स्वयं सहायता समूह, जैसा कि नाम से ही समझा जा सकता है, इसका मतलब ख़ुद की सहायता ख़ुद करना है. बहुत ही सरल सा नाम, बहुत ही सरल सा अर्थ. पर असल में कितना चुनौती भरा है ये काम, कहां से हुई इसकी शुरुआत, कैसे पड़ा इस वट वृक्ष का बीज और कैसे यह विचार एक आंदोलन में बदला और इसने 'स्वयं सहायता समूह' से 'राष्ट्रीय सहायता समूह' तक का सफ़र तय किया. आइए आज इसी बारे में बात की जाए (about Self Help Groups in Hindi).
आज़ादी से पहले ही पड़ी SHG की नींव
भारत में स्वयं सहायता समूहों की नींव आज़ादी से पहले ही पड़ गई थी. और ये शुरूआत की थी महाराष्ट्र के अमरावती जिले की महिलाओं ने. इस स्वयं सहायता समूह को पच्चीस पैसे के साथ शुरू किया गया था.
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भारत में स्वयं सहायता समूहों की औपचारिक शुरआत सत्तर के दशक में अहमदाबाद के सेवा (सेल्फ इंप्लॉयड विमेन एसोसिएशन) से हुई. सेवा को आर्थिक तौर से कमज़ोर और स्वयं-रोज़गार से जुड़ी महिलाओं की यूनियन के तौर पर जाना जाने लगा. सेवा की फाउंडर इलाबेन भट्ट ने 'विमेन और माइक्रो-फाइनेंस' इस कॉन्सेप्ट को जन्म दिया.
90s में NABARD के साथ फैली महिला Self Help Group की क्रांति
इसके बाद देश भर में स्वयं सहायता समूहों की शुरूआत हुई. चाहे वो महाराष्ट्र का 'अन्नपूर्णा महिला मंडल' हो या तमिलनाडु का 'वर्किंग वूमेंस फोरम' या मैसूर का MYRADA, भारत के कई कोनों में महिला स्वयं सहायता समूहों का शंखनाद सुनाई देने लगा. लेकिन अब तक चीज़ें पूरी तरह से स्ट्रीमलाइन नहीं हुईं थीं यानि कि पटरी पर नहीं आईं थीं.
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नब्बे का दशक आते आते NABARD ने बड़े पैमाने पर स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. 1993 में RBI ने स्वयं सहायता समूहों को बैंकों में बचत खाता खोलने की अनुमति दे दी. इस फैसले ने स्वयं सहायता समूहों को एक नया रूप दे दिया. इस फैसले ने स्वयं सहायता समूहों के आर्थिक सिस्टम को पूर्ण रूप से औपचारिक कर दिया. यह फैसला इससे जुड़े लोगों, ख़ासकर कि महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देने की दिशा में एक बहुत प्रभावकारी कदम साबित हुआ.
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महिला स्वयं सहायता समूह राष्ट्रीय स्वयं सहायता समूह बन चुके हैं : PM मोदी
भारतीय उपमहाद्वीप की बात करें तो स्वयं सहायता समूह, इस कॉन्सेप्ट का चलन बांग्लादेश में भी देखा गया. वहां इसकी शुरुआत 1976 में बांग्लादेश ग्रामीण बैंक से हुई. डॉ मोहम्मद यूनुस (father of microfinance Dr Muhammed Yunus) ने इस बैंक को शुरू किया जहां भूमिहीन गरीब तबके के लोगों, ख़ासकर कि ग्रामीण महिलाओं को स्वयं रोजगार के लिए लोन दिया जाने लगा.
वर्तमान में, 2023 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, भारत में एक करोड़ बीस लाख़ स्वयं सहायता समूह हैं और इनमें से 88% महिला स्वयं सहायता समूह हैं. 1992 का SHG बैंक लिंकेज प्रोजेक्ट विश्व का सबसे बड़ा माइक्रो फाइनेंस प्रोजेक्ट बन चुका है. इस प्रोजेक्ट में चौदह करोड़ परिवार कवर किए जा रहे हैं.
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में हुए स्वयं सहायता समूह सम्मेलन के मंच से कहा था कि अब ये महिला स्वयं सहायता समूह राष्ट्रीय स्वयं सहायता समूह बन चुके हैं (PM Modi promoting SHG). यह बयान इस बात का सूचक है कि ये स्वयं सहायता समूह भारत की अर्थव्यस्व्यथा में कितनी अहम भूमिका निभा रहे हैं.
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रविवार विचार के ज़रिये हमारा ये प्रयास रहेगा कि हम इन महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी बातें और इन जाबाज़ महिलाओं की कहानियां आपके सामने लाते रहें.
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