COVID -19 महामारी की छाया में पनपा आर्थिक शोषण

महामारी के दौरान भारत में आर्थिक हिंसा पर शोध से चिंताजनक वास्तविकता का पता चलता है: लॉकडाउन ने न सिर्फ महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान कम कर दिए, बल्कि आर्थिक शोषण की एक नई लहर को भी बढ़ावा दिया.

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मिस्बाह
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Image: Ravivar vichar

COVID -19 महामारी के दौरान बढ़ते मृत्यु दर के साथ घरेलू हिंसा से जुड़े मुद्दों में भी बढ़ोतरी देखी गई थी. संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा (domestic violence during COVID-19) की खतरनाक वृद्धि को 'छाया महामारी' का नाम दिया, जिसमें 'आर्थिक हिंसा' (economic abuse) भी शामिल थी. 

Economic Abuse से महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को है ख़तरा

अक्सर नज़रअंदाज़ की जाने वाली आर्थिक हिंसा के तहत पार्टनर या घरवालों द्वारा इकॉनोमिक एब्यूज, वित्तीय संसाधनों को नियंत्रित करने, धन तक पहुंच को प्रतिबंधित करने और रोजगार पर रोक लगाने जैसे मामले सामने आए.

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महामारी के दौरान भारत में आर्थिक हिंसा पर शोध से चिंताजनक वास्तविकता का पता चलता है: लॉकडाउन ने न सिर्फ महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान कम कर दिए, बल्कि आर्थिक शोषण की एक नई लहर को भी बढ़ावा दिया. कोविड के दौरान स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लगाए गईं पाबंदियों ने Economic Abuse को जन्म दिया, जिससे महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर ख़तरा मंडराने लगा.

स्त्रीधन और दहेज प्रथाओं का हुआ शोषण

Economic Abuse को तीन मुख्य प्रकारों में समझा जा सकता है (types of economic violence): रुकावट, जिसमें किसी महिला की धन या काम तक पहुंचने से रोकना है; प्रतिबंध, महिलाएं द्वारा पैसे के इस्तेमाल को नियंत्रित करना; और शोषण, जिसमें अक्सर पार्टनर या परिवार के सदस्यों द्वारा महिला के साथ ज़बरदस्ती रहने या उसके नाम पर ऋण लेने के लिए मजबूर करना शामिल होता है. लॉकडाउन के दौरान स्त्रीधन और दहेज प्रथाओं का शोषण भी देखा गया. 

शेफ़ील्ड हैलम यूनिवर्सिटी की सीनियर रिसर्च फेलो पुनिता चौबे ने देश के पूर्वी भाग में भारत के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, बिहार के एक शहर में शोध किया और 20 मिनट की डॉक्यूमेंट्री बनाई: स्पेंट: फाइटिंग इकोनॉमिक एब्यूज इन इंडिया. शोध के दौरान पाया गया कि सभी वर्गों, जातियों, धर्मों, शिक्षा के स्तरों और रोजगार की स्थितियों में आर्थिक शोषण आम था.

कहीं जॉब करने तो कहीं जॉब छोड़ने के लिए डाला दबाव

एक महिला को उसके परिवार द्वारा जॉब छोड़ चौबीसों घंटे घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया गया. वहीं, उनके पति ने काम न करने को लेकर उनका मजाक उड़ाया.

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कई महिलाओं और बच्चों - विशेषकर लड़कियों - से संबंधित किसी भी घरेलू खर्च का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया. इंटरव्यू देने वाली एक महिला ने बताया कि उनके पति ने उनकी बेटी के जन्म से संबंधित चिकित्सा बिलों का भुगतान करने से इनकार कर दिया था और उन्हें एक महीने के बच्चे के साथ काम पर वापस जाने के लिए मजबूर करने की कोशिश की गई. मदद मांगने के लिए उसे अपनी मां के घर पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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Domestic violence Act के तहत किया गया है Economic Abuse को परिभाषित 

शोषण के कई मामलों में देखा गया कि महिलाओं के वित्त पर उनके पति, ससुराल वालों, या परिवार के अन्य सदस्यों ने नियंत्रण बढ़ाने के लिए पासवर्ड जब्त कर लिए, बैंक खाते साफ कर दिए और महिलाओं के नाम पर ऋण निकाल लिए. इससे महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर हो गईं. लॉकडाउन ने महिलाओं को सहायता नेटवर्क से दूर कर दिया, जिससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.

भारत में आर्थिक शोषण को कानूनी रूप से घरेलू हिंसा अधिनियम (domestic violence Act) में परिभाषित किया गया है. लेकिन, इस विषय में जागरूकता कम होने की वजह से महिलाओं के अधिकारों का आसानी से हनन हो जाता है.

Self help group women will put an end to gender based violence

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इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए परिवारों के भीतर पैसे से जुड़ी खुली बातचीत, पैसे से जुड़ी लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देना और आर्थिक शोषण को सुविधाजनक बनाने वाली संरचनाओं को खत्म करना होगा. महिलाओं की आर्थिक आज़ादी को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को जल्द लागू करना होगा.

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