुरू में चिंता के कारण विरोध कर रही थीं, आखिर में गट में शामिल हो गईं और सक्रिय भागीदार बन गईं. इस गट में, समूह का प्रभाव कृषि गतिविधियों से परे है; यह एक ऐसा साथ है जो अपनेपन और समर्थन की भावना से भरपूर है.
इस तरह की कई कहानियां मिल जाएंगी, जब महिलाएं एक दूसरे का मुश्किल समय में साथ देकर एकता, सहस, और समर्थन का उदाहरण बन गई.
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