आज़ादी की जंग में क्रांतिकारी रंग भरती वीरांगनाएं

इन क्रांतिकारी महिलाओं ने कई आंदोलनों को सफ़ल बनाया और देश को आज़ाद करवाने में अहम भूमिका निभाई. इन महिलाओं ने न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई, पर महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज़ बुलंद की.

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मिस्बाह
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female freedom fighters

Image Credits: Ravivar Vichar

भारतीय इतिहास के पन्ने उन वीरों के नाम से भरे हुए हैं, जिन्होंने तिरंगे की शान बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगादी. इन पन्नों में उन वीरांगनाओं के नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने घर और समाज की पाबंदियों को तोड़,आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया (female freedom fighters). इन क्रांतिकारी महिलाओं ने कई आंदोलनों को सफ़ल बनाया और देश को आज़ाद करवाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन, ऐसी कितनी ही क्रांतिकारी महिलाएं हैं, जिन्हें हम जानते हैं? इन महिलाओं ने न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम (women in India's freedom struggle) में अहम भूमिका निभाई, पर महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज़ बुलंद की. ऐसी ही कुछ बहादुर महिलाओं के बारे में जानते हैं.

मणिबेन पटेल

मणिबेन (Maniben Patel) अंग्रेजी में बात करती थीं, फ्रेंच भाषा उनके विषयों में शामिल थी. यह लगभग तय था कि स्कूल की पढ़ाई के बाद वह इंग्लैंड पढ़ने जाएंगी. लेकिन, अपने पिता सरदार वल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी से प्रभावित होकर, मणिबेन ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए गुजरात विद्यापीठ से अपनी पढ़ाई जारी राखी. मणिबेन अपने पिता और गांधी (Mahatma Gandhi) की राह पर आगे बढ़ी और देश सेवा में लग गयी. उन्होंने नमक सत्याग्रह (Satyagrah) और असहयोग आंदोलन में भाग लिया. इस दौरान कई वह कई बार जेल गयी. देश की स्वतंत्रता के प्रति वह इतनी समर्पित थीं कि उन्होंने कभी शादी नहीं की. आज़ादी के बाद सामाजिक संगठनों से जुड़ उन्होंने समाज सेवा में अपना जीवन गुज़ार दिया. 

बसंतलता हज़ारिका 

असम (Asssam) की बसंतलता हज़ारिका (Basantlata Hazarika) ने स्वर्णलता बरुआ और राजकुमारी मोहिनी गोहैन के साथ महिलाओं की एक विंग, ‘बाहिनी’ शुरू की. महिलाओं की ये बाहिनी ब्रिटिश सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ मोर्चे निकालती. शराब की दुकानों और अफीम उगाने के ख़िलाफ़ इस नारी सेना ने इतने मोर्चे निकाले कि ब्रिटिश सरकार को परेशान कर दिया. कॉलेज के छात्र-छात्राएं इस आंदोलनों से जुड़ने लगे. अंग्रेजी शासन ने छात्रों को डराने के लिए ऑर्डर दिया कि ‘बाहिनी’ से जुड़ने वाले छात्रों को कॉलेज से निकाल दिया जाएगा. बसंतलता और उनकी साथियों ने कॉलेज के बाहर धरना देना शुरू किया. कॉलेज बंद कर दिया गया, पर महिलाओं का आंदोलन जारी रहा.

हबीबा

हबीबा (Habiba) वह महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने 1857 के विद्रोह में ब्रिटिश शासन को चुनौती दी थी. वह एक मुस्लिम गुज्जर परिवार से थीं और उन्होंने मुज़फ्फरनगर में अंग्रेजों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं. 25 साल की उम्र में उन्हें 11 दूसरी महिला योद्धाओं के साथ पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई.

कमलादेवी चटोपाध्याय

कमलादेवी (Kamladevi Chattopadhyay) ने महात्मा गांधी से औरतों सत्याग्रह में  शामिल करने की मांग की थी. उनके विचार गांधी या अंबेडकर से कम नहीं थे. कभी सत्याग्रह में हिस्सा लेने की लिए, तो कभी भारत छोड़ो आंदोलन में नारेबाजी करने की लिए, वह कई बार जेल गयी. 1928 में कमलादेवी को ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी में चुना गया.  1936 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की प्रेसिडेंट बन उन्होंने पार्टी की कमान संभाली. 1942 में वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की भी अध्यक्ष बनी. उन्होंने  मैटरनिटी लीव, महिलाओं की अनपेड लेबर जैसे मुद्दों पर जमकर आवाज़ उठाई.

भीकाजी कामा

आज़ादी से पहले जब भारत में ब्रिटेन का झंडा इस्तेमाल किया जाता था, उस वक़्त भीकाजी (Bhikaji Cama) विदेश में तिरंगा फहराने वाली पहली महिला थी. उन्होंने खुद उस तिरंगे को तैयार किया था. बीमारी की वजह से वह 33 साल भारत से दूर रहीं. आज़ादी का जुनून लिए उन्होंने यूरोप के कई देशों में भारत की आज़ादी के लिए नारे लगाए. पेरिस इंडियन सोसाइटी शुरू कर उसके ज़रिये क्रांतिकारी मैगज़ीन वंदे मातरम् छापी.

बीबी अमातुस सलाम

अपने बड़े भाई, स्वतंत्रता सेनानी मोहम्मद अब्दुर रशीद खान के नक्शेकदम चल उन्होंने देश के लोगों की सेवा करने का फैसला किया. अमातुस सलाम (Bibi Amatus Salam) ने खादी आंदोलन (Khadi andolan) में भाग लिया और अपने भाई के साथ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बैठकों में हिस्सा लिया. वह महात्मा गांधी और सेवाग्राम आश्रम के गांधीवादी तरीकों से प्रेरित थीं. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गांधीजी की अनुमति से अपनी बीमारी के बावजूद 1932 में वह अन्य महिलाओं के साथ जेल गईं. जेल से रिहा होने के बाद वह सेवाग्राम पहुंचीं और गांधीजी की निजी सहायक के रूप में जिम्मेदारियां संभालीं. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता हासिल करने के अलावा, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता, हरिजनों और महिलाओं का कल्याण उनके जीवन का लक्ष्य है.

रमा देवी 

रमा देवी (Rama Devi) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थीं. वह1921 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुईं. महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लिया. वह गांव-गांव जाकर महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करती थीं. वह कांग्रेस पार्टी के कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल थीं. उन्हें ओडिशा के लोग मां कहकर पुकारते थे.

हाजरा बेग़म

लंदन में उच्च शिक्षा के दौरान उनका परिचय ब्रिटिश विरोधी ताकतों से हुआ. हाजरा बेग़म (Hajra Begum) ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ब्रिटिश सरकार की बनाई नीतियों पर जमकर बोला. उन्होंने उन दिनों चुनाव अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसकी वजह से कई कांग्रेस नेता निर्वाचित हो सके. उन्होंने 1937 में आंध्र प्रदेश के कोट्टापट्टनम में एक गुप्त राजनीतिक कार्यशाला में हिस्सा लिया. बतौर लेक्चरर वर्कशॉप में अलग-अलग विषयों पर बात की. उन्होंने असंगठित श्रमिक क्षेत्र को संगठित करने में भी अहम भूमिका निभाई. 

कांता वज़ीर

श्रीनगर (Srinagar) में जन्मीं कांता वज़ीर ने महिला आत्मरक्षा कोर (WSDC) में शामिल हो गईं. जम्मू-कश्मीर में उन्होंने अपनी गरिमा की रक्षा के लिए महिलाओं को बन्दूक चलाना सिखाया. अपनी टीम के साथ, कांता वज़ीर (Kanta Wazir) ने भारतीय सेना और जमीनी स्तर के आंदोलनों में योगदान दिया. अपनी भूमि की रक्षा के लिए लोगों को संगठित किया. उन्होंने महिला मिलिशिया की मुक्ता बटालियन में योगदान देते हुए निशानेबाजी में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. उन्होंने विस्थापित लोगों को सहायता प्रदान की और हमले से बचे लोगों का समर्थन किया. 

सरोजिनी नायडू 

सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) की पहली महिला अध्यक्ष थी. भारत कोकिला नाम से मशहूर सरोजिनी ने समाज की कुरीतियों के खिलाफ़ महिलाओं को जागरूक किया और लगातार आज़ादी के आंदोलनों में हिस्सा लिया. जलियांवाला बाग हत्याकांड के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए उन्होंने अपना कैसर-ए-हिंद सम्मान लौटा दिया. आजादी के बाद सरोजिनी उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बनीं. 

इतिहास में महिला  स्वतंत्रता सेनानियों का वीरतापूर्ण योगदान समय से परे है, जो आज की महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन रहा है. सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हुए उन्होंने गलत की ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और बताया कि महिलाएं भी आंदोलनों (revolutionary Indian women) में अहम भूमिका निभा सकती हैं. सशक्तिकरण  का प्रतीक बन ये वीरांगनाएं महिलाओं को बाधाओं को तोड़ने, अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने और देश के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित कर रही हैं. 

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