/ravivar-vichar/media/media_files/w29EAFvKHHjhjNNjwCrE.jpg)
'बेटियों का बाटी-चौखा' रेस्तरां का स्वागत गेट जहां महिला गार्ड ड्यूटी पर (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
बेटियों के रेस्तरां में अपनेपन का स्वाद
/ravivar-vichar/media/media_files/VGZu4a5WlDWF3GHAeUql.jpg)
बाटी-चौखा में अंदर का खूबसूरत ट्रेडिशनल नज़ारा, जहां आर्ट और बैठक (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
मद्धम रोशनी और ट्रेडिशनल (Traditional) अंदाज़ में बेटियां मनुहार कर कभी दाल तो कभी बाटी तो कभी चटनी परोसती हैं. अंदर किचन में काम कर रहीं भी महिलाओं का अपना तरीका. मेहमानों के स्वागत का अंदाज़ मन को भावुक करने वाला. इस नज़ारे ने साबित कर दिया कि जहां बेटियों और महिलाओं के हाथ में कमान होगी वहां भोजन में घर जैसा स्वाद भी होगा और प्रेम का अहसास भी...सबसे ख़ास बात यहां बेटियां या परिवार ही मेहमान बन कर आ सकते हैं. केवल पुरुष के लिए यहां कोई इंट्री नहीं. गेट पर लाठी लेकर खड़ी दादी पूछ लेती है,अकेले हो या परिवार के साथ.यह सब कुछ है उत्तर प्रदेश के बनारस (Banaras) के नेशनल हाई-वे 2 (National High Way 2)पर डाफी टोल प्लाजा (Toll Plaza) के पास बने 'बेटियों का बाटी-चौखा' (Betiyon Ka Bati-Chokha) रेस्तरां (Restaurant) पर.यहां भोजन के साथ बेटियों के अपनेपन का अहसास भी है.
महिलाओं की ताकत और रेस्तरां की महक
महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) का उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में यह सबसे बड़ी मिसाल है. बनारस (Banaras) के इस रेस्तरां (Restaurant) में 50 से ज्यादा महिलाएं रोजगार से जुड़ीं हैं. इस रेस्तरां (Restaurant) में बनने वाले भोजन की महक बाहर तक महसूस की जा सकती है. आत्मविश्वास से भरपूर प्रतिभा पटेल और प्रियंका कहती हैं -"यहां ऑर्गेनिक सब्जियों (Organic Vegetables) का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह भी हम लोग हमारे समूह की महिलाओं के खेत से ही पहले सब्जियां ख़रीदते हैं. महिलाएं ट्रेडिशनल (Traditional) तरीके से खाना बनाती हैं.और हम सभी हर मेहमान का ध्यान रखते हैं. यहां सभी लोग सभी काम जानते हैं, फिर भी सुविधा के लिए काम तय कर लिए.यहां बाटी में स्पेशल सत्तू और पनीर मिलाया जाता. शुद्ध घी भी यहीं तैयार किया जाता.मेहमानों की पसंद के अनुसार थाली और रेट हैं."
ट्रेडिशनल खूबसूरत लुक
/ravivar-vichar/media/media_files/TXK6rPNuHXMTadL5a5hc.jpg)
मेहमानों को नीचे बैठा कर चौकी पर परोसते हैं भोजन (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
बाटी-चौखा में अंदर का खूबसूरत ट्रेडिशनल नज़ारा, जहां आर्ट और बैठक
हाईवे (High Way ) पर बनी हवेली और अंदर की ट्रेडिशनल सजावट ने इस रेस्तरां को अलग ही पहचान दिला दी. यहां की ट्रेडिशन आर्ट(Traditional Art), दीवारों पर टंगे लालटेन और नीचे आसन पर बैठा कर पत्तल-दोने में भोजन परोसा जाता.और यही रेस्तरां (Restaurant) को अलग और खूबसूरत बनाता है.
इस रेस्तरां में कई सालों से जुड़ीं शकुंतला दादी बताती है- "पहले मिर्ची हो या मसाले हमारी दादी-नानी ओखली में पिसती थी. पत्थर के बने सिल-बट्टे पर चटनी बनाती...और यहां तक कि गेहूं भी सुबह जल्दी उठकर पिसती. दाल-बाटी कंडे और चूल्हे पर बनाती. पुरानी पीढ़ी के लोग आज भी आज भी उस स्वाद को याद करते नहीं भूलते. आज भी यही ही स्वाद और वही नज़ारा हमारे देखने को मिलता है."
बेटियों को समर्पित
दरवाज़े पर ही मुंडेर वाले कुएं से बाल्टी में पानी निकाल कर महिला कर्मचारी मेहमानों के हाथ-पैर धुलवाती है.स्वागत के बाद अंदर बुलाया जाता है. इस रेस्तरां में काम करने वाली मीना, किरण, सुनीता, अनामिका कहती हैं- कुछ युवाओं ने इसे तैयार करवा कर महिलाओं को समर्पित किया. नैनपुर, टिकरी जैसे कई गांव की किसान दीदी की ऑर्गेनिक सब्जियों (Organic Vegetables) के कारण वे भी आत्मनिर्भर हुईं.कुछ लड़कियां इस कमाई से आगे पढ़ाई भी कर रहीं.अब यहां बेटियों की रौनक ने बनारस को नई पहचान दी.
/ravivar-vichar/media/agency_attachments/lhDU3qiZpcQyHuaSkw5z.png)
Follow Us