त्यौहार का मौसम है, और इन दिनों में महिलाओं का सबसे पसंदीदा काम होता है सजना सवरना. दिवाली (Diwali 2023) के दिन अपने घर की ज़िम्मेदारियों के साथ वे इस बात का भी ख्याल रखती है कि सबसे सुंदर दिखे. गहने उनकी शोभा और भी बढ़ा देते है और अगर ये गहने खुद महिलाओं ने ही बनाए हो तो बात कि कुछ और हो जाएगी.
बैगा आदिवासी महिलाओं के सुन्दर necklaces
ऐसा ही एक समूह है कान्हा टाइगर रिजर्व के किनारे बैहर, बंधाटोला गांव में. ये है बैगा आदिवासी महिलाओं (Adivasi female products) का एक समूह. ये महिलाएं अपनी आजीविका को बनाए रखने में मदद करने के लिए कांच के मोतियों से रंगीन हार बना रहीं है. पिछले साल बनाए गए स्वयं सहायता समूह, बाघिन अजीविका स्वसहायता समूह के सदस्यों (Tribal Women SHGs ) में से कई महिलाएं यहां हार बना रही हैं.
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नारंगी और हरे रंग की पोशाक पहने हिरोंदा बाई बताती है कि- "समूह के सदस्यों ने 2017 से अनौपचारिक रूप से आभूषण बनाने का काम किया है लेकिन अब वे आत्मनिर्भर हैं. राज्य सरकार के वन विभाग से 30,000 रुपये की प्रारंभिक सहायता के साथ, हिरोंदा बाई, गीता बाई, पिरमोतिन मरावी और सुगंती बाई अब पर्यटकों के बीच हार को लोकप्रिय बना चुकी है और कुछ पर्यटक सीधे इन महिलाओं से ही हार खरीदने आते है."
हार बनाना उनके लिए कोई नई बात नहीं है, क्योंकि बैगा पारंपरिक रूप से घर पर आभूषण बनाते हैं और अक्सर कई हार पहनते हैं, खासकर त्योहारों के दौरान. कान्हा से लगभग 100 किमी दूर डिंडोरी जिले की कई महिलाएं स्थानीय बाजारों से आभूषण बनाने के लिए कच्चा माल खरीदते है.
समूह की सदस्य और गांव के प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका सुनीता धुर्वे इस पहल का श्रेय मुंबई स्थित एक संगठन, लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन को देती हैं. इनके समूह में लगभग 12 महिलाएं हैं और ये सब हार के लिए आवश्यक कच्चा माल उनकी उच्च गुणवत्ता के लिए मुंबई के एक थोक विक्रेता से भी खरीदती है.
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आदिवासी महिलाओं के हार की कीमत है 3000 रुपए
ज़्यादा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इन महिलाओं ने अपने डिजाइन में थोड़ा बदलाव भी किया है. उनके मनके हार की कीमत लगभग 600 रुपये प्रति पीस और चांदी के सिक्कों वाले हार की कीमत 3000 तक है. लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन की निदेशक विद्या वेंकटेश के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य कान्हा टाइगर रिजर्व और उसके आसपास रहने वाले स्वदेशी समुदायों के लिए आजीविका के अवसर सुनिश्चित करना है.
विद्या वेंकटेश बताती है- "मैं इन महिलाओं में कुछ ऐसा खोजना चाहती थी जो उन्हें करना पसंद हो और भविष्य में भी जारी रहे. एक समय एक महिला ने अपनी शादी के दौरान मिले आभूषण दिखाए.और तब से ही हम आभूषण बनाते है और बेचते है." वह आगे बताती हैं- "पहले मेरा संगठन आभूषणों के लिए आवश्यक कांच के मोतियों की आपूर्ति करता था, लेकिन अब महिलाएं ऑर्डर देकर इसे स्वयं खरीदती हैं."
ये महिलाओं आत्मनिर्भर बन चुकी है और इसके साथ अपनी आजीविका का बेहतरीन स्त्रोत भी तैयार कर चुकी है.