भारत में चुनाव (Elections 2024) सिर्फ चुनावी प्रक्रिया ना होकर लोकतंत्र का उत्सव है. लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों तक, हर कोई जीत हासिल करने के लिए कमर कस रहा है. 2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में महिला वोटर (Female Voters) इतने महत्वपूर्ण है की उनकी अनदेखी किसी भी राजनीतिक दल को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. इस सबके बावजूद महिला राजनेताओं (Indian Female Politicians) को बीते सालों की तरह, आज भी अपमानजनक टिप्पणियों और लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. चूंकि राजनीति (Politics) अब भी पुरुष-प्रधान है, इसलिए महिला नेताओं को अक्सर उनके पुरुष सहयोगियों से ऐसे हमलों का सामना करना पड़ता है.
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चुनावों से पहले तेज़ होते हमले
एक पुरुष नेता द्वारा महिला नेता के खिलाफ अभद्र टिप्पणी का सबसे ताजा मामला कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का है जिन्होंने भाजपा सांसद और उम्मीदवार हेमा मालिनी के बारे में कहा - '' लोग अपने विधायकों/सांसदों को क्यों चुनते है? ताकि वे (विधायक/सांसद) जनता की आवाज उठा सकें. यह हेमा मालिनी की तरह नहीं है, जिन्हें चाटने के लिए चुना गया था ''. उन्होंने यह भी कहा था कि - ' हेमा मालिनी का सम्मान इसलिए किया जाता है क्योंकि उन्होंने धर्मेंद्र जी से शादी की है और वह हमारी बहू है. इस तरह की टिप्पणी और भाषा के लिए चुनाव आयोग ने भी रणदीप सुरजेवाला को शोकॉज नोटिस जारी किया है.
2022 में, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर कांग्रेस नेता अजय राय ने यह कहकर हमला किया था कि - "वह (ईरानी) केवल लटके-झटके दिखाने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में आती है." पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी कई बार लैंगिक भेदभाव वाली टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है. हाल ही में भाजपा के दिलीप घोष ने उनके माता-पिता के बारे में सवाल उठाए थे. बिहार में, लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने "घूंघट के पीछे रहने" के लिए कहा था.
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भाजपा नेता विनय कटियार ने कथित तौर पर पूछा था कि क्या कांग्रेस नेता सोनिया गांधी राहुल गांधी को सबूत दे पाएंगी कि उनके पिता राजीव गांधी थे. कटियार ने प्रियंका गांधी पर भी निशाना साधते हुए कहा था कि "राजनीति में पहले से ही कई खूबसूरत स्टार प्रचारक मौजूद है."
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी 2016 में भाजपा के दयाशंकर सिंह द्वारा वेश्या से भी बदतर कहे जाने जैसी घिनौनी टिप्पणी का निशाना बनीं, जिन्होंने आरोप लगाया कि दलित नेता ने पैसे के बदले टिकट बेचे. ऐसे ही कांग्रेस के कर्नाटक विधायक शमनूर शिवशंकरप्पा ने भाजपा की गायत्री सिद्धेश्वरा के बारे में कहा था कि - "वह केवल खाना बनाने के लायक है." अभिनेता से नेता बनीं उर्मिला मातोंडकर लैंगिक टिप्पणी का निशाना बन गईं जब भाजपा के गोपाल शेट्टी ने कहा कि "उन्हें उनके लुक के कारण टिकट दिया गया है".
अगस्त 2019 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक रैली में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने उनकी पार्टी की पुरानी साथी और बाद में भाजपा में शामिल महिला नेत्री जयाप्रदा के लिए कहा, “मैं उन्हें (जया प्रदा) को रामपुर लाया. तुम गवाह हो कि मैंने किसी को उसके शरीर को छूने नहीं दिया. आपको उसका असली चेहरा पहचानने में 17 साल लग गए लेकिन मुझे 17 दिन में पता चल गया कि वह खाकी अंडरवियर पहनती है. "
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भाषा से प्रभावित होता देश और समाज
किसी महिला के शरीर पर टिप्पणी करके उसे नीचा दिखाना एक आम राजनीतिक और सामाजिक मानसिकता है. महिला नेताओं के प्रति का उपयोग की जाने वाली भाषा से केवल उनके व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इससे समाज में महिलाओं के प्रति सामाजिक और सांस्कृतिक सम्मान की कमी भी आती है. भारतीय राजनीतिक दलों में महिला नेताओं के प्रति अपमानजनक भाषा का उपयोग किसी भी विचारशीलता या राजनीतिक प्रतिष्ठा के लिए लाभदायक नहीं है. देश के लोकतंत्र में, राजनीतिक नेताओं को सार्वजनिक दृष्टिकोण से सम्मानित होना चाहिए, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं. लेकिन अपमानजनक टिप्पणियों के माध्यम से महिला नेताओं को निशाना बनाना न केवल उनके व्यक्तित्व की अपमान है, बल्कि यह लोकतंत्र को भी घातक रूप में प्रभावित करता है.
शिक्षा, सामाजिक व्यवस्था और जागरूकता की कमी के कारण पुरुष श्रेष्ठता (male superiority in politcs) की विकृत धारणा पैदा होती है. हमारे पास उदार राजनीतिक संरचना है लेकिन उदार समाज का विकास एक सतत प्रक्रिया है, जिसके पूर्ण होने में समय लगेगा.
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ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होए
2024 लोकसभा चुनाव में महिला वोटर इतने महत्वपूर्ण है कि उनकी अनदेखी किसी भी राजनीतिक दल को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. इस सबके बावजूद महिला राजनेताओं को बीते सालों की तरह, आज भी अपमानजनक टिप्पणियों और लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.
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भारत में चुनाव (Elections 2024) सिर्फ चुनावी प्रक्रिया ना होकर लोकतंत्र का उत्सव है. लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों तक, हर कोई जीत हासिल करने के लिए कमर कस रहा है. 2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में महिला वोटर (Female Voters) इतने महत्वपूर्ण है की उनकी अनदेखी किसी भी राजनीतिक दल को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. इस सबके बावजूद महिला राजनेताओं (Indian Female Politicians) को बीते सालों की तरह, आज भी अपमानजनक टिप्पणियों और लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. चूंकि राजनीति (Politics) अब भी पुरुष-प्रधान है, इसलिए महिला नेताओं को अक्सर उनके पुरुष सहयोगियों से ऐसे हमलों का सामना करना पड़ता है.
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चुनावों से पहले तेज़ होते हमले
एक पुरुष नेता द्वारा महिला नेता के खिलाफ अभद्र टिप्पणी का सबसे ताजा मामला कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का है जिन्होंने भाजपा सांसद और उम्मीदवार हेमा मालिनी के बारे में कहा - '' लोग अपने विधायकों/सांसदों को क्यों चुनते है? ताकि वे (विधायक/सांसद) जनता की आवाज उठा सकें. यह हेमा मालिनी की तरह नहीं है, जिन्हें चाटने के लिए चुना गया था ''. उन्होंने यह भी कहा था कि - ' हेमा मालिनी का सम्मान इसलिए किया जाता है क्योंकि उन्होंने धर्मेंद्र जी से शादी की है और वह हमारी बहू है. इस तरह की टिप्पणी और भाषा के लिए चुनाव आयोग ने भी रणदीप सुरजेवाला को शोकॉज नोटिस जारी किया है.
2022 में, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर कांग्रेस नेता अजय राय ने यह कहकर हमला किया था कि - "वह (ईरानी) केवल लटके-झटके दिखाने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में आती है." पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी कई बार लैंगिक भेदभाव वाली टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है. हाल ही में भाजपा के दिलीप घोष ने उनके माता-पिता के बारे में सवाल उठाए थे. बिहार में, लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने "घूंघट के पीछे रहने" के लिए कहा था.
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भाजपा नेता विनय कटियार ने कथित तौर पर पूछा था कि क्या कांग्रेस नेता सोनिया गांधी राहुल गांधी को सबूत दे पाएंगी कि उनके पिता राजीव गांधी थे. कटियार ने प्रियंका गांधी पर भी निशाना साधते हुए कहा था कि "राजनीति में पहले से ही कई खूबसूरत स्टार प्रचारक मौजूद है."
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी 2016 में भाजपा के दयाशंकर सिंह द्वारा वेश्या से भी बदतर कहे जाने जैसी घिनौनी टिप्पणी का निशाना बनीं, जिन्होंने आरोप लगाया कि दलित नेता ने पैसे के बदले टिकट बेचे. ऐसे ही कांग्रेस के कर्नाटक विधायक शमनूर शिवशंकरप्पा ने भाजपा की गायत्री सिद्धेश्वरा के बारे में कहा था कि - "वह केवल खाना बनाने के लायक है." अभिनेता से नेता बनीं उर्मिला मातोंडकर लैंगिक टिप्पणी का निशाना बन गईं जब भाजपा के गोपाल शेट्टी ने कहा कि "उन्हें उनके लुक के कारण टिकट दिया गया है".
अगस्त 2019 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक रैली में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने उनकी पार्टी की पुरानी साथी और बाद में भाजपा में शामिल महिला नेत्री जयाप्रदा के लिए कहा, “मैं उन्हें (जया प्रदा) को रामपुर लाया. तुम गवाह हो कि मैंने किसी को उसके शरीर को छूने नहीं दिया. आपको उसका असली चेहरा पहचानने में 17 साल लग गए लेकिन मुझे 17 दिन में पता चल गया कि वह खाकी अंडरवियर पहनती है. "
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किसी महिला के शरीर पर टिप्पणी करके उसे नीचा दिखाना एक आम राजनीतिक और सामाजिक मानसिकता है. महिला नेताओं के प्रति का उपयोग की जाने वाली भाषा से केवल उनके व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इससे समाज में महिलाओं के प्रति सामाजिक और सांस्कृतिक सम्मान की कमी भी आती है. भारतीय राजनीतिक दलों में महिला नेताओं के प्रति अपमानजनक भाषा का उपयोग किसी भी विचारशीलता या राजनीतिक प्रतिष्ठा के लिए लाभदायक नहीं है. देश के लोकतंत्र में, राजनीतिक नेताओं को सार्वजनिक दृष्टिकोण से सम्मानित होना चाहिए, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं. लेकिन अपमानजनक टिप्पणियों के माध्यम से महिला नेताओं को निशाना बनाना न केवल उनके व्यक्तित्व की अपमान है, बल्कि यह लोकतंत्र को भी घातक रूप में प्रभावित करता है.
शिक्षा, सामाजिक व्यवस्था और जागरूकता की कमी के कारण पुरुष श्रेष्ठता (male superiority in politcs) की विकृत धारणा पैदा होती है. हमारे पास उदार राजनीतिक संरचना है लेकिन उदार समाज का विकास एक सतत प्रक्रिया है, जिसके पूर्ण होने में समय लगेगा.
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