भूमि पेडनेकर: ऑन एंड ऑफ स्क्रीन पर कर रही 'बॉडी शेमिंग' को चैलेंज

भूमि पेडनेकर ने फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को चैलेंज करते हुए की. अपनी पहली फिल्म दम लगा के हईशा के लिए वजन बढ़ाया था. भूमि इंडस्ट्री के उस स्टीरियोटाइप को तोड़ना चाहती हैं जो बताता है कि किसी महिला को स्क्रीन पर कैसा दिखना चाहिए. 

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मिस्बाह
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bhumi pednekar

Image Credits: Ravivar Vichar

फ़िल्मी जगत में अक्सर एक्ट्रेसेस ब्यूटी स्टैंडर्ड्स की बंदिशों में बंधी होती हैं (beauty standards in film industry). उनका बॉडी वेट, साइज, शेप और रंग अगर ज़रा भी इन स्टैंडर्ड्स से अलग होता है, तो ये भी ख़बर,गॉसिप, और ट्रोल की वजहें बन जातीं है. लेकिन, कुछ एक्ट्रेसेस इन अनरियलिस्टिक ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को चैलेंज करने का कोई मौका नहीं छोड़तीं (actress Bhumi Pednekar challenging beauty standards). ऐसी ही एक एक्ट्रेस हैं भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar), जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री ही इन स्टैंडर्ड्स को चैलेंज करते हुए की. उन्होंने अपनी पहली फिल्म दम लगा के हईशा (Dum Laga Ke Haisha) में रोल के लिए अपना वजन बढ़ाया था. भूमि इंडस्ट्री के उस स्टीरियोटाइप (stereotype) को तोड़ना चाहती हैं जो बताता है कि किसी महिला को स्क्रीन पर कैसा दिखना चाहिए. 

फिल्मों के ज़रिये भूमि पेडनेकर कर रहीं ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को चैलेंज 

फिल्म दम लगा के हईशा में भूमि संध्या का किरदार निभाती है, जो मजबूत इरादों के साथ समाज की सुंदरता की पारंपरिक परिभाषा में फिट नहीं बैठती. यह फिल्म आत्म-स्वीकृति के सफ़र को खूबसूरती से दिखाती है और इस धारणा को चुनौती देती है कि किसी महिला की 'सुंदरता' उसके वेट या रंग पर निर्भर है.

भूमि पेडनेकर बॉडी शेमिंग (Bhumi Pednekar on body shaming) के ख़िलाफ़ एक मज़बूत आवाज़ बनी हैं. फिल्म इंडस्ट्री (film industry) में अपने करियर के ज़रिये, उन्होंने मूवी स्क्रीन का इस्तेमाल बॉडी पॉसिटिविटी (body positivity) को बढ़ावा देने और समाज के द्वारा बनाये गए ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को चुनौती देने के लिए किया है. 

भूमि ने अपनी फिल्मों के ज़रिये उन किरदारों की कहानियों को दिखाया जिन्हें समाज में नज़रअंदाज़ किया जाता है. 'लस्ट स्टोरीज' (Lust Stories)में पेडनेकर अपने मालिक द्वारा परेशान की गई घरेलू कामवाली के किरदार में नज़र आईं, जिसमें सामाजिक वर्गों के बीच के भेद-भाव को दर्शाया गया है. फिल्म 'सांड की आंख' (Saand Ki Aankh) में उन्होंने उम्रदराज़ महिला शार्पशूटर का रोल निभाया. 'सोनचिरैया' (Sonchiriya) और 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' (dolly kitty aur woh chamakte sitare) में उन्हें पितृसत्तात्मक समाज (movies on patriarchy) की चुनौतियों से जूझते देखा. फिल्म 'बाला' (film Bala) में वे सांवली लड़की के किरदार में नज़र आईं.

इंटरव्यूज और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बॉडी शेमिंग के ख़िलाफ़ खुलकर बोला

अपनी ऑन-स्क्रीन भूमिकाओं के अलावा, भूमि इंटरव्यूज (Bhumi Pednekar interviews) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (social media platforms) पर बॉडी शेमिंग के ख़िलाफ़ खुलकर बोलती हैं. उन्होंने बॉडी शेमिंग का सामना करने के अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए और सेल्फ-लव (self-love) और सेल्फ-एक्सेप्टेन्स (self-acceptance) की ज़रुरत पर ज़ोर दिया है. भूमि इस विचार को बढ़ावा देती हैं कि हर बॉडी टाइप (body type) अपने आप में सुंदर है. अपनी कमज़ोरियों पर खुलकर चर्चा करके, वह दूसरों को अपने शरीर को अपनाने और समाज के द्वारा बनाये गए ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को चैलेंज करने के लिए प्रोत्साहित करती है.

भूमि पेडनेकर का कहना है, "अपनी बॉडी, सोल और माइंड की रिस्पेक्ट करना बहुत ज़रूरी है. मुझे लगता है कि आपका सफ़र अपने आप को एक्सेप्ट करने से ही शुरू होता है." 

आज जहां एक्ट्रेसेस की परफेक्ट बॉडी लड़कियों और महिलाओं  को इन्फ्लुएंस करती हैं और उन पर वैसा ही बनने का प्रेशर बनाती है, वहीं भूमि पेडनेकर जैसी एक्ट्रेस बेबाक तरीके से इन ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को चैलेंज करने और सेल्फ लव को अपनाने का आत्मविश्वास जगा रहीं है. 

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