संविधान को आकार देने वाली विजय लक्ष्मी पंडित

विजय लक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ. वह मोतीलाल नेहरू और स्वरूपरानी थुस्सू की बेटी थीं. राजनीति में उनकी रुचि कम उम्र में ही शुरू हो गई . पंडित न केवल आज़ादी से पहले भारत में राजनीतिक पद संभालने वाली पहली महिला थी.

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मिस्बाह
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Image Credits: The Better India

सक्रिय राजनीतिक क्षेत्र में अभी भी पुरुषों का वर्चस्व है. बहुत कम महिलाएं अपने कौशल से राजनीतिक जगत (politics) में अपनी जगह बना पाई हैं. इन्हीं में से एक हैं विजय लक्ष्मी पंडित (Vijaya Lakshmi Pandit). प्रसिद्ध नेहरू परिवार (Nehru family) की सदस्य होने के बावजूद, विजय लक्ष्मी पंडित को राजनीतिक क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.  पंडित न केवल आज़ादी से पहले भारत में राजनीतिक पद संभालने वाली पहली महिला थी, बल्कि संयुक्त राष्ट्र जनरल काउन्सिल (First Women President of UN General Council) की अध्यक्ष बनने वाली भी पहली महिला थी. 

AIWC का हिस्सा बन विजय लक्ष्मी पंडित ने शुरू किया था राजनीतिक करियर 

विजय लक्ष्मी पंडित वह नाम था जिससे ब्रिटिश शासन कांपता था.अमेरिका (America) जाने के लिए विजय लक्ष्मी पंडित के 1944 के पासपोर्ट (passport) आवेदन ने ब्रिटिश अधिकारियों के लिए एक दुविधा पैदा कर दी. जानी-मानी एंटी-कोलोनियल एक्टिविस्ट (anti-colonial activist) विजय लक्ष्मी के इंडिया से बाहर जाने पर डर था कि वह  ब्रिटिश शासन के खिलाफ इंटरनेशनल लेवल पर प्रचार करेंगी. और अगर उन्हें जाने की अनुमति न दी जाये तो हिरासत में हुई उनके पति की मृत्यु की बात उजागर हो जाएगी.

विजय लक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ. वह मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) और स्वरूपरानी थुस्सू की बेटी थीं. राजनीति में उनकी रुचि कम उम्र में ही शुरू हो गई और उन्होंने 16 साल की उम्र में अपनी पहली राजनीतिक बैठक में भाग लिया. दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों के साथ व्यवहार के विरोध पर चर्चा करने के लिए राजनीतिक बैठक का आयोजन उनकी चचेरी बहन, रामेश्वरी नेहरू ने किया था. 30 के दशक की शुरुआत में, वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) में शामिल होकर उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया. 

संविधान की 15 महिला आर्कीटेक्ट्स में से एक थी विजय लक्ष्मी

जिस समय वह कोंस्टीटूएंट असेम्ब्ली (constituent assembly) का हिस्सा बनी, उस वक़्त 299 सदस्यों में से 15 महिलाएं थीं. संविधान की इन 15 महिला आर्कीटेक्ट्स  (women architects of the constitution) में वकील से लेकर स्वतंत्रता सेनानी (freedom fighter) और राजनेता तक शामिल थीं. महिलाओं के रूप में उनके अनुभवों ने संविधान में कुछ हद तक समानता सुनिश्चित की. उनके भाषणों में अल्पसंख्यक अधिकार, आरक्षण, महिला आरक्षण, धार्मिक शिक्षा और स्कूली शिक्षा जैसे विषय शामिल थे. 

पहली मुलाकात के दौरान चर्चिल (Churchill) ने विजय लक्ष्मी पंडित से कहा, “क्योंकि मैंने आपको स्वीकार कर लिया है, इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाओं के बारे में मेरे विचार बदल गए हैं. मैं नहीं चाहता कि आप महिलाओं के दिमाग में विचार डालें." 

विजय लक्ष्मी पंडित महिला सशक्तिकरण (women empowerment) की एक मिसाल हैं. उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति (International politics) में आने वाली महिलाओं की पीढ़ी को रास्ता दिखाया. लक्ष्मी पंडित अपने मज़बूत नज़रिये, कड़ी मेहनत और विनम्र व्यवहार के लिए आज भी लोकप्रिय हैं. 

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