चाय-एक ऐसी आदत जो हर सुबह अखबार के साथ चाहिए ही. चाय की ताज़गी भरी खुशबू जब किचन से आये तो, जान में जान आ जाती है. और अगर इन्हीं चाय के बागानों में जाने का मौका मिले, तो बात ही अलग हो जाए. असम, जो की, चाय के इन्हीं बागानों के लिए मशहूर है वहां का वातावरण एकदम खुशनुमा होता है. लेकिन 200 साल पुराने चाय के बिज़नेस की रीढ़ असम में छोटे चाय प्रोड्यूसर्स को कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. इसी परेशानी को ख़त्म करने के लिए असम सरकार ने 'स्मार्ट चाय गांव' की पहल की शुरुआत की थी.
'स्मार्ट चाय गांव' बन रहे असम में चाय उत्पादकों का सहारा
इन छोटे चाय उत्पादकों के लिए 'ट्रिनिटिया' नामक एक कार्यक्रम शुरू किया गया था. पहल का प्राथमिक उद्देश्य अच्छी किसानी, सामाजिक और पर्यावरणीय को संरक्षित करना, और इन सब से बेहतर आम्दनी प्राप्त करना है. यह कार्यक्रम ख़राब मिट्टी के प्रयोग को ख़त्म कर, कम पानी और फ़र्टिलाइज़र का उपयोग कर, अपनी पैदावार की गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयास है.
सॉलिडेरिडाड नेटवर्क के प्रबंध निदेशक शतद्रु चट्टोपाध्याय ने कहा- "हम फॉसिल फ्यूल के उपयोग को कम करने के लिए सोलर और बायोगैस यंत्रों के अधिक उपयोग पर भी विचार कर रहे हैं. इससे उनकी उपज के लिए बेहतर कीमतें मिलेंगी, सामूहिक खरीद, अपनी चाय की पैकेजिंग के माध्यम से इनपुट लागत कम होगी." ऑफिशियल्स उत्पादकों महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाने के लिए प्रेरित कर रहे है ताकि वे सरकार की पहलों का फायदा उठा सकें और अपने लिए भी अवसर पैदा कर पाएं. Self Help Groups बेहतर कृषि पद्धतियों के विभिन्न तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित भी है. सरकार इन SHGs को तेज़ी से आगे बढ़ाएगी ताकि महिलाओं के साथ देश की बी ही तरक्की निश्चित हो जाए.