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समलैंगिक जोड़ों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं द्वारा दायर बीस याचिकाओं ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की.
लंबी सुनवाई के बाद, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अगुवाई में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने समलैंगिक विवाह पर जजमेंट सुनाते हुए कहा कि हम ना तो कानून बना सकते हैं और न ही सरकार पर इसके लिए दबाव डाल सकते हैं. कानून बनाने का अधिकार संसद का है (supreme court same sex marriage verdict).
कोर्ट ने समलैंगिक शादियों पर अहम टिप्पणियां करते हुए समर्थन जताया और कहा कि समलैंगिकता को सिर्फ शहरी एलीट लोगों का मेटर बताना गलत है. उन्होंने कहा कि विवाह हमेशा स्थिर रहने वाली संस्था नहीं है जिसमें बदलाव न हो सके.
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अदालत ने साफ कहा कि शादी का अधिकार मूल अधिकार नहीं है. शादी दो लोगों के बीच का निजी मामला है और समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए कानून बनाना सरकार का काम है.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सबके पास पार्टनर चुनने का अधिकार है, जिसके लिए कानून नहीं बनाया जा सकता. जस्टिस कौल ने कहा कि समलैंगिक और हेट्रोसेक्शुअल शादियों को एक ही नज़र से देखना चाहिए. ऐतिहासिक तौर पर होते आ रहे अन्याय और भेदभाव को खत्म करना होगा. सरकार को इन लोगों को अधिकार देने के लिए ज़रूरी कदम उठाना चाहिए.
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चीफ जस्टिस का सुझाव है कि केंद्र सरकार को एक ऐसी कमिटी बनानी चाहिए जो समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों (committee to support rights of LGBTQIA+), जैसे राशन कार्ड, पेंशन, उत्तराधिकार और बच्चे गोद लेने के अधिकारों पर चर्चा करे. कोर्ट ने समलैंगिकों के लिए हॉटलाइन शुरू करने का भी सुझाव दिया जिससे उनकी मुश्किलों का समाधान निकला जा सके.
अदालत का कहना है कि यदि समलैंगिक लोग शादी करते हैं तो वे उसे स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत रजिस्टर करा सकते हैं. चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान यह जरूर तय करता है कि उन्हें भी वह सभी अधिकार मिलें जो दूसरे लोगों को मिलते हैं (constitutional right of equality given to all).