उत्तराखंड (Uttrakhand) के देहरादून (Deharadun) में गरीब परिवार में मुश्किलों का सामना करते हुए रोशनी (Roshani) ने 30 साल पहले स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) और माइक्रो फाइनेंस (Micro Finance) की शुरुआत की. रोशनी (Roshani) आज समाज में मिसाल है.
10 रुपए से शुरू की उम्मीदों की रोशनी
30 साल पहले 1992 में स्लम बस्ती (Slums) में रोशनी चंदेल (Roshani Chandel) ने गरीबी से निकलने की ठान ली. दिशा समाज सेवी संगठन (Disha NGO) के बारे में सुना. और उनसे समझ कर अपनी बस्ती की 10 महिलाओं को इकठ्ठा कर काम शुरू कर कुछ कमाने के बारे में बताया. महिलाएं भी साथ-साथ तैयार हुईं. 10 रुपए जोड़कर कर यह शुरुआत हुई.
रोशनी चंदेल (Image: Ravivar Vichar)
रोशनी चंदेल (Roshani Chandel) बताती है- "हमारे पास 10 रुपए भी बड़ी मुश्किल से इकट्ठे हो पाते. हमने सबीना स्वयं सहायता समूह नाम से बैंक में खाता खुलवाया. छह महीने बाद 6 हजार रुपए का लोन मिला. हमने कुछ ऊन और क्रोशिये खरीदे. स्वेटर और मफलर बना कर बेचना शुरू किए. यह पहली कमाई का जरिया बना."
धीरे-धीरे महिलाएं पहाड़ी उत्पादों को तैयार करने, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, खेती जैसे कई चीज़ों पर काम करने लगे. हमें समूह की गतिविधियां भी समझ आने लगी.
एक सोच से अब 600 महिलाओं का परिवार
स्लम इलाके (Slums) में रहने वाली रोशनी की एक सोच से अब 600 महिलाओं का परिवार बन गया. रोशनी चंदेल आगे बताती है -" मैंने कई SHG बना कर 600 महिलाओं को सदस्य बना लिया. इन्हें भी रोजगार से लगाया. यहां तक नाबार्ड (NABARD) के तहत वर्कशॉप (Work Shop) और ट्रेनिंग (Trening) में हिस्सा लिया. महिलाएं भी कुछ नया करने लगी. हमने एक गाय पाली, जो गोबर (Cowdung) होता था उसके छोटे-छोटे कंडे बनातेऔर हवन के लिए बेचते थे."
रोशनी चंदेल (Roshani Chandel) अपनी कामयाबी के कारण पंजाब (Punjab) के जालंधर (Jalndhar) जा चुकी है और उन्हें यूरिया छोड़कर गोबर से ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) समझ कर आई. यही संदेश वह अपने इलाके में दे रही है.