स्वयं सहायता समूह महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने के एक प्लेटफार्म उपलब्ध करते है बिना किसी भेदभाव के. समूह एक जरिया है महिलाओं के लिए अपनी ज़िन्दगी को बदलने का. ज़िन्दगी में चुनौतियों और उतार-चढ़ाव के पल आते है और ऐसे ही कुछ पल आए रीना की ज़िन्दगी में भी. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) फ़र्रुख़ाबाद (Farrukhabad) के कंधरापुर (Kandharapur) की रहने वाली रीना ने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपनी ज़िन्दगी को रौशनी से भर दिया. रीना (Reena) का यह सफर आसान नहीं था, पर उन्होंने हौशला नहीं खोया.
संघर्षों से गुजरते हुए
रीना पति की ब्लड कैंसर (Blood Cancer) से मौत के बाद टूट गई थी. पति के इलाज़ के लिए उन्होंने लोगों से पैसे उधार लिए, जिसके कारण उन पर काफी कर्ज भी हो गया था. रीना पर मानों पहाड़ सा टूट गया. उनकी सबसे छोटी बेटी तब सिर्फ पांच महीने की ही थी. रीना पर परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी और कर्ज उतारने का भार था पर उन्होंने हार नहीं मानी.
SHG से जुड़कर नई शुरुआत
रीना कुछ समय बाद सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़कर सिलाई का काम सीखने लगीं. आगे बढ़कर उन्होंने खुद का समूह अंबेडकर महिला Self Help Group बनाया. जिसमे उन्होंने ग्यारह महिलाओं को समूह में जोड़ा. समूह की मदद से CLF लोन लेकर उन्होंने सिलाई मशीन ली और घर के कपड़ों के साथ-साथ स्कूल के यूनिफार्म भी सिलने लगीं. रीना समूह की अन्य महिलाओं को भी सिलाई सिखाने लगीं. SHGs से जुड़ी कई महिलाओं के लिए उन्होंने दुकान खुलवाने में मदद की और अन्य रोजगार से जोड़ा. जिससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिल सके.
महिलाओं को जोड़ रहीं आजीविका मिशन से
ब्लॉक लेवल पर रीना ने नौ ग्राम पंचायतों की महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) से जोड़ा साथ ही नवाबगंज (Nawabganj) और बढ़पुर ( Barhpur) की महिलाओं को भी जागरूक कर रहीं है. रीना बताती है कि, समूह से जुड़कर महिलाएं आर्थिक सशक्तिकरण के साथ आत्मनिर्भर और सशक्त होंगी. रीना की यह प्रेरणादायक कहानी हमें सिखाती है कि, चुनौतियों से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना कर हम अपने जीवन को मजबूत बना सकते है.