कागज़ और मिट्टी को बनाया कमाई का ज़रिया

कभी रद्दी की तरह फेंक देने वाले पेपर को इस तरह सजाया और बनाया कि वह मूल्यवान हो गया. इस रद्दी पेपर ने कई महिलाओं की ज़िंदगी में खुशियां ला दीं. यही नहीं महिलाओं ने मिट्टी का भी ऐसा ही उपयोग किया जिससे उनकी मिट्टी का मोल मिल गया.

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मेले में  दुर्ग के कुम्हारी समूह ने टेराकोटा से बनाए प्रोडक्ट रखे (Image Credit: Ravivar Vichar)

कागज़ और मिट्टी को बनाया कमाई का ज़रिया 

कभी रद्दी की तरह फेंक देने वाले पेपर को इस तरह सजाया और बनाया कि वह मूल्यवान  हो गया. इस रद्दी पेपर ने कई महिलाओं की ज़िंदगी में खुशियां ला दीं. यही नहीं महिलाओं ने मिट्टी (Clay) का भी ऐसा ही उपयोग किया जिससे उनकी मिट्टी का मोल मिल गया. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की कुम्हारी कस्बे में महिलाओं ने अब आत्म सम्मान से जीना सीख लिया.दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) ने इन महिलाओं के घर के हालत बदल दिए.

सुंदर लिफाफे और प्रोडक्ट्स की मांग  

दुर्ग (Durg) के कुम्हारी (Kumhari) नगर पालिका (Nagar Palika) की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से जोड़ कर दीनदयाल अंत्योदय योजना का लाभ दिया. गांव के रुद्राक्ष समूह (SHG) की हेमा परमार कहती हैं- "मैंने तो सोचा भी नहीं था कि रद्दी पेपर से हमारी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी. हम साथियों के साथ बहुत मेहनत से कागज़ के लिफाफे तैयार कर उन्हें सजाते हैं. इस पेपर से कई दूसरे आइटम भी बनाते हैं." अलग तरीके से आइटम बनाने के कारण इनकी मांग बढ़ी है.

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समूह सदस्यों द्वारा पेपर प्रोडक्ट बताते हुए (Image Credit: Ravivar Vichar)

चावल के दानों से राखियां !

दुर्ग (Durg) जिले का कुम्हारी (Kumhari) क़स्बा राखियां के निर्माण को लेकर भी खास चर्चा में आ गया.मां शीतला स्वयं सहायता समूह (SHG) की विद्या चक्रधारी बताती है- "मैं तो घरेलु महिला थी. अलग से कमाई के लिए कोई अलग रास्ता नहीं था. नगर पालिका ने हमें समूह से जोड़ा. हम सदस्यों ने धान और चावल के दानों से राखियां को सजाना सीखे. बैच बनाए. इसकी मांग बहुत बढ़ गई. इसके अलावा मिट्टी के अलग-अलग आइटम भी बना रहे. टेराकोटा, सुंदर जूलरी सहित बर्तन और दीए बनाकर सी- मार्ट तक पहुंचाए."

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धान और चावल के दानों से सजाई गई राखियां (Image Credit: Ravivar Vichar)

ट्रेनिंग से हुईं परफेक्ट

घरेलु महिलाओं को समूह से जोड़ना कठिन था. इस योजना से जुड़े मिशन मैनेजर शरद कुमार सिंह बताते हैं- "सभी महिलाएं या तो मजदूरी पर जातीं या घरेलु ज़िंदगी जी रहीं थीं. हमने कई समूह बनवाए.एक्सपर्ट लोगों से ट्रेनिंग दिलवा कर समूह की सदस्यों को काम में परफेक्ट कर दिया.सी- मार्ट मॉल में भी इन आइटम की मांग बढ़ी. जिला प्रशासन ने इसे सराहा है" नगर पालिका के सीएमओ (CMO) जितेंद्र कुशवाहा कहते है- "महिलाओं को लाभ देने से पहले मानसिक रूप से तैयार करना बड़ी चुनौती थी. टीम वर्क से इस मिशन में सफल हुए. महिलाओं की आर्थिक स्थिति में बदलाव हुआ."

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मिट्टी से बनाई ख़ास जूलरी (Image Credit: Ravivar Vichar)

 

समूह की बढ़ी संख्या 

यहां समूह की संख्या लगातार बढ़ रही. महिलाएं खुद अब समूह से जुड़न चाहती हैं. नगर पालिका के अध्यक्ष राजेश सोनकर कहते हैं- "महिलाओं का जीवन पूरी तरह से बदला. उनमें आत्मविश्वास आ गया. वे भी परिवार में पूरा सहयोग दे रही. जरूरत पड़ी तो और भी रोजगार के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी." रुद्राक्ष समूह में ही आरती तिवारी, रीमा यादव, रीना, निकिता परमार, सरिता चौधरी और रीता लोधी भी जुड़ कर कारोबार कर रहीं हैं .यही नहीं दूसरे मां शीतला समूह में उर्मिला और पुष्प निषाद ने भी काम सीख कर मिट्टी के आइटम बना रही

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