कागज़ बीनने से Gitanjali Co-operative तक का सफर...

इस स्टेशनरी यूनिट में करीब 200 महिलाएं काम करती है जो अपने परिवार को चलाने में समर्थ हो गयी है. SEWA इस बिज़नेस को मदद कर रही है. इनकी कुछ वर्कर्स घर से भी काम करती है. ये महिलाएँ नोटपैड, रजिस्टर, फाइल्स और दूसरे स्टेशनरी के सामान तैयार करती है.

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रिसिका जोशी
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पेपर बटोरा करती थी ये महिलाएं एक समय में...आज सालाना अपने बिज़नेस से 2 करोड़ का टर्न ओवर है इनकी कंपनी का! सुनाने में कितनी अच्छी लगती है न कहानी. लेकिन ये कोई कहानी नहीं है जिसे सुनकर भुला जाए, ये है कुछ महिलाओं का आत्मविश्वास कि हम कुछ भी कर सकते है. 

कागज़ बीनती थी पालिबेन

कहते है ना अगर एक महिला ठान ले तो किसी से भी लड़ जाती है, तो फिर बुरी किस्मत क्या चीज़ है. बस कुछ ऐसी ही कहानी है इन महिलाओं कि जो पहले पेपर जमा (Ragpicker turns businesswomen) किया करती थी लेकिन आज एक एंटरप्रेन्योर है. गुजरात अहमदाबाद (Gujarat news) की पालीबेन अपनी कंपनी में प्रोडक्शन का काम देख रही है और प्रेसिडेंट है. वे कहती है- "आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे बेहद ख़ुशी होती है, ये मेरे जीवन का सबसे अच्छा समय है."

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Image Credits: The Explortations company

कागज़ इकट्ठा करने वाली इन महिलाओं ने एक स्वयं सहातया समूह (Self help group) शुरू किया. पालीबेन सातवीं क्लास तक पढ़ी थी. बड़ी हुई तो इन्हे कोई भी नौकरी नहीं मिली तो इन्होंने कचरे में से कागज़ बीनना शुरू कर दिया. 13 साल तक ये ही काम करने के बाद भी इनकी कोई परेशानी ख़त्म ही नहीं हो रही थी. उस वक़्त उन्होंने तय किया और अपनी जैसे महिलाओं के साथ मिलकर गीतांजलि को-ऑपरेटिव (Gitanjali Co-operative Ahemdabad) की शुरुआत 1995 में की.

SEWA organisation के साथ बढ़ रही है आगे

वे बताती है- "पहले लोग हमे चोर समझते थे और गलत नज़र से देखा करते थे. लेकिन आज ये ही लोग हमारी इज़्ज़त करते है और हमारे काम की तारीफ भी करते है." पालीबेन ने शुरूआत कटाई मशीन से करी और जब थोड़े पैसे आए तो एक पंचिंग मशीन भी खरीद ली. इन महिलाओं के ऑर्डर्स बढ़ते जा रहे है और ये अपने बिज़नेस को और भी बढ़ा बनाती जा रही है.

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Image Credits: The Explortations company

इस स्टेशनरी यूनिट में करीब 200 महिलाएं काम करती है जो अपने परिवार को चलाने में समर्थ हो गयी है. Self Employed Women Association (SEWA) इस बिज़नेस को मदद कर रही है. इनकी कुछ वर्कर्स घर से भी काम करती है. ये महिलाएँ नोटपैड, रजिस्टर, फाइल्स और दूसरे स्टेशनरी के सामान तैयार करती है.

एक सदस्या फाल्गुनी परमार बताती है- "मेरी ट्रेनिंग 1 महीने से कुछ समय ज़्यादा चली. मेरे पिता को पसंद नहीं था कि मैं यहां आकर काम करू लेकिन मैं अपने फैसले पर अटल थी. फिर वो मान गए." बहुत सी जानी-मानी companies जैसे Tata IIS और CISCO से गीतांजलि को-ऑपरेटिव को काम मिलना शुरू हो चुका है.

महिलाएं एक साथ मिलकर खुद के परिवार को बिना किसी परेशानी के चला रही है और अपने बच्चों को पढ़ा भी रहीं है. ये महिलाएं एकता में अनेकता की कहावत को साबित कर अपनी ज़िन्दगियों को सवार रही है. SEWA ऑर्गनाइज़ेशन का इस जीत में बहुत बड़ा हाथ है. सब को इन महिलाओं से सीख लेनी चाहिए और अपनी परेशानी को ख़त्म करने के लिए Self Help Group बनाकर आगे बढ़ने के बारे में सोचना चाहिए.

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