जिन गांवों को भारत की प्रगति का आधार माना गया, वहीं तरह-तरह के भेद-भाव देखे गए (Discrimination in Rural India). ये वही गांव हैं जिन्हें महात्मा गांधी ने भारतीय संस्कृति का प्रतीक मानते हुए कहा था, "भारत का भविष्य इसके गांवों में है." (Mahatma Gandhi on rural India)
कई सरकारी आंकड़े और शोध यह बताते हैं की ग्रामीण भारत लैंगिक असमानता (gender inequality in villages) का गढ़ है. कई ग्रामीण लड़कियां कम उम्र में ही समानता की मूल भावना से दूर हो जाती हैं (issues faced by girls in villages). अक्सर सामाजिक मानदंडों (social standards) के दुष्चक्र में फंसकर, वह अपनी आज़ादी और सपनों को दरकिनार करने के लिए मजबूर हो जाती हैं.
बालिकाओं के मन में यह बात डाली जाती है कि घरेलू काम, परिवार का पालन-पोषण, और बच्चे संभालना ही उनकी ज़िन्दगी का मक़सद है. यह पितृसत्तात्मक सोच (patriarchal mindset) उन्हें पुरुषों के माने जाने वाले व्यवसायों (male centric professions) में एंट्री नहीं लेने देती. इसी तरह राजनीतिक करियर (political career) बनाने से भी वह पीछे हट जाती हैं क्योंकि वह तो "पुरुषों का काम" है.
शिक्षा की कमी
महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में सबसे बड़ी बाधा ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की भारी कमी है (Why there is less participation of women in politics?). परिवार अक्सर बेटियों की तुलना बेटों को शिक्षित करने को प्राथमिकता देते हैं, उन्हें भविष्य की देखभाल करने वाला मानते हैं. इस जेंडर बायस (gender bias) की वजह से ग्रामीण महिलाओं में साक्षरता दर कम होता है (literacy rate of rural women), जो उनकी राजनीतिक भागीदारी (political participation) के लिए हानिकारक है.
'सरपंच पति' के पास पॉवर होना
यदि कोई महिला नेतृत्व के पद पर चुनी भी जाती है, तो उसका पति ज़िम्मेदारियों को संभालता है. समाज उसे 'सरपंच पति' (sarpanch pati) का दर्जा देते हुए पॉवर दे देता है. इससे पद पर होते हुए भी महिला लीडर की शासन में सक्रिय भूमिका कम हो जाती है.
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राजनीतिक दायरे में एंट्री मुश्किल होना
सामाजिक मानदंडों, पुरुष-प्रधान राजनीतिक संरचनाओं, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों, संसाधनों की कमी (lack of resources) और असहज टिप्पणियों की वजह से ग्रामीण महिलाओं को पोलिटिकल (rural women in politics) प्रोसेस से बाहर रखा जाता है. भारत में राजनीतिक दायरा लैंगिक असमानता (gender inequality) से घिरा हुआ है, फैसले लेने के स्तरों पर अक्सर महिलाओं को दूर रखा जाता है. परिवार के अहम निर्णय पुरुषों द्वारा सामूहिक रूप से लिए जाते हैं और उनके निर्णयों को बिना किसी विवाद के माना जाता है.
महिला आरक्षण और चुनौतियां
भारत ने संवैधानिक संशोधनों, पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं को आरक्षण (reservation for women) देकर राजनीति में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए कदम उठाए हैं. कई राज्यों ने महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया है. इसके बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर महिलाएं प्रतिनिधित्व (women representation in politics) में पीछे हैं.
विमेंस रिजर्वेशन बिल (women's reservation bill) के तहत लोकसभा (Loksabha) और सभी राज्य विधानसभाओं (Vidhansabha) की सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. फिर भी, 2010 में राज्यसभा से मंजूरी मिलने के बावजूद यह बिल डॉर्मेंट पड़ा हुआ है. यह देरी महिलाओं की चुनावी भागीदारी को बढ़ाने में राजनीतिक दलों के बीच गंभीरता की कमी को दर्शाती है.
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राजनीति में महिलाओं की मौजूदगी पर सवाल उठना
महिला राजनेताओं (women politicians) को अपमान, आपत्तिजनक टिप्पणी, उत्पीड़न और धमकियों सहित गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. राजनीतिक दल अक्सर महिला उम्मीदवारों को कम टिकट देते हैं, यह मानते हुए कि उनके चुनाव जीतने की संभावना कम है. लिंगभेद और चरित्र पर हमले राजनीति में बने हुए हैं, जिससे राजनीति में करियर (career politics for women) तलाशने वाली महिलाओं का सफ़र मुश्किल हो जाता है.
राजनीति के ज़रिये महिला सशक्तीकरण का रास्ता होगा आसान
महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी उनके सशक्तिकरण (women empowerment) के लिए अहम है, जो उन्हें निर्णय लेने में सक्षम बनाएगी. नीतियों को बनाने से लेकर लागू करने तक, महिलाओं की भागीदारी (women's participation in politics) बदलाव का जरिया बनेगी.
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भारत में महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी लैंगिक समानता (gender equality) को आगे बढ़ाने, बेहतर निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने और देश की प्रगति और विकास को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है.