कड़कनाथ से महिलाएं कर रही कड़क नोटों की कमाई

स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इस कारोबार से बड़े स्तर पर जुड़ गईं. कड़कनाथ मुर्गा पालन इस समय नॉनवेज पसंद करने वालों के लिए कड़कनाथ मुर्गा पहली पसंद बन गया. यही वजह इसकी कीमत दूसरे मुर्गे और चूजों से ज्यादा है.  

New Update
kadaknath

मंडली गांव में हाई-वे किनारे रखे कड़कनाथ के साथ समूह (Image Credit: Ravivar Vichar)

हाई-वे की पहचान बनी कड़कनाथ रोड  

झाबुआ (Jhabua)के इंदौर-अहमदाबाद हाई-वे किनारे बसा मिंडल  (Mindal) गांव. इस गांव के सड़क किनारे पिंजरे में कड़कनाथ (Kadaknath) मुर्गे दिखाई दे जाएंगे. मोहन समूह (SHG) की अध्यक्ष बल्ली बाई कहती है- "हमारे गांव महिलाएं पहले मजदूरी करती थी. कुछ चूजे लाकर बेच लेती. समूह बना कर काम किया. मैं खुद 30 हजार रुपए महीने कड़कनाथ मुर्गे-चूजे से कमा लेती हूं." इस गांव में 11 समूह बनाए गए. मंडली गांव की ही समूह सदस्य किना बाई भी अब खुश है. किना बताती है- " शुरू में कुछ काम नहीं था. समूह से लोन मिल गया.चूजे लाए और बढ़े किए. अलग से हाई-वे पर भी हम लोग कड़कनाथ बेचते हैं. ये 800 से 900  रुपए पर एक नग का बिकता है. मेरी कमाई 35 हजार रुपए महीने तक हो रही." प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में महिलाएं कड़कनाथ से अब 'कड़क नोटों' की कमाई कर रही. पिछड़े जिले की गिनती वाले इस झाबुआ (Jhabua) जिले की महिलाओं ने साबित कर दिया की वे भी कारोबार कर सकती हैं. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाएं इस कारोबार से बड़े स्तर पर जुड़ गईं. 

kadaknath

कड़कनाथ मुर्गों को दाना चुगाती समूह की महिला (Image Credit: Ravivar Vichar) 

जीआई टैग से बढ़ी पहचान   

बड़ी जद्दोजहद के बाद आखिर झाबुआ जिले को ही कड़कनाथ मुर्गा प्रजाति के लिए जीआई टैग (Zeographical IndicationsTag) मिला. इस प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)  दंतेवाड़ा में भी इस प्रजाति के खास पालन-पोषण के साथ जीआई टैग (GI Tag) का दावा किया था. केवल झाबुआ ब्लॉक में 21 सौ समूह हैं. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) की ब्लॉक मैनेजर (BM) तृप्ति बैरागी बताती है- "जिले में महिलाओं ने कड़कनाथ के कारोबार को बहुत अच्छे से संभाला. पूरा परिवार साथ दे रहा.हम कोशिश कर रहे कि समूह की महिलाएं हैचरी भी संचालित करें." मिंडल  (Mindal) गांव सेक्टर की सहायक ब्लॉक मैनेजर (ABM) कविता कानूनगो खुद लगातार इस इलाके में समूह की महिलाओं के साथ काउंसलिंग और समस्यों का निराकरण करती है.

kadaknath

मंडली गांव में काउंसलिंग करती बीएम और एबीएम आजीविका मिशन  (Image Credit: Ravivar Vichar) 

युवाओं का बढ़ रहा रुझान 

जिले में केवीके (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) के वैज्ञानिक (Scientist) और कड़कनाथ (Kadaknath) फॉर्म और हैचरी के इंचार्च डॉ.चंदन कुमार बताते हैं- "जिले के ऐसे युवा जो एग्रीकल्चर से दूर हुए,उन्हें कड़कनाथ पालन से जोड़ रहे. प्रति सप्ताह 50 यूथ को ट्रेनिंग दी जा रही. हमारे कैंपस में 10 हजार अंडे की हैचरी है. देशभर में कड़कनाथ सप्लाई किआ जा रहा. एग्स की पैकेजिंग कर इंदौर भेजा जा रहा." हमारे अलावा कई संस्थाएं इस कारोबार को को कर रहीं.कड़कनाथ मुर्गे में दूसरी प्रजाति के चिकन की तुलना में हाई प्रोटीन और लो कोलेस्ट्रॉल होता है.मेडिसनल गुण होने के कारण भी यह पहली पसंद है. इस समय नॉनवेज पसंद करने वालों के लिए कड़कनाथ मुर्गा पहली पसंद बन गया. यही वजह इसकी कीमत दूसरे मुर्गे और चूजों से ज्यादा है.

एक जिला एक उत्पाद में कड़कनाथ की शान 

झाबुआ को इस कुक्कुट प्रजाति को एक जिला एक प्रोडक्ट (One District One Product) में शामिल होने के बाद शान बढ़ गई. जिला प्रशासन खास फोकस कर रहा. कलेक्टर (DM) तन्वी हुड्डा (Tanvi Hudda) का कहना है- "झाबुआ के इस प्रोडक्ट को कारोबार की दृष्टि से नई दिशा मिली. महिलाओं को रोजगार के नए अवसर मिल रहे. हम इसमें महिलाओं को और अधिक मार्केटिंग की ट्रेनिंग दे रहे. हमने वेबसाइट भी बनाई. ऑनलाइन भी सप्लाई किया जा रहा.  महिलाएं आत्मनिर्भर और आत्मसम्मान की तरफ बढ़ रहीं." 

kadaknath dm

झाबुआ डीएम तन्वी हुड्डा   (Image Credit: Ravivar Vichar)       

झाबुआ कड़कनाथ कलेक्टर Jhabua One District One Product DM तन्वी हुड्डा Tanvi Hudda Kadaknath एक जिला एक प्रोडक्ट केवीके भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद वैज्ञानिक Scientist