महिलाओं की ख़ामोशी को आवाज़ देती इस्मत चुग़ताई

बचपन से ही उन्होंने समाज में दो लिंगों के बीच मौजूद भारी असमानता देखी, पर खुद कभी भी इस तरह के आदेशों का पालन नहीं किया. गिल्ली डंडा, पतंग उड़ाने से लेकर इस्मत ने फुटबॉल जैसे वह सारे खेल खेले जो लड़के खेला करते.

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मिस्बाह
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ismat chughtai

Image Credits: Asymptote Journal

साहित्य की दुनिया में कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने गुमनाम  कहानियों को अपनी कलम से आवाज़ दी. ऐसी ही एक लेखिका थी इस्मत चुग़ताई (Ismat Chughta), जो अपने समय से आगे रही और क्रांतिकारी आवाज़ बन सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी. इस्मत आपा उर्दू अदब (Urdu Literature) का वह नाम है जिन्होंने उस समय फीमेल सेक्शुअलिटी (female Sexuality) को शब्द दिए जब इस टॉपिक (taboo topics) पर बात करना भी जुर्म माना जाता था. उनकी लघु कहानी 'लिहाफ़' (Short story Lihaf) पर फहाशि का इल्ज़ाम लगा, मतलब अश्लीलता का आरोप (charge of obscenity). 

इस्मत चुग़ताई ने की समलैंगिकता, फीमेल सेक्शुअलिटी और सामाजिक मानदंडों पर बात 

'लिहाफ़' के महिला पात्रो ने पर्दा प्रथा से जुड़ी सुरक्षा की झूठी दलीलों पर से पर्दा हटाया. उन्होंने अकल्पनीय को सोचा और अनकही बातों को कहने की हिम्मत दिखाई. चार दीवारी में बंद महिलाओं की खामोशी को आवाज़ देकर चुगताई ने  समलैंगिकता (Sexuality), फीमेल सेक्शुअलिटी (female sexuality) और सामाजिक मानदंडों (social standards) पर बात की.

इस्मत चुगताई अपने बचपन को खुशी के साथ नहीं देखती थी

बचपन से ही उन्होंने समाज में दो लिंगों के बीच मौजूद भारी असमानता (gender inequality) देखी, पर खुद कभी भी इस तरह के आदेशों का पालन नहीं किया. गिल्ली डंडा, पतंग उड़ाने से लेकर इस्मत ने फुटबॉल जैसे वह सारे खेल खेले जो लड़के खेला करते. उनकी मां उन्हें अक्सर तौर-तरीके समझाती, पर इस्मत पर इन बातों का कोई असर न होता. इस्मत चुगताई अपने बचपन को खुशी के साथ नहीं देखती थी. वजह थी घर के किसी भी फैसलों में उनका शामिल न किया जाना. उन्हें एजेंसी (agency) की भावना महसूस नहीं हुई, जबकि उनके आस-पास के बड़े उनके लिए निर्णय लेते रहे. 

इस्मत चुगताई के काम में स्वतंत्रता (freedom) के विषय को उस समय की राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता है जिसमें वह लिख रही थीं. उनके लेख भारत की आज़ादी को परिभाषित करते और अपनेआप को प्रगतिशील बताने वाले, पर प्रतिशील न होने वाले लोगों पर तंज करते. उन्होंने कहा, "समाज महिला को देवी तो बना देता है, लेकिन उन्हें दोस्त या कॉमरेड कहने में शर्म आती है.''

चुगताई की विरासत रूढ़ियों को ख़त्म करने, मानदंडों को चुनौती देने और न्यायपूर्ण समाज बनाने में शब्दों की ताकत का प्रमाण देती है. 

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