घरेलू हिंसा से जुड़ा अहम पहलू है 'आर्थिक शोषण'

पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का दबदबा बनाये रखने के लिए उनके द्वारा महिलाओं के साथ आर्थिक शोषण किया जाता है. ऐसा करने से महिलाओं को शक्तिहीन बनाकर, उन्हें वित्तीय संसाधनों और आर्थिक अवसरों पर कंट्रोल नहीं दिया जाता.

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मिस्बाह
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Image Credits: Pratisandhi

महिलाओं के खिलाफ हिंसा करीब हर अखबार का हिस्सा है. पर, हिंसा से जुड़ा एक ऐसा पहलू है जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है.

घरेलु हिंसा का हिस्सा है आर्थिक शोषण 

लिंग के आधार पर शोषण (gender based violence) के बारे में तो सुना होगा. ऐसा ही एक और लैंगिक शोषण है आर्थिक शोषण (economic abuse) जिसका ज़िक्र कम ही होता है. आर्थिक उत्पीड़न (Economic Abuse) भी शारीरिक, यौन और भावनात्मक उत्पीड़न जितना ही चिंताजनक और दुखद है. आर्थिक शोषण को कानूनी रूप से घरेलू हिंसा अधिनियम (domestic violence Act)  में परिभाषित किया गया है.

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Image Credits: health.clevelandclinic.org

घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (PWDV Act 2005) के तहत, आर्थिक शोषण को उन सभी या किसी भी आर्थिक या वित्तीय संसाधनों से वंचित करने के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके लिए पीड़ित व्यक्ति किसी भी कानून के तहत हकदार है (economic abuse meaning in Hindi).

शिक्षा और रोजगार तक सीमित पहुंच बन रही आर्थिक आज़ादी में बाधा 

पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का दबदबा बनाये रखने के लिए उनके द्वारा महिलाओं और बच्चों के साथ आर्थिक शोषण किया जाता है (feminist aspect of economic abuse). ऐसा करने से महिलाओं को शक्तिहीन बनाकर, उन्हें वित्तीय संसाधनों और आर्थिक अवसरों पर कंट्रोल नहीं दिया जाता. इसमें अक्सर धन, रोजगार, यहां तक ​​कि बुनियादी ज़रूरतों तक पहुंच पर रोक लगाना शामिल है (money as a tool to control women). 

कई सामाजिक चुनौतियों की वजह से महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक सीमित पहुंच उनकी आर्थिक आज़ादी (financial freedom) को रोकती है. इस वजह से वे शोषण का आसान लक्ष्य बन जाती हैं. घर खर्च से जुड़े फैसले अक्सर पुरुष लेते हैं. भारत में सिर्फ 35% महिलाओं के पास बैंक खाते हैं और कुल डिपाजिट का केवल 20%.  

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Image Credits: Zara Picken

SHG के ज़रिये महिलाओं को मिल रहे आर्थिक सशक्तिकरण के अवसर 

कई बार महिलाओं को क्रेडिट/डेबिट कार्ड (credit/debit card) तक पहुंच से वंचित कर दिया जाता है, और ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां उनके परिवार के पुरुष सदस्य उनसे कार्ड और चेकबुक अपने पास रखते हैं. घर से फ्रीलांसिंग या छोटे उद्यम चला रहीं महिलाएं फाइनेंशियल लिट्रेसी न होने की वजह से अपने पैसों का सही इस्तेमाल नहीं कर पाती.

मुफ्त सार्वजनिक परिवहन (free public transport), जागरूकता अभियान (awareness campaign), सरकारी योजनाओं (government scheme) और स्वयं सहायता समूहों (self help groups) के बढ़ते नेटवर्क इस दिशा में सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं. SHG के ज़रिये ग्रामीण इलाकों (rural areas) में रह रहीं महिलाओं तक भी फाइनेंशियल लिट्रेसी (financial literacy) और आसान लोन जैसी सुविधाएं पहुंच रहीं हैं. इस तरह की पहलों को बढ़ावा देकर महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है.

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