पारंपरिक बायोमास स्टोव (traditional biomass stove) महिलाओं के स्वास्थ्य (women's health) पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. इस चुनौती से निपटने के लिए झारखंड (Jharkhand) के लोहरदगा जिले के खखपरता गांव की उषा ओरांव (Usha Oraon) ने मोर्चा संभाला.
JSLPS और HOPE द्वारा आयोजित जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम ने बढ़ाया आत्मविश्वास
ऊषा, क्लीन कुकिंग (promoting clean cooking in rural areas) को बढ़ावा देने के लिए गृहिणी से जमीनी स्तर की लीडर बन गई. बदलाव लाने का उनका सफर ज्ञान, सशक्तिकरण और खाना पकाने के बेहतर विकल्पों की खोज की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है.
दिसंबर 2021 में, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) और HOPE द्वारा आयोजित जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम उषा के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. पहली बार, उन्हें सार्वजनिक रूप से अपने विचार साझा करने का अवसर मिला, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ गया.
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चूल्हे के धुएं में सांस ले रही महिलाओं के लिए काम कर रही ऊषा
इस कार्यक्रम के ज़रिये ऊषा को बायोमास स्टोव के लगातार उपयोग से महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में पता चला (harmful effects of biomass stove). इस इवेंट ने उषा को घरों में ईंधन के उपयोग से जुड़े सर्वेक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया. इस सर्वे का लक्ष्य महिलाओं को LPG जैसे स्वच्छ ईंधन (LPG- clean fuel) अपनाने से रोकने वाली बाधाओं को समझना था.
उषा साझा करती है, "मेरा मिशन अपने जैसी सैकड़ों महिलाओं के जीवन को आसान बनाना है, जो हर दिन चूल्हे के धुएं में सांस ले रही हैं."
Cleaner Air Better Health Project में हुई शामिल
अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए उषा क्लीनर एयर बेटर हेल्थ प्रोजेक्ट में शामिल हुईं, जो यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) द्वारा फंडेड है जिसे Asar और HOPE लागू कर रहा है. एक 'परदाना दीदी' (आगे बढ़ने वाली बहन) के रूप में, उन्होंने स्वच्छ खाना पकाने की प्रथाओं की वकालत करते हुए जागरूकता सत्र आयोजित किए.
उषा ने सक्रिय रूप से JSLPS के तहत क्लस्टर स्तरीय संघों की अध्यक्ष के रूप में अहम भूमिका निभाई और महिलाओं के लिए मौजूद आजीविका विकल्पों पर चर्चा शुरू की. उन्होंने महिलाओं को विभिन्न सरकारी योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा लाभों से जोड़ा, जिससे उन्हें पशुपालन जैसे छोटे व्यवसाय शुरू करने में मदद मिली.
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374 महिलाओं को जोड़ा 28 स्वयं सहायता समूहों से
उषा गर्व से कहती हैं, "धीरे-धीरे, हम कई महिलाओं को अपनी नई आजीविका से होने वाली आय के साथ होते बदलाव की ओर बढ़ते देख रहे हैं."
उषा बताती हैं, "जून 2022 में, मैंने दो महिलाओं को सुअर पालन शुरू करने के लिए ऋण दिलाने में मदद की. उन्होंने दो सूअर के बच्चे खरीदे और मिट्टी से उनके लिए आश्रय बनाया. सुअर पालन से होने वाली कमाई से उन्होंने LPG सिलेंडर खरीदा."
चार पंचायतों को कवर करते हुए और 374 महिलाओं के साथ 28 स्वयं सहायता समूहों की देखरेख करते हुए, उषा समुदाय से जुड़ी रहती है और स्वच्छ खाना पकाने के तरीकों को अपनाने में उनकी प्रगति की निगरानी करती है.
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आर्थिक आज़ादी की ओर महिलाओं को कर रही प्रेरित
"मुझे उम्मीद है कि हर महिला स्वच्छ हवा में सांस ले सकेगी और जल्द ही आर्थिक रूप से स्वतंत्र भी हो जाएगी," उषा कल्पना करती है.
उषा ओरांव की यात्रा दर्शाती है कि शिक्षा, जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता कैसे सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत कर सकती है. उनकी कोशिशों की वजह से खाखपरता में कई महिलाएं अब स्वच्छ हवा में सांस ले रही हैं और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ रही हैं.