क्लेओपेट्रा फेस पैक बना रही आदिवासी महिलाएं

भारत सरकार आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर महिला सशक्तिकरण की राह पर अग्रसर करने के लिए रॉयल जेली की डिमांड देखते हुए, उन्हें मधुमक्खियों से रॉयल जेली निकालने की ट्रेनिंग दे रहा है.

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हेमा वाजपेयी
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women with honey bees

Image Credits : The Conversationalist

भारत सरकार आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) की राह पर अग्रसर करने के लिए नई-नई योजनाओं की शुरुआत कर रहा है. कुछ समय पहले रॉयल जेली की डिमांड देखते हुए, उन्हें मधुमक्खियों से रॉयल जेली निकालने की ट्रेनिंग दी गई थी. 

रॉयल जेली का इस्तेमाल 

कहा जाता है रॉयल जेली (Royal Jelly uses) उम्र बढ़ने को धीमा, प्रतिरक्षा और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के साथ बिमारियों का इलाज करने के लिए भी इस्तेमाल होता है. रॉयल जेली की ज्यादा उपलभ्धता न होने के कारण यह पंद्रह से बीस हज़ार रुपए में बिकती है.

अब सरकार आदिवासी महिलाओं को मिल्की सेक्रेशन (जिसे श्रमिक मधुमक्खियां छत्ते में लार्वा को खिलाने के लिए बनाती हैं) हार्वेस्ट करने की योजना बना रही है. भारत में इसकी डिमांड 1,000 किलोग्राम है.

केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान प्रशिक्षण संस्थान (CBRTI) कि अध्यक्ष डॉ. के लक्ष्मी राव बताती है कि "आदिवासी महिलाएं मधुमक्खी पालन और शहद निष्कर्षण से जुड़ी हुई हैं. कुछ महिलाओं ने ट्रेनिंग प्रशिक्षण का फर्स्ट टर्म पूरा कर लिया है और अगले पड़ाव कि ट्रेनिंग दी जाएगा, जिसमें ग्राफटिंग और निष्कर्षण प्रक्रिया शामिल है. थाईलैंड, चीन और वियतनाम ने रॉयल जेली के निष्कर्षण और वितरण के लिए अच्छी प्रतिक्रिया मिली है." 

honey bee

Image Credits : The Indian Express

लक्ष्मी उत्तराखंड के उद्यानिकी विभाग और राजस्थान में राष्ट्रीय ग्रामीण जीवनोन्नति मिशन के साथ मिलकर आदिवासी महिला स्वयं सहायता समूहों (Tribal women self help groups) को जेली निष्कर्षण की तकनीकों कि ट्रेनिंग देंगी. साथ ही हरियाणा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, और उत्तराखंड में मधुमक्खी पालकों को भी ट्रेनिंग दे रही है. 

भारत में हर साल 1.3 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन 

भारत में हर साल 1.3 लाख मीट्रिक टन शहद होता है और राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के पंजीकृत करीब तेरह हज़ार मधुमक्खी पालक हैं. जिनमे से केवल 2-3% लोग ही रॉयल जेली का निष्कर्षण करने के लिए ट्रेन्ड है.

केंद्र सरकार का मानना ​​है कि रॉयल जेली की भारी मात्रा में मांग होगी, जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, एमिनो एसिड्स, फैटी एसिड्स, विटामिन्स, और खनिज होते हैं. इस मॉडल से आगे चलकर भारत रॉयल जेली का प्रमुख उत्पादक और निर्यातक बन सकता है.

हाई-टेक नैचुरल प्रोडक्ट्स के निदेशक और राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के प्रबंधन समिति के सदस्य देवव्रत शर्मा "पिछले 3-4 सालों में हमने भारतीय ग्राहकों को लगभग सौ किलोग्राम रॉयल जेली उत्पन्न कर बेची है. इसका सेवन केवल छोटी मात्राओं में किया जा सकता है. पहले से ही रॉयल जेली को शहद के साथ मिलाकर बेचा जा रहा है. आगे अब  हेयर ऑयल और शैम्पू के साथ मिलाने का प्रयास कर रहे हैं."  

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Image Credits : The Hindu 

मुंबई की निवासी बताती है कि गर्भधारण की समस्याओं को दूर करने के लिए उन्हें रॉयल जेली का इस्तेमाल करने की सलाह मिली. एक और मुंबई निवासी बताती है की उन्हें ब्रेस्ट कैंसर को काम करने के लिए रॉयल जेली के सेवन की सलाह मिली.

आदिवासी महिला स्वयं सहायता समूह बनाएंगी क्लेओपेट्रा के फेस पैक

भारत सरकार अब क्लेओपेट्रा के फेस पैक बनाने की योजना में आदिवासी महिलाओं (Tribal women) को शामिल करने की योजना बना रही है. इसके ऑर्डर्स टर्की और जॉर्जिया से भी मिल है. क्लेओपेट्रा फेस पैक सौन्दर्य उत्पाद है, और इसमें अलग-अलग तरह की जड़ी बूटियों और औषधीय पौधों का इस्तेमाल होता है. इस पहल के ज़रिये आदिवासी महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होंगी. 

इस नए अनुसंधान प्रोजेक्ट का उद्देश्य वनस्पति संसाधनों का इस्तेमाल कर नवाचार और सुधार करना है. इसका मतलब है कि आदिवासी महिलाओं में नए और उन्नत तरीकों से वनस्पति संसाधनों का उपयोग कर उनके जीवन में सुधार लाना है.

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