गरीबी, सबसे गंभीर सामाजिक समस्याओं में से एक है (poverty social issues in india). गरीबी के दायरे में, एक भयावह श्रेणी मौजूद है जिसे 'गरीबों में सबसे गरीब' (extreme poverty) कहा जाता है. ये वे व्यक्ति हैं जिन्हें शोधकर्ता माइकल लिप्टन (Researcher Michael Lipton) ने 'अति-गरीब' के रूप में परिभाषित किया. 'अति गरीब' (extreme poor meaning) अपनी आमदनी का 80% भोजन पर खर्च करते हैं, और फिर भी बुनियादी कैलोरी ज़रूरतों (standard caloric needs) का 80% भी पूरा नहीं कर पाते.
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कौन हैं 'अति गरीब'?
माइकल लिप्टन ने उन्हें सामान्य गरीबों से अलग श्रेणी में रखा क्योंकि उनके पास अपनी दुखद परिस्थितियों को बदलने के लिए ज़रूरी कौशल (skills), संसाधन (resources) और सामाजिक नेटवर्क (social network) नहीं होता. इन परिवारों के पास बहुत कम या कोई संपत्ति नहीं होती. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और ज़रूरी सेवाओं तक पहुंच भी नहीं होती (poverty as a challenge).
सरकार द्वारा संचालित कई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (poverty alleviation program) उन तक नहीं पहुंच पाते. जिस वजह से ये गरीबी के अनंत चक्र में फंस जाते हैं. उनकी मुश्किलें नज़रअंदाज़ हो जाती हैं और वह बस सरकारी आंकड़ों का हिस्सा बन जाते हैं.
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क्या है अति-गरीबी से बाहर आने का रास्ता ?
अब सवाल उठता है कि कैसे इन्हें गरीबी के चंगुल से बचाया जा सकता है (remedies of poverty). अति-गरीबों के कल्याण के लिए की जाने वाली प्लानिंग में दो बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है (poverty solutions)-
1.सही परिभाषा
'अति-गरीब' की परिभाषा (extreme poor definition) राज्यों में अलग-अलग है. हर राज्य की अपनी अलग चुनौतियां हैं. राज्य सरकारें को चाहिए कि वह ऐसे परिवारों की पहचान करे, उनकी ज़रूरतों को पहचाने, और रणनीति तैयार करे.
2. ग्रेजुएशन अप्रोच
गरीबी के चंगुल से बाहर निकलने में सक्षम बनाने के लिए बहु-आयामी नज़रिये (multi-dimensional approach to solve poverty) की ज़रूरत है, जो ग्रेजुएशन दृष्टिकोण (graduation approach) से मिलता है.
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क्या है ग्रेजुएशन अप्रोच ?
ग्रेजुएशन दृष्टिकोण (graduation approach meaning), एक बहुआयामी और लगातार काम करने वाला मॉडल है. इसका लक्ष्य अति-गरीबों को गरीबी के चंगुल से बचाना है. इस मॉडल के चार अहम पिलर है: सामाजिक सुरक्षा (social security), आजीविका सृजन (livelihood generation), वित्तीय समावेशन (financial inclusion) और सामाजिक विकास/सशक्तीकरण (social empowerment).
मूल रूप से, यह मॉडल मुख्य रूप से अति-गरीब घरों की महिलाओं पर निर्भर करता है. इसमें इन परिवारों को आजीविका कौशल (livelihood skills) हासिल करने में मदद की जाती है जिससे रोज़गार शुरू करने में मदद मिले. कृषि (agriculture), पशुधन (livestock) जैसे छोटे उद्यम (small business) शुरू करने के योग्य बनते है. घरेलू स्तर की उद्यम (home level enterprise) योजना से जोड़कर, विकास सहायता देकर, अधिकारों की समझ बढ़ाकर, खाद्य और पोषण सुनिश्चित कर, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं (Health and education services) तक पहुंच को आसान बनाया जाता है. उनके सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों को दूर करने के लिए विशेष संस्थान स्थापित किए जाते हैं.
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अति-गरीबों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए बनाए गए किसी भी कार्यक्रम को सरकारी समर्थन मिलना ज़रूरी है. इससे कायक्रम को लागू करने में आने वाली चुनौतियां दूर होगी और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को लाभ मिल सकेगा. इस तरह की परियोजनाओं में समाज संगठनों, फंडर्स और नागरिकों का साथ भी ज़रूरी है.
द/नज इंस्टीट्यूट ने 400 ग्रामीण महिलाओं को अति-गरीबी से बाहर निकलने में की मदद
झारखंड (Jharkhand) के लातेहार, लोहरदगा और गुमला में द/नज इंस्टीट्यूट (The/Nudge Institute) के 'एंड अल्ट्रा पॉवर्टी' (end ultra poverty) कार्यक्रमों ने उदाहरण पेश किया है. ग्रेजुएशन अप्रोच के ज़रिये 400 ग्रामीण महिलाएं (rural women) सफलतापूर्वक अति-गरीबी से बाहर निकली हैं.
भारत के प्रमुख आजीविका शिखर सम्मेलन द/नज फोरम (The/Nudge Forum) द्वारा आयोजित 'चर्चा '23' में केपीएमजी ग्लोबल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (KPMG Global Services Pvt Ltd) ने भाग लिया. संयुक्त रूप से ग्रामीण आजीविका और अति-गरीबी उन्मूलन के लिए बेस्ट प्रेक्टिसेस पर सत्र की मेजबानी की. वे सबसे गरीब लोगों के जीवन को बदलने के लिए उदाहरण बने हैं.
भारत के दूसरे राज्यों में भी इस अप्रोच का इस्तेमाल कर गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को फिर से परिभाषित कर सफलता की दिशा में लागू किया जा सकता है.