गुलज़ार, सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक अलग दुनिया. उनका लिखा हुआ हर गीत, चाहे वो, 'मेरा कुछ सामान' हो या 'बीड़ी जलईले' हो, एक अलग औरा तैयार करने की ताकत रखता है. शायद ही बॉलीवुड में ऐसा कोई संगीतकार और फिल्म निर्माता हो, जो इतना वर्सेटाइल हो अपने काम को लेकर की हर बार बस दिल में बस जाए. संगीत की पसंद रखने वालो लोगों के लिए गुलज़ार की लिखी हुई हर नज़्म एक तोहफ़ा है, जो उन्होंने दुनिया को दिया है. सिर्फ ग़ज़लें और गीत ही नहीं, बल्कि उनकी हर फिल्म, जिसने भी देखी, उसने महिला किरदारों के बारे में बात ना की हो ऐसा हो ही नहीं सकता.
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अपनी अनोखी दुनिया में फीमेल कैरेक्टर्स के रंग भरते गुलज़ार
अनोखे महिला किरदारों को अपनी फिल्मों में उतार कर गुलज़ार ने दुनिया को हर कदम पर बताया है कि एक महिला पुरुषों से ज़्यादा स्ट्रांग होती है. चाहे बात लेकिन में डिम्पल कपाड़िया की करी जाए, या आंधी में सुचित्रा सेन की, ये किरदार तब छा रहे थे, जब एक महिला सिर्फ डिपेंडेंट रोल्स में दिखाई देती थी.
गुलज़ार ने उस वक़्त महिलाओं को सबसे अलग पर्दे पर रखा, जब फेमिनिज़्म का ट्रेंड देश में आया भी नहीं था शायद! उन्होंने एक फीमेल कैरेक्टर की नव्ज़ को पकड़ा, और उन्हें अपनी ज़्यादातर फिल्मों में प्रेज़ेंट किया.
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'आंधी' में सुचित्रा सेन को गुलज़ार ने पॉलिटिक्स जैसे फील्ड में रखा. बॉलीवुड की शायद कुछ ही फिल्में होंगी, जिसमें एक महिला को पोलिटिकली इतना स्ट्रांग दिखाया है. भले ही वह पॉलिटिक्स में एक स्ट्रांग रोल निभा रहीं हो, लेकिन एक महिला होने के नाते वह सेंसिटिव भी है. गुलज़ार ने, पोलिटिकली स्ट्रांग और सेंसेटिव, इस किरदार को परफेक्शन के साथ बैलेंस किया है.
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'परिचय' फिल्म में जया भादुड़ी का किरदार पितृसत्ता से सीधा लोहा लेती दिखी है. अपने छोटे भाई बहनों के लिए मां बाप का प्यार, और अपने दादाजी के स्ट्रिक्ट व्यवहार से उन्हें बचाकर रखना, जया के किरदार ने अपनी खुशियों को परे रख एक परिवार को संभाला. 'कोशिश' फिल्म में जया के किरदार ने इमोशंस और फीलिंग्स को सबसे ऊपर रखकर भी किरदार को मेल एक्टर से कम नहीं होने दिया.
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'किनारा' में हेमा मालिनी ने प्रूव कर दिया की प्यार का इमोशन सबसे स्ट्रांग है और लड़की या महिला इस इमोशन को पूरी तरह रिस्पेक्ट कर कमज़ोर नहीं स्ट्रांग बन जाती है. वहीं 'मीरा' फिल्म में अपने डिवोशन को इतना ऊपर रखा कि बाकी हर रिश्ता कृष्णा के आगे फीका पड़ गया.
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'मौसम' फिल्म में शर्मिला टैगोर के किरदार ने अपनी करियर की चॉइस को सबसे ऊपर रखा, और दर्शाया की एक महिला किसी भी काम को कर सकती है. फीलिंग्स और इमोशंस को साइड रख वह अपनी ज़िन्दगी को बेहतर करने के लिए हर काम को उतनी ही शिद्दत से करेगी. वहीं 'नमकीन' में उनके किरदार को अपने परिवार के प्रति पूरी तरह डिवोटेड बताया है गुलज़ार ने.
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'घर' फिल्म में रेखा के किरदार का पोट्रेयल एक फिज़िकली और मेंटली स्ट्रोंग माहिला का है, जो रेप असॉल्ट जैसे गुनाह के बाद भी इतनी स्ट्रांग थी कि अपने परिवार को टूटने नहीं दिया. वहीं 'इजाज़त' फिल्म में रेखा का किरदार बॉलीवुड की हिस्टरी के शायद सबसे स्ट्रॉन्गेस्ट पोट्रेयल में से एक होगा. हर बीतता मिनिट ये सोचने पर मजबूर करता है की दोनों कैरेक्टर्स फिल्म के अंत में एक हो जाएंगे. सस्पेंस और ड्रामा का परफेक्ट मैच है इस फिल्म में.
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बॉलीवुड में 'लेकिन' जैसी फिल्में बहुत कम है. डिंपल कपाड़िया का कैरेक्टर एक ऐसी आत्मा का दिखाया हैं, जो कुछ इच्छाओं के कारण टाइम ज़ोन में फंस गयी है. साइंस और सस्पैंस का परफेक्ट कॉम्बिनेशन हैं ये फिल्म. डिंपल का किरदार इस स्टोरी का ड्राइविंग फोर्स हैं. उसके किरदार के साथ ही फिल्म की स्टोरी चलती हैं.
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'माचिस' फिल्म में तब्बू का किरदार आतंकवाद जैसे टॉपिक से सामना करते हुए दिखाया हैं. गुलज़ार ने अपनी ज़्यादातर फिल्मों को फीमेल किरदारों के इर्द गिर्द घुमाने का बेहतरीन काम किया हैं. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उनकी फिल्मों में अगर फीमेल किरदार नहीं भी हो तो चल जाएगा, क्योंकि हर कैरेक्टर डिफाइन करता हैं फिल्म की स्क्रिप्ट को. वर्सटैलिटी और परफेक्शन गुलज़ार के दूसरे नाम हैं.