स्मिता पाटिल (Smita Patil), एक ऐसा नाम जो देश में आज भी अपनी अदाकारी, फेमिनिज़्म (Feminism in india), और परफेक्शन के लिए जाना जाता है. भले ही उनका सफर हमारे साथ बहुत छोटा रहा हो, लेकिन स्मिता ने अपने जीवन के 31 साल में लोगों पर ऐसी छाप छोड़ी, जो आजतक बरक़रार है. स्मिता अपने वक़्त की ऐसी अदाकारा थी, जिनकी कला के सब क़ायल थे.
Smita Patil को Bhoomika और Chakra के लिए मिले national award
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उन्हें अपनी दो फिल्मों (Smita Patil Best films) के लिए नेशनल अवार्ड (National Award winning films) से नवाज़ा गया. ऐसे समय में जब नारीवादी आंदोलन भारत में काफी नवजात था और फिल्म उद्योग सामाजिक विषयों और पारंपरिक विषयों के बीच संघर्ष कर रहा था, स्मिता पाटिल जानती थी, उन्हें क्या और क्यों करना है. स्मिता पाटिल के पास कला फिल्मों के लिए एक अंदाज़ था, और वे ऐसी भूमिकाएँ निभाती थीं जो भारत में सामाजिक न्याय के कारणों और महिलाओं के संघर्ष को दर्शाती हों.
Smita Patil का बचपन
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1955 में एक राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता शिवाजीराव पाटिल के घर में जन्मी स्मिता (Smita patil childhood), बचपन से ही दूसरों के लिए जीना सीखी थी. उनके माता-पिता ने स्मिता को राष्ट्र सेवा दल (RSD) में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने घर वालों की बात मानकर जब स्मिता इस दल से जुड़ी तो उन्होंने कई भारत दर्शन और महाराष्ट्र दर्शन यात्राओं में भाग लिया, दूरदराज़ के गांवों में लोगों का मनोरंजन करने, उन्हें शिक्षित करने और उनकी सेवा करने के लिए नाटकों का भी प्रदर्शन किया.
Smita patil की पहली फिल्म
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भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान से graduate होने के बाद, वह दूरदर्शन (Doordarshan) के लिए एक न्यूज़रीडर बन गईं. ऑफर आने शुरू हो गए और उन्हें फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) द्वारा चरणदास चोर (Charandas Chor 1975) में उन्हें एक रोल दिया गया जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मुख्य किरदार के रूप में स्मिता पाटिल की पहली फिल्म मंथन (1976) थी, जिसमें उन्होंने हरिजन विद्रोह का नेतृत्व करने वाली एक महिला की भूमिका निभाई.
Smita patil की फिल्म्स
वे कला फिल्मों में एक्टिंग करते वक़्त खुद को पूरी तरह उसमें ढाल लेतीं थीं और ऐसी भूमिकाएँ निभाती थीं जो भारत में लाखों महिलाओं के वास्तविक जीवन संघर्षों को चित्रित करती हों. भूमिका (1977), चक्र (1981), मंडी (1983), अर्थ फिल्म(1982), और अंबरथा (1982) जैसी कुछ फिल्मों में उनका प्रदर्शन है जो मजबूत महिला नेतृत्व और असामान्य महिला पात्रों को चित्रित करतीं है. वे parallel cinema movement की जानी मानी अदाकारा थी. कला फिल्मों में कई निर्देशकों के साथ काम करने के बाद स्मिता ने व्यावसायिक फिल्मों की ओर भी रुख किया.
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अपने को-एक्टर (Co-Actor) राज बब्बर के साथ उन्होंने शादी की और पहली संतान (प्रतीक बब्बर) को जन्म देने के 2 हफ्ते बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी. उनके जाना सबके लिए एक बहुत बड़ा धक्का था. Bollywood industry के 100 साल पूरे होने के अवसर पर स्मिता की याद और सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया. 2012 में उनके योगदान को मनाने के लिए, Smita Patil Documentary and Short Film Festival भी आयोजित किया गया.
स्मिता एक ऐसी महिला का आदर्श उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने विशेषाधिकार को समझा और इसका उपयोग उन लोगों की मदद करने के लिए किया जिनके पास यह सुविधा नहीं थी. स्मिता को आज भी याद करते है, तो उनकी कला और परदे पर उनकी अदा को सराहे बिना बात पूरी नहीं होती.