भारत में best from waste के बारे में हर व्यक्ति ने सुना होगा, लेकिन एक ऐसा plant भी है इस दुनिया में, जो शायद पौधों में सबसे बड़ा wastage है क्योंकि वह जहां उगता है वहां से oxygen चुरा लेता है और इसीलिए उसे पूर्वोत्तर में oxygen thief और invasive troublemaker भी कहा जाता है. इस पौधे का नाम है "Water Hyacinth".
Water Hyacinth से बना रहीं products
बस ये बात पता पड़ने की देर थी ग्रामीण महिलाओं को, और फिर क्या था, वे चल दी इस पौधे से कुछ बेहतर बनाने. आज water hyacinth ग्रामीण महिलाओं के लिए एक saviour के रूप में बदल गई है. 27 साल की लड़की, अकोकला, ने इस पौधे से अपनी आजीविका तैयार कर ली है. वह हर दिन सशक्तिकरण की नयी कहानियां बुन रही है क्योंकि वह (water hyacinth) जलकुंभी के तनों को मनोरम उत्पादों, जैसे बैग्स, लैम्प्स आदि, में बदल देती है.
अकोकला कहती है- "इस कला ने मुझे आत्मविश्वास दिया है कि मैं कुछ कर सकती हूं और अपने पति का भी समर्थन कर सकती हूं." आज वह अपने गांव की कई महिलाओं को प्रशिक्षित भी कर रहीं हैं.
भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के सरस मेले में, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 330 से अधिक गतिशील महिला उद्यमियों द्वारा 165 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं, जिन्होंने स्वयं सहायता समूहों (Self help groups) के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के उत्थान के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया है. वे 'Lakhpati Didi' (ग्रामीण महिलाओं के लिए 1 लाख रुपये की वार्षिक कमाई) बनाने, उचित मूल्य सुनिश्चित करने और ग्रामीण कारीगरों ओर ग्राहकों के बीच सीधा संबंध सुनिश्चित करने के सरकार के मिशन में भी key catalyst हैं.
SHG के ज़रिये महिलाएं बढ़ रहीं आगे
SHGs के माध्यम से, महिलाओं ने ना केवल ऑनलाइन बड़े बाजारों में प्रवेश किया है, बल्कि विलक्षण कौशल को जीवंत आजीविका में बदलकर अपने परिवारों को आगे भी बढ़ा रही हैं. कुछ लोगों के लिए, ये व्यवसाय उनकी आय का प्राथमिक स्रोत बन गए हैं. वे अब अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली हैं.
Water hyacinth का बिज़नेस सिर्फ एक उदहारण है. उत्तराखंड के अल्मोडा जिले के छोटे से गांव में, एक (SHG products) SHG Nettle leaf industry में क्रांति ला रहा है. 70 से अधिक महिलाओं को शामिल करते हुए, इसने हिमालयन नेटल के उत्पादन और वितरण की क्षमता के साथ मिठाई, चाय, अचार, जूस के साथ-साथ कुछ स्वस्थ और पौष्टिक विकल्पों के रूप में पेश किया है.
कुछ मीटर की दूरी पर फरजाना सिंह की सोला लकड़ी के फूलों की दुकान है. यह सिर्फ एक शिल्प आश्रय नहीं है, यह सशक्तिकरण के लिए एक प्रशिक्षण मैदान है. यह पहल 1996 में उत्तरी गोवा के एक गाँव में शुरू हुई; अब, सिंह 16 SHG महिलाओं (SHG women number) को सलाह देते हैं. उत्तरी गोवा के गांवों में प्रत्येक समूह में कम से कम 12 महिलाएं कार्यरत हैं. शालिनी झा बिहार में निर्माण मलबे को चूड़ियों में बदल देती हैं और मेघालय की महिलाएं दुर्लभ सामग्रियों को अचार में बदल देती हैं.
सशक्तिकरण की एक ऐसी ही कहानी बताते हुए, मणिपुर मंडप में महिला उद्यमियों द्वारा चलाए जा रहे 12 स्टॉल हैं. ऊनी शॉल बेचने वाली मेधा देवी और बांस शिल्प की दुकान लगाने वाली उमा और थोई जैसे कई लोगों का कहना है कि राज्य में हिंसा के कारण व्यापार बाधित हो गया है. उन्होंने कहा, "कई श्रमिक अपने गांवों में लौट आए और मार्ग अवरुद्ध हो गए. इस साल हमारे पास कम स्टॉक है क्योंकि सामग्री अधिक महंगी थी, लेकिन हम सभी बाधाओं के बावजूद आने में कामयाब रहे."