Uttarakhand के पहाड़ों में उगने वाली Natural बिच्छू बूटी को GI (Zeographical Indication) टैग मिल गया. इस स्थानीय बोली में बिच्छू बूटी को कंडाली भी कहा जाता है. एक्सपोर्ट की संभावनाओं के कारण डिमांड बढ़ेगी.
Nettle Leaf Products ने National level Exhibition में बनाई जगह
Uttarakhand Nettle Leaf और Plants यानि बिच्छू बूटी,बिछुआ बूटी की अचानक मांग बढ़ गई. Uttarakhand की कुछ संस्थाओं ने इससे तैयार जैकेट,मफलर और स्टोल्स को National Level Exhibition में रखे. चमोली जिले के मंगरौली गांव में Rural India Craft Institute और उत्तरकाशी जिले के भीमतल्ला में जयनंद उत्थान समिति ने नेटल फाइबर से जैकेट, शॉल, स्टोल बनाए. संस्थाओं ने America, Netherland, New Zealand में ये सैंपल भेजे. लगातार प्रयास से इस प्राकृतिक पौधे Nettle fibers को GI Tag मिला. साल 2018 में उद्योग विभाग के प्रयासों से कंडाली के पौधे से रेशा तैयार किया.
पहाड़ों में SHG WOMEN कर रहीं Nettle Tea तैयार
Nettle Leaf को तोड़कर चाय पत्ती तैयार करने वाली चमोली जिले के थिरपाक गांव की नंदाकिनी स्वयं सहायता समूह की लक्ष्मी रावत (Lakshmi Rawat) बताती है- "हम जंगलों से बिच्छू बूटी तोड़कर लाते हैं. इस पत्तियों को सूखा कर चाय के लिए पत्ती तैयार करते हैं. चाय पत्ती की मांग बढ़ने से हमारी कमाई और बढ़ेगी."
Nettle Fibers (Image Credits: Amar ujala)
इसके अलावा गांव के लोग कई तरह की बिमारियों को दूर करने में भी इसका उपयोग करते हैं. टिहरी जिले के देवप्रयाग ब्लॉक के रूमधार और जाखणीधार के सुनहरीगाड़ में भी Ajeevika Mission से जुड़ी महिलाएं नेटल टी (चाय) बना रहीं. पौड़ी गढ़वाल जिले के मुरान्यू गांव की मीनाक्षी देवी बताती है- "हमने नंदा देवी महिला स्वयं सहायता समूह बनाया. मैं कंडाली से चाय प्रोडक्शन तैयार करती हूं. नर्सरी में कई तरह के पौधे तैयार कर बेचती हूं.Ajeevika Mission से हमको बहुत लाभ हो रहा."
पौड़ी जिले में कंडाली (Bicchu Buti) से चाय तैयार की जा रही. Uttarakhand Self Help Group की महिलाओं की आर्थिकी मजबूत हो रही. परियोजना निदेशक DRDA के संजीव कुमार राय ने बताया- NETTLE TEA से समूह की महिलाएं 10 हजार रुपए तक कमा रहीं. हम समूह को और प्रोत्साहित कर रहे."
Nettle Fibers के products से बढ़ रही कमाई
मंदाकिनी बुनकर समिति बिच्छू बूटी से सोफा कवर, मैट के साथ ही ऊन को मिलाकर जैकेट बना रहे. बाज़ार में इसकी कीमत 2500 से 3 हजार रुपए तक होती है. मंदाकिनी समिति के संस्थापक डाॅ. हरिकृष्ण बगवाड़ी का कहना है- "बिच्छू बूटी के धागे को तैयार करने की प्रक्रिया कठिन है, जो आज भी पारंपरिक तरीके से किया जाता है.एक क्विंटल बिच्छू बूटी से 25 से 30 किलो रेशा तैयार होता है. जिसकी कीमत तीन से चार हजार रुपये किलो तक होती है."
मीनाक्षी कंडाली की पत्तियां पैक के साथ (images: Ravivar Vichar)
दो से तीन मीटर लंबे इसके पेड़ की डालियों को तोड़ कर छोटा किया जाता है.उबाल कर साबुन घोल और दूसरी प्रक्रिया से गुजार कर रेशा बनाया जाता है. रेशे से आइटम्स बनाए जाते हैं.
बिच्छू बूटी को tag मिल जाने से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को एक नया रोजगार मिलेगा.