सेवा के वंदनीय प्रयास का नाम वंदना

कहानियां - वंदना पाटीदार के नेतृत्व से खरगोन (Khargone) के भीकनगांव (Bhikangaon) जिले में स्वयं सहायता संगठन (Swayam Sahayata Sangathan) में बाइस समूहों में 230 महिलाएं काम कर रही है.

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हेमा वाजपेयी
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vandana patidar shg

Image Credit : Ravivar Vichar

हमारे समाज में बहुत कम महिलाएं  है जो अपने आप को पीछे रख कर समाज के लोगों और उनकी भलाई के लिए काम करना चाहती है ऐसी ही एक कहानी है वंदना पाटीदार की. वंदना एक ऐसा नाम जो गांव की महिलाओं और युवाओं को आर्थिक सहायता दे रही है. गांव के आखिरी व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने की पहल वंदना ने की है और उसमें वह सफल भी रही है.

वंदना का बचपन

वंदना का बचपन एक ऐसे परिवार में गुज़रा जहां मेहनत, लगन और सेवा में सभी जुटे हुए थे. परिवार से मिली शिक्षा ने ही उन्हें आगे चलकर महिलाओं के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया. फिर आया उनके सामने कुछ कर गुजरने का उदाहरण, जब १० साल की वंदना ने अपनी मां को 1985 में महिला मंडल (Mahila Mandal) बनाते हुए देखा. ग्रामीण महिलाओं पर सरकारी ध्यान उस ज़माने में न के बराबर था, फिर भी उन्होंने महिला बाल विकास (Mahila Bal Vikas) की मदद से सिलाई सेंटर की शुरुआत कर दी. आगे जाकर 1999 में उन्होंने पहला समूह बनाया. वंदना ने सामाजिक मुद्दों पर काम करने की सीख़ अपनी माँ से ही ली. उनका पूरा परिवार उच्च शिक्षित होने के बाद भी गांव में रहकर ही सेवा में लगा हुआ है.

वंदना पाटीदार के नेतृत्व से खरगोन (Khargone) के भीकनगांव (Bhikangaon) जिले में स्वयं सहायता संगठन (Self Help Organizations) में बाइस समूहों में 230 महिलाएं काम कर रही है. पहले ये महिलाएं खेत मजदूरी के कामों में लगाई हुई थी और आज Self Help Group (SHG) से जुड़कर अपना खुद का काम कर रही है. समूह में औरतें अलग-अलग बैंको से रिवॉल्विंग फण्ड (Revolving Fund) और लोन (Loan) लेकर अपने व्यवसाय कर रही है. इसमें HDFC बैंक ने इन महिलाओं की बहुत मदद की.

वंदना की इस कहानी में नया मोड़ तब आया, जब 20 वर्षो बाद अपने ही गांव में ट्रांसफर हुआ. अपने अनुभवों के साथ पूरी लगन से गांव की सेवा में लग गयी. शुरुआत गांव की बुजुर्ग महिलाओं से की, समूह बनाये फिर लोन प्रक्रिया में मदद की और ऐसे शुरआत हुई गांव की महिलाओं के जुड़ने और उन्हें रोज़गार मिलने की. पुरे गांव में एक के बाद एक समूह बनने लगे और महिलाएं आत्मनिर्भरता और सशक्ता की राह पर चल पड़ी.

जो  महिलाएं घर से निकलती नहीं थी और परदे में ही अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रही थी, आज वही महिलाएं ग्राम पंचायत के कामों और चुनावों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है. गांव में आर्थिक तंगी की वजह से युवाओं में आत्महत्या चिंता का विषय था जिसका समाधान वंदना ने लोगो से बात करके उन्हें रोज़गार और आर्थिक मदद दिलाई. इस तरह सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी काम किया.

वंदना की सक्रियता और हौसला कुछ लोगों को रास नहीं आया इस वजह से उनके खिलाफ साज़िश भी की गई  और वह राजनीती का शिकार हुई, उनका ट्रांसफर कर दिया गया. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और साथ मिला गांव की महिलाओं का. इसी साथ ने उनका समाज के लिए काम करने के ज़ज़्बे को और बढ़ाया. आज वंदना का गांव उनकी मेहनत और निरंतर प्रयासों से आत्मनिर्भर और सशक्त बन गया है. पूरा गांव वंदना का साथ दे रहा है लगातार नयी ऊंचाइयों पर पहुंच रहे है.

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