हैरिटेज वाइन को विशेष दर्जा
आदिवासियों (Tribal) का खास हुनर महुआ (Mahua) से शराब (liqure) तैयार करने को लेकर सरकार ने को नया फ्लेवर दिया.आदिवासी संस्कृति (Tribal Culture) की खास पहचान महुआ (Mahua) से बनने वाली शराब को 'हैरिटेज वाइन' (Heritage Wine) का दर्जा दिया. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाओं को इस काम के लिए ख़ास लाइसेंस इश्यू करने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है. बैतूल (Betul) के आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) सुनील पंवार ने बताया- "जिले सभी आदिवासी ब्लॉक के जंगलों में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं महुआ बीनती हैं. हैरिटेज वाइन के लिए विभाग ने समूह के लाइसेंस इश्यू करने के लिए आबकारी विभाग को अनुशंसा कर दी."
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महुए के जंगल से महका जीवन
प्रदेश में 50 प्रतिशत जंगलों में महुआ के पेड़ हैं. इनका और आदिवासी समुदाय का सदियों से रिश्ता रहा. सरकार की नई पॉलिसी के साथ ही महुए के जंगल से आदिवासी परिवारों का जीवन महकने लगा.स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाओं को खास प्राथमिकता दी. मुख्यमंत्री (CM) शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने सबसे पहले महुआ और अन्य वनोपजों का समर्थन मूल्य (SP) घोषित किया. नतीजा ये हुआ कि आदिवासी समुदाय को 35 रुपए किलो की जगह 100-110 रुपए किलो तक महुआ के रेट्स मिलने लगे. उमरिया (Umaria) जिले के जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) प्रमोद कुमार शुक्ला कहते हैं- "जिले में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधरने में महुआ का कारोबार सफल रहा. प्रदेश में इसके अलावा डिंडोरी, मंडला, शहडोल, झाबुआ और आलीराजपुर जैसे जिले में भी महुआ कलेक्शन किया जा रहा."
फ़ूड मार्केट में महुआ वैराइटी
यूके के लंदन (London) में फ़ूड मार्केट (Food Market) में महुआ से बने कई प्रोडक्ट्स पसंद किए जा रहे. इस साल 200 टन एक्सपोर्ट का कॉन्ट्रेक्ट (MOU) हुआ. ओ-फारेस्ट कंपनी की सह-संस्थापक मीरा शाह बताती है- "महुआ अब प्रकृति का वरदान साबित हो रहा. आदिवासी संस्कृति के साथ महुआ सरंक्षण को नया मौका मिला. लंदन में महुआ चाय, महुआ पावडर, महुआ स्नेक्स का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ गया."
वन विभाग के अनुसार एक मौसम में करीब 7 लाख 55 हजार क्विंटल तक महुआ मिल जाता है. फूल से लदा महुए का एक पेड़ 100 किलो तक महुआ देता है. करीब 3 लाख 77 हजार परिवार महुआ बीनकर अपना घर-परिवार चला रहे. सर्वे के अनुसार एक परिवार कम से कम तीन पेड़ों से महुआ बीन लेता है. इस काम से साल में दो क्विंटल महुआ वह बीन लेता है.
छत्तीसगढ़ से भी महुआ डिमांड में
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में बीजापुर,सुकमा,दंतेवाड़ा,कांकेर,सोनागांव,नारायणपुरा ,कोरबा, महेंद्रगढ़ और सूरजपुर जैसे जिले के जंगलों से महुआ डिमांड में है. जगदलपुर (Jagdalpur) की बस्तर फ़ूड (Bastar Food) की संयोजक रज़िया खुद इसकी कमान संभाले हुए हुए. वे मध्यप्रदेश के झाबुआ,आलीराजपुर जैसे जिले से भी महुआ ले कर प्रोडक्टड्स तैयार करवा रहीं.उनके टीम में आठ सदस्यों के साथ लगातार रिसर्च चलता रहता है.रज़िया भी कई टन महुआ प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट (Export) कर चुकीं है.
प्रदेश के जंगलों में लगे महुआ के पेड़ (Image Credits: Ravivar Vichar)