SHG महिलाओं की मेहनत को मिला सीताफल

आत्मनिर्भर भारत के तहत GMPCL ने NGO Srijan के साथ मिलकर महिलाओं को सीताफल के पल्प को एक्सट्रैक्ट और प्रीसर्व करने की ट्रेनिंग देना शुरू किया. SHG महिलाएं प्लकर, सॉर्टर , ग्रेडर और पैकर का काम संभाल रही है.

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हेमा वाजपेयी
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SHG महिलाएं स्वरोजगार के साथ आर्थिक स्वतंत्रता और महिला सशक्तिकरण की राह पर आगे बढ़ रही हैं. राजस्थान के पाली जिले में 27 गावों में पांच हज़ार महिलाएं, जिसमें गरासिया जनजाति की महिलाएं सबसे ज्यादा हैं. घर के पास काम की उपलब्धता न होने के कारण महिलाओं को काम की तलाश में घर से दूर जाना पड़ता था. 

कई बार कुछ साहूकार छोटी राशि में भी महिलाओं से ज्यादा ब्याज वसूलते थे. आदिवासी महिलाओं की आजीविका पूरी तरह से जंगल से सीताफल (Custard Apple) की कटाई करने और उन्हें एक रुपए प्रति किलोग्राम बेचने पर ही निर्भर थी.

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GMPCL से जुड़ी महिलाओं ने जमा किए तीन करोड़ रुपए 

एसएचजी महिलाओं की मदद करने के लिए घुम्मर महिला प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (GMPCL) की शुरुआत 2013 में की गई और पंजीकरण 2015 में हुआ. कंपनी के हर काम का संचालन सेल्फ हेल्प ग्रुप्स की महिलाएं करती हैं. आज जीएमपीसीएल से जुड़े 400 Self Help Groups की पांच हज़ार महिलाओं ने तीन करोड़ रुपए की बचत राशि जमा की.

GMPCL ने NGO Srijan के साथ महिलाओं को दी ट्रेनिंग

एसएचजी महिलाएं जागरूक न होने के कारण वह सीताफल खेती के फायदों से अनजान थी. एजेंट्स कम कीमत में फल खरीदकर कीमत बढ़ाकर बेचते, उनका जहां फायदा हो रहा था, पर वहीं आदिवासी महिलाओं का शोषण. सिर्फ एजेंट्स ही नहीं बल्कि मानसून, बाजार से संपर्क न होना, योजनाओं की जानकारी न होना, फलों को ख़राब होने से बचाने के लिए पर्याप्त प्रौद्योगिकी की कमी होना भी आगे बढ़ने में अड़चने पैदा कर रही थी.

आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) के तहत GMPCL ने NGO Srijan के साथ मिलकर महिलाओं को कस्टर्ड एप्पल के पल्प को एक्सट्रैक्ट और प्रीसर्व करने की ट्रेनिंग देना शुरू किया.

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महिलाओं को सिखाई ग्रेडिंग और प्लकिंग 

साल 2017 में, पूरे वैल्यू चेन को डीसेंट्रलाइजेड किया गया और शुरू में आठ विलेज कलेक्शन सेंटर्स (VCCs) में  महिलाओं को ग्रेडिंग, प्लकिंग और वजन करने की ट्रेनिंग दी गई. महिलाएं प्लकर, सॉर्टर , ग्रेडर और पैकर का काम संभाल रही है. लगभग हज़ार महिलाएं एप्पल तोड़कर वीसीसीएस को बेचकर हर महीने 2,500 से 3,000 रुपए कमातीं है. महिलाएं सेबों को बनावट के आधार पर छांटकर गुदा निकालकर छिलके को अलग करती है. 

महिलाओं को मिला लीडरशिप का मौका

पल्प की शुद्धता बनाए रखने के लिए हैंड ग्लव्स, सिर पर टोपी, एप्रन और मास्क का इस्तेमाल किया जाता है. इस पल्प को पैक कर उदयपुर (Udaipur) मे स्टोर किया जाता है. जीएमपीसीएल के अंडर पांच हज़ार औरतें काम कर रही हैं, जिसमें तेरह महिलाएं एग्जीक्यूटिव बोर्ड मेंबर्स हैं. कंपनी बोर्ड की नौ मेंबर्स साथ मिलकर पूरे ऑपरेशन की देखभाल और पल्प की क्वालिटी चेक करती हैं. इससे महिलाओं को लीडरशिप का मौका मिल रहा है. 

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Image Credits : The Better India - Hindi

सीताफल से बन रहे आइसक्रीम और शेक्स

साल 2015 में कंपनी का टर्नओवर सिर्फ पांच लाख रुपए था. 2022 में यह बढ़कर सत्तर लाख हो गया. राजस्थान (Rajasthan), मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और गुजरात (Gujrat) में पल्प का इस्तेमाल आइसक्रीम बनाने में  होता है. टॉप एन टाउन (Top N Town) जैसे ब्रांड्स कस्टर्ड एप्पल आइसक्रीम और शेक्स बनाते हैं. साथ ही सीताफल के अलग-अलग व्यंजन जैसे रबड़ी, बासुंदी बनाने के लिए 70% गूदे का इस्तेमाल होता है.

महिलाओं के पास रोजगार होने से वह आर्थिक सशक्तिकरण की तरफ बढ़ने के साथ, अन्य व्यवसाय और सामाजिक मुद्दों पर भी काम करने में सक्ष्म हो रही हैं. इससे जुड़ महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने  गुलाबी गैंग (Gulabi Gang) बनाया, जिसका उद्देश्य शराबखोरी को खत्म करना था. महिलाओं ने अपने बच्चों के साथ खुद को भी शिक्षित करना शुरू कर दिया है.

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