जब भी हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं, तो हमारे मन में हरियाली, स्वच्छ जल और स्वच्छ वायु की छवि आती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस संरक्षण की सबसे बड़ी समर्थक कौन है? यह हमारी महिलाएं हैं, जो हमारे घरों, खेतों और जंगलों की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती हैं.
महिलाएं हमेशा से ही पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्ण कड़ी रही हैं. वे अपने परिवार के लिए जल, ईंधन और भोजन का प्रबंध करती हैं, जो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के साथ सीधा संबंध बनाता है. यह भूमिका ना केवल उनकी दैनिक ज़िम्मेदारियों में शामिल है, बल्कि उनकी पर्यावरण के प्रति जागरूकता और संरक्षण के प्रति समर्पण को भी दर्शाता है.
महिलाओं का Environment Safety में अदम्य योगदान
भारत में कई महिलाएं हैं जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण (Women in Environment Conservation) में अमूल्य योगदान दिया है. इन महिलाओं ने अपने असाधारण प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण को नई दिशाएं दिखाई हैं.
- जमुना टुडू (Jamuna Tudu)- करीब 25 साल पहले छह महिलाओं से जंगल बचाने की शुरुआत करने वाली जमुना टुडू ने आज छह हजार महिलाओं की एक बड़ी फ़ौज तैयार कर दी है, जो आज भी सुबह-शाम अपने आसपास के जंगलों की देखरेख करने जाती हैं. जब उन्होंने यह तय किया कि वे जंगलों को नहीं कटने देंगी. कभी इन्हें वन माफियाओं ने जान से मारने की धमकी दी तो कभी जानलेवा हमला किया, लेकिन जमुना ने आजतक अपने कर्त्तव्य से पीछे मुड़कर नहीं देखा.
- चामी मुर्मू (Chami Murmu)- Jharkhand की 'Lady Tarzan' के नाम से पहचान बनाने वाली Chami Murmu को 10वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. अपने गांव के लोगों को खाना पकाने के लिए जंगल के पेड़ काट लकड़ी जमा करते देख उन्हें ख़्याल आया कुछ ऐसा करने का जिससे लोगों की ज़रूरतें भी पूरी हो जाए और पर्यावरण को नुकसान भी ना हो. 36 साल के इस सफर के दौरान अबतक उन्होंने 500 गांव से जुड़कर 28 लाख से भी ज़्यादा पेड़ लगा दिए हैं. साल 2020 में मुर्मू और जमुना तुडू (Jamuna Tudu) ने साथ जुड़ झारखंड के वनों को बचाने का ऐलान किया. उन्होंने forces के साथ जुड़ नक्सलवाद और पेड़ों की गैरकानूनी कटाई को होने से रोका.
- सुनीता नारायण (Sunita Narayan)- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (Center for Science and Environment CSE) की निदेशक ने पर्यावरण संरक्षण और विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनकी नेतृत्व में, CSE ने जल संरक्षण, वायु प्रदूषण, और सतत कृषि जैसे मुद्दों पर गहन शोध और जनजागरण अभियान चलाए हैं. सुनीता नारायण ने पर्यावरणीय नीतियों और कानूनों के सुधार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने पर्यावरण जागरूकता बढ़ाने और सरकारी नीतियों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए लगातार प्रयास किए हैं.
- वंदना शिवा (Vandana Shiva)- एक प्रमुख पर्यावरणविद् और लेखिका, वंदना शिवा ने जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा, और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनके प्रयासों से जैविक खेती और परंपरागत बीज संरक्षण को बढ़ावा मिला है. वंदना शिवा ने 'नवधान्य' संगठन की स्थापना की, जो किसानों को जैविक खेती और बीज बचाने के लिए प्रेरित करता है. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं जो पर्यावरण संरक्षण और कृषि के मुद्दों पर केंद्रित हैं. उनके कार्यों ने विश्वभर में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाने और सतत विकास को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
- मेधा पाटकर (Medha Patkar)- नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता, मेधा पाटकर ने नर्मदा नदी पर बनने वाले बड़े बांधों के खिलाफ संघर्ष किया, जो हजारों लोगों को विस्थापित कर सकते थे. उनके नेतृत्व में आंदोलन ने आदिवासियों और किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जोर दिया. मेधा पाटकर ने सरकार और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने प्रभावित लोगों की समस्याओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया. उनके प्रयासों ने न केवल विस्थापितों के अधिकारों की रक्षा की, बल्कि विकास परियोजनाओं में मानवाधिकारों के महत्व को भी उजागर किया.
महिला नेतृत्व और सामुदायिक सहभागिता
महिलाओं ने ना केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामुदायिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. विभिन्न महिला संगठन, जैसे कि स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups), महिला समितियां, और छात्र संगठनों ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में व्यापक कदम उठाए हैं. इन संगठनों ने न केवल वृक्षारोपण और कचरा प्रबंधन जैसे कार्यों को प्रोत्साहित किया है, बल्कि लोगों में जागरूकता भी फैलाई है.
Chipko Andolan: महिला शक्ति का प्रतीक
1970 के दशक में उत्तराखंड में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसमें महिलाओं ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उन्हें गले लगाया. इस आंदोलन की मुख्य नेत्री गौरा देवी (Gaura Devi) थीं, जिन्होंने गांव की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर जंगलों की रक्षा की. यह आंदोलन न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गया.
महिलाओं का पर्यावरण संरक्षण में योगदान अमूल्य है. वे हमारे समाज की वह कड़ी हैं जो ना केवल अपने परिवार की, बल्कि पूरे पर्यावरण की देखभाल करती हैं. हमें इन महिलाओं के योगदान को सराहना चाहिए और उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. उनका समर्पण और निस्वार्थ भावना हम सभी को मिलकर पर्यावरण की रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य का आनंद ले सकें.