वाशिंग पॉवडर से कपड़े नहीं महिलाओं ने किस्मत को चमकाया

झाबुआ जिले में घरेलु महिलाओं ने अपने संघर्ष को विराम दे दिया. वाशिंग पॉवडर यूनिट से सिर्फ कपड़े साफ नहीं किए बल्कि खुद की किस्मत चमका दी. आर्थिक हालत सुधर गए. SHG की इन  महिलाओं ने परिवार को नई पहचान दी. सर्फ़ यूनिट डाल कर नई शुरुआत की.

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झाबुआ में समूह की सदस्यों के साथ प्रशासनिक अधिकारी (Image Credits : Ravivar Vichar) 

झाबुआ (Jhabua) जिले के गांव भगोर (Bhagor)में कुछ घरेलू महिलाएं आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) से जुड़ीं. गीतांजलि स्वयं सहायता समूह बनाया. शुरुआत छोटे-छोटे काम से किया. मिशन ने गाइडेंस देकर कॉन्फिडेंस बढ़ाया. यूनिट डालने के लिए मदद की.जिला पंचायत (ZP) सीईओ (CEO) रेखा राठौर ने यूनिट की शुरुआत की.

'लिजो' वाशिंग पॉवडर का बढ़ा क्रेज़    

भगोरा गांव के गीतांजलि स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) ने अपनी यूनिट में तैयार कर रहे वाशिंग पॉवडर (Washing Powder) का नाम लोकल टच अनुसार 'लिजो' (Lijo) रखा. 'लिजो' (Lijo)का मतलब 'लीजिए' या 'ले लो'  होता है. लिजो नाम से ग्राहकों में क्रेज़ बढ़ा.

समूह की अध्यक्ष सिंधु हरीश बताती हैं- "मैं तो घरेलु कामकाज में व्यस्त रहती थी. समूह से जुड़ने के बाद नया काम मिला. यूनिट के लिए 5 लाख का लोन (Loan)मिल गया. हमें मुनाफा हो रहा जिससे समूह की ताकत बढ़ रही. लोन भी हम समय पर उतारेंगे." सिंधु के परिवार में पति हरीश ने भी किराना दुकान खोल ली.

SHG की सचिव किरण मुकाती ने बताया- "पॉवडर निर्माण में हमें हर एक किलो पर 13 से 14 रुपए का फायदा हो रहा. हम पैकेजिंग के साथ भी बेचेंगे." 

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झाबुआ में समूह द्वारा रखे गए दूसरे प्रोडक्ट्स (Image Credits : Ravivar Vichar) 

मुनाफे से बढ़ी SHG की ताकत

Self Help Group को मिल रहे मुनाफे से समूह सदस्यों की ताकत बढ़ने लगी. झाबुआ (Jhabua) की ब्लॉक मैनेजर (BM) तृप्ति बैरागी कहती है-"यह जिले और समूह के लिए बड़ी उपलब्धि है. समूह को पांच लाख का लोन दिलवाया. हम कोशिश करेंगे कि समूह को अच्छी मार्केटिंग मिले. हमने समूह कि सदस्यों को बेहतर ट्रेनिंग दी."



इस यूनिट में एक बार में 65  किलो पॉवडर तैयार हो जाता है. एक किलो को तैयार करने में 57 रुपए लागत आती है. इसे बाज़ार में रिटेल प्राइज़ में 70 रुपए किलो बेचा जा रहा. बचा हुआ पैसा शुद्ध मुनाफा बच रहा.

इस ब्लॉक की सहायक ब्लॉक मैनजेर (ABM) पुष्पा चौहान ने समूह कि लागातर काउंसलिंग की. उन्हें भरोसा दिलाया कि यह प्रयोग और यूनिट सफल होगी.

आदिवासी अंचल में महिलाएं बन रही उद्यमी 

झाबुआ (Jhabua) और आसपास आदिवासी अंचल में कुछ साल पहले तक खेतों में मजदूरी करने वाली महिलाएं अब उद्यमी बन रहीं.

जिला पंचायत (ZP) की CEO रेखा राठौर (Rekha Rathore) कहती हैं- "यह सुखद बात है कि महिलाओं ने कुछ नया करने के लिए उत्साह दिखाया. वाशिंग यूनिट डालने से सिर्फ आर्थिक फायदा ही नहीं बल्कि पहचान भी नए सिरे से मिलेगी. महिलाओं में कॉन्फिडेंस बढ़ने लगा. लागातर ट्रेनिंग दिलवाई जाएगी."



यूनिट की शुरुआत के दौरान एडिशनल सीईओ दिनेश वर्मा, जिला प्रबंधक वित्त कृष्णा रावत, जिला प्रबंधक मॉनिटरिंग मुकेश पवार भी मौजूद थे.

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झाबुआ कलेक्टर तन्वी हुड्डा (Image Credits : Ravivar Vichar) 

झाबुआ (Jhabua)  कलेक्टर (DM) तन्वी हुड्डा (Tanvi Hudda) कहती हैं- "इस जिले से महिलाओं ने अपने दम पर पिछड़ेपन का कलंक मिटा दिया.मेहनत से रोजगार खड़े कर रही. प्रशासन लगातार ट्रेनिंग और लोन जैसी सुविधा दे रहा. यहां की सांस्कृतिक धरोहर के साथ अब आर्थिक व्यवस्था भी मजबूत हो रही."                              

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