Covid -19 से शुरू हुआ एक positive era .
जहां पूरे देश में अफरा तफरी मची हुई थी और देशवासी lockdown से परेशान थे, वहां एक रोशनी की किरण बनकर आए Gadag, c के Zilla Parishad और ग्राम पंचायत के अधिकारी.
Gajendrabad के ग्रमीण area में महिलाओं को प्रेरित किया रोटियां बनाने के लिए.
यह रोटी बनाने का व्यवसाय ही उन महिला श्रमिकों के लिए एक नई अवसर का संकेत बना. जब महामारी ने प्रभावित किया, तो बहुत से इन दैनिक वेतन के कामगारों को आय कमाने के कोई साधन नहीं थे. उन्हें गरीबी में और गिरने से रोकने के लिए, जिला और ग्राम पंचायत के अधिकारियों ने उन्हें National Rural Livelihood Mission (NRLM) के तहत Sanjeevni Scheme के बारे में जानकारी दी, जिससे उन्हें आसान शर्तों पर bank loan प्राप्त करने में मदद और उन्हें Roti Business स्थापित करने की संभावना मिली.
शुरू में महिलाएं थोड़ा उलझन में थीं की सब कैसे होगा और क्या उनका ये business सफल भी होगा? पर प्रशासन और अधिकारियों ने उनका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ाया और उन्हें bulk में Roti बनाने वाली machines खरीदने के लिए समझाया.
उन्होंने महिलाओं को Financial Freedom और Women Empowerment का सही अर्थ बताया.
यह पहल पहले Gogeri गाँव में शुरू हुई थी जब कुछ महिलाएं इस योजना के तहत Bank Loan लेकर आटा मिल की मशीनें खरीदीं. महिलाओं ने financial loan की मदद से आटा-चक्की ली और फिर रोटियां बनाने का काम शुरू किया और पैसे कमाने चालू किये. धीरे-धीरे इस Initiative से और महिलाएं भी जुड़ने लगीं और 8 -10 members के group बना लिए हैं.
यह पहल चंद महिलाओं के साथ शुरू हुई और जैसे ही उन्हें बड़े Orders मिलने लगे, और महिलाएं इससे connect होने लगीं. उन्होंने jowar के बोरे भी थोक में खरीदे ताकि वह लागत कम हों. उन्होंने एक समूह बनाया और ज्यादा रोटियाँ बनाने लगीं. आज ये सभी महिलाएं कई शहरों और गाँवों में रोटियों को भेज रही हैं. कुछ महिलाएं तो बंगलूरू और राज्य के अन्य हिस्सों तक बड़े orders भी भेज रही हैं.
सुजाता होसमानी, एक रोटी यूनिट के मालिक, बताती हैं- "हम महामारी के बाद खाली बैठे थे, और हमें जिला पंचायत के अधिकारियों की समय पर संजीविनी योजना के रूप में सहायता मिली. हमें सेल्फ-हेल्प समूहों से भी धन मिला. हमने रोटी बनाने की मशीनें और आटा मिल के उपकरण खरीदे. अब हम गजेंद्रगड और निकटवर्ती शहरों के होटल, खानावलियों और ढाबों को ज्वार रोटी, चपाती और रागी रोटियाँ आपूर्ति कर रहे हैं. हम से कई लोग अब भी परंपरागत तरीके से रोटियाँ बनाते हैं, और मशीनों का उपयोग नहीं करते. हम जिला और ग्राम पंचायत के अधिकारियों का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने हमें समर्थन दिया और हमें उद्यमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया."
जिन महिलाओं की खुद की रोटी यूनिट हैं वे रोज़ 5000 - 6000 रुपये कमा लेती हैं. पहले वें महीने का इतनमा कमा पातीं थी. आज महिलाएं इसके बल पर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं और अपने परिवार को भी अच्छे से सहज रहीं हैं. यह एक प्रशंसनीय उदाहरण हैं देश की बाकि महिलाओं के लिए और Government Officials के लिए भी, क्युकी उनके बिना ये बिज़नेस महिलाओं के लिए मुकीम नहीं हो पाता.
अधिकारी डी मोहन कहते हैं- "यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने में मदद की। गोगेरी गाँव की जय शिवाजी संजीवनी महिला समूह और अन्य सफल हैं और वे सभी अन्यों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं. एक समय महिलाएं जो दैनिक मजदूरी की नौकरियों की खोज कर रही थीं, अब दूसरों को रोजगार प्रदान करने की सामर्थ्य रखती हैं। हम उनका आभार व्यक्त करते हैं जो सहायता के लिए आगे आए, जैसे कि कैनरा बैंक."
जिन महिलाओं की खुद की रोटी यूनिट हैं वे रोज़ 5000 - 6000 रुपये कमा लेती हैं. पहले वें महीने का इतनमा कमा पातीं थी. आज महिलाएं इसके बल पर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं और अपने परिवार को भी अच्छे से सहज रहीं हैं. यह एक प्रशंसनीय उदाहरण हैं देश की बाकि महिलाओं के लिए और Government Officials के लिए भी, क्युकी उनके बिना ये बिज़नेस महिलाओं के लिए मुमकिन नहीं हो पाता.