कविताओं में देश प्रेम को पिरोती सुभद्राकुमारी चौहान

स्वतंत्रता संग्राम का अपने शब्दों की ताकत से समर्थन करने वाली सुभद्रा ने महिलाओं की आज़ादी और उनके अधिकार का भी समर्थन किया. उन्हें उस समय का फेमिनिस्ट आइकॉन माना गया. उनका नारीवाद वीर रस और वात्सल्य रस से भरपूर था. 

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मिस्बाह
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बचपन से ही बहादुर और दबंग सुभद्राकुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) के लेख भी उनकी तरह स्पष्ट होते. खड़ी बोली में लिखी उनकी कहानियों और कविताओं ने लोगों को आज़ादी का हक़ मांगने के लिए प्रेरित किया. स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) का अपने शब्दों की ताकत से समर्थन करने वाली सुभद्रा ने महिलाओं की आज़ादी और उनके अधिकार का भी समर्थन किया. उन्हें उस समय का फेमिनिस्ट आइकॉन (feminist icon) माना गया. उनका नारीवाद (feminism) वीर रस और वात्सल्य रस से भरपूर था. 

महिलाओं की वीरता और आज़ादी पर ज़ोर देती सुभद्राकुमारी की कविताएं 

अनोखा दान, उपेक्षा, उल्लास, कलह-कारण,जालियांवाला बाग में वसंत, वीरों का कैसा हो बसंत, जैसी कविताएं लिखीं. सुभद्राकुमारी के लेख पितृसत्ता (patriarchy) के विरूद्ध बोलने की जगह महिलाओं की वीरता और उनकी आज़ादी पर ज़ोर देते. उनकी कहानियों में महिला  किरदार मज़बूत, भावुक, और संतुलित होतीं. सुभद्रा (female characters of Subhadra Kumari) की  नायिकाएं पुरुष किरदार से बराबरी करने की बजाय, अपने भावों की सुंदरता, वात्सल्य, वीरता, और देश प्रेम से अपनी जगह बनातीं. उनकी कविताएं सामाजिक बदलाव और ऐतिहासिक प्रगति को शब्दों में ढालती.

1921 में, सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के साथ असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) में शामिल हो गये. वह नागपुर में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला सत्याग्रही थीं. 1923 और 1942 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की वजह से वह दो बार जेल गई. इस दौरान, सुभद्रा ने अपना लेखन नहीं छोड़ा. उन्होंने 88 से ज़्यादा कविताएं और करीब  46 लघु कहानियां लिखीं. चौहान की सबसे प्रसिद्ध कविता 'झांसी की रानी' (Jhansi ki Rani) ने उन्हें राष्ट्रवादी कवयित्री (nationalist poetess) के रूप में पहचान दिलाई.

रूढ़िवादिता को दी चुनौती 

उनके प्रगतिशील विचार सिर्फ लेखों में नहीं, निजी ज़िन्दगी में भी दिखाई देते. शादी के वर्षों बाद, सुभद्रा अपने घरेलू नौकर की शादी में शामिल हुईं, जिसके लिए उनके ससुराल वालों हंगामा किया. ससुराल वालों का कहना था कि जमादारों (निचली जाति) के साथ खाना खाकर सुभद्रा 'अपवित्र' हो गई है. उन्होंने प्रेमचंद के बेटे अमृत राय के साथ अपनी सबसे बड़ी बेटी सुधा के अंतरजातीय विवाह का भी समर्थन किया था.

'दी ICGS सुभद्रा कुमारी चौहान', भारतीय तटरक्षक जहाज का नाम कवि के नाम पर रखा गया. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) सरकार ने जबलपुर के नगर निगम कार्यालय के सामने सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रतिमा स्थापित की. 6 अगस्त 1976 को, इंडिया पोस्ट्स ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया. Google ने सुभद्रा कुमारी को उनकी 117वीं जयंती पर डूडल बनाकर याद किया. आज भी उनकी कहानियां और कविताएं स्कूल सिलेबस का हिस्सा बनीं हुई हैं. उनके विचार और लेख आज भी महिलाओं को सामजिक मानदंडों को चुनौती देने और सही का साथ देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

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