प्रयागराज (Prayagraj) के महेवा टाउन में रहने वाली फातिमा बीबी कुशल कारीगर (weavers) और शिल्प उद्यमिनी है. घास के बाहरी धारी से अलग-अलग घरेलू उत्पाद बना कर बेचती है. उनके बनाये हुए उत्पादों को नई पहचान मिली है.
फातिमा बताती है कि, "जब वह छोटी थी तो उनकी सोच थी कि उनकी ज़िन्दगी की सीमा रसोई तक होगी पर जब उन्होंने कुछ करने का निर्णय लिया तो उन्हें परिवार का साथ मिला. वह काम करने के लिए अपनी मां से प्रेरित हुईं."
मूंझ बनाने से लेकर ट्रेनिंग शिविर का काम खुद कर रहीं है फातिमा
फातिमा दो बच्चों की मां है. वह मूंझ के उत्पादों को अलग-अलग रूप देकर टोकरी, कोस्टर, ट्रे, पेन स्टैंड, बैग, छोटे झूले, और अन्य सजावटी आइटम बना कर, महीने के सात हज़ार रूपए कमा लेती है. साथ ही नए खरीददारों को खोजना, ट्रेनिंग शिविर के आयोजन का काम भी खुद देख रहीं है. उन्होंने एंजेल स्वयं सहायता समूह बनाकर और महिलाओं को ट्रेनिंग दे रहीं है.
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फातिमा SHG महिलाओं को दे रहीं ट्रेनिंग
फातिमा की यह यात्रा आसान न थी लोगों के ताने सुने, समाज ने उनके चरित्र पर उंगली उठाई, उन्हें निचा दिखने की कोशिश की पर उन्होंने हिम्मत न हारी और परिवार के साथ से अपने काम में आगे बढ़ती रहीं. प्रयागराज जिले में मुस्लिम समुदाय का 13% है (नगरी जनगणना 2011), महेवा की मुस्लिम आबादी 1% से ज्यादा है। फातिमा सभी महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उनके लिए रोजगार के नए अवसर तैयार कर रहीं है.
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मूंझ बनाने में सरपट घास निभाती है मुख्य भूमिका
मूंझ के काम में सरपट घास मुख्य भूमिका निभाती है। कासा नाम की पतली रीढ़ घास, मूंझ को बांधने के लिए इस्तेमाल होती है. इस घास को टाइटली टाइड हैंडफुल्स में बेचा जाता है, यह घास नदी किनारों पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है और एक टुकड़े का मूल्य 5-10 रुपए होता है.
समूह से जुड़ी आयेशा बास्केट के ढक्कन बनाने के लिए एक तेज़ सुराही का इस्तेमाल कर घास की कटाई, खींचने और दबाने का काम करती है. आयेशा को काम करने की प्रेरणा अपनी सास से मिली. उन्होंने सबसे पहले जन्माष्टमी के लिए कृष्ण झूला बनाया.
आयेशा बताती है कि, घास की गहरी चुभन से उंगलियां कट जाती है. शुरुआती दिनों में परिवार के सभी लोग मूंझ के उत्पाद बनाकर बाजार में बेचकर हर दिन लगभग तीस रूपए कमाते थे, जो घर चालने के लिए पर्याप्त थे. दस साल पहले मूंझ की मांग कम होने से महिलाओं ने उत्पाद बनाना कम कर दिया.
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एक जिला एक उत्पाद योजना
2013 में, यूपी सरकार की एक जिला एक उत्पाद (One District One Product, ODOP) योजना में मूंझ को प्रयागराज का विशिष्ट उत्पाद चुना गया. जिससे मांग के साथ बिक्री भी बढ़ी. SHG महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उनके शिल्प को बढ़वा देने के लिए राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय मेलों का आयोजन भी किया जाता है.
CLF लोन लेकर SHG शुरू कर रहे व्यवसाय
फातिमा बताती है कि वह WhatsApp पर भी ऑर्डर लेती हैं और उससे हुईं कमाई को एसएचजी महिलाओं में बराबर बांटा जाता है। ODOP से महिलाओं की लोन तक पहुंच आसान हो गई है. स्वयं सहायता समूह की महिलाएं काम शुरू करने के लिए 10000 से 40000 रूपए तक का लोन लेकर व्यवसाय शुरू करती है.
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CLF लोन राशि में 25 % सब्सिडी दी जाती है यानि 25 % लोन राशि माफ़ कर दी जाती है. अगर इसे तीन महीने के अंदर जमा कर दे तो इस पर ब्याज भी नहीं लगता है.
Self Help Group सदस्य आसमा, प्रमुख शिल्पकार, जो अपने घर से 25 किमी दूर जाकर मूंझ से सामान बनाने की 90 सेल्फ हेल्प ग्रुप्स की महिलाओं को ट्रेनिंग देती है.
सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाएं समाज में समाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की ओर अग्रसर हो रही हैं। महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) के ज़रिये अपनी जरूरतों के लिए आवाज़ बुलंद कर समाज में बदलाव ला रहीं.