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अहिल्या बाई होल्कर की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में प्रिंस होलकर व अहिल्या बाई के रूप में बालिका (Image Credits: Ravivar)
1700 वीं ईस्वीं में जब सती प्रथा जैसी कुरुति थी. पर्दा प्रथा और महिलाओं पर दमन की घटनाएं आम थीं, उस दौर में इंदौर (Indore) और मालवा (Malwa) में होल्कर (Holkar) घराने की अहिल्या बाई ने अपने शासनकाल में महिलाओं के सम्मान और उत्थान के लिए वह कर दिखाया जिससे वह अहिल्या बाई (Ahilya Bai Holkar) से लोकमाता बन गई.यही कारण है कि 300 साल बाद भी देवी अहिल्या बाई को पूरी श्रद्धा के साथ याद किया जाता है.इंदौर,खरगोन और महेश्वर में खास आयोजन होते हैं.यहां तक कि मध्य प्रदेश सरकार की केबिनेट भी हाल ही में इंदौर के राजवाड़ा परिसर में आयोजित हुई. इसके पहले भी महेश्वर मुख्यालय पर भी केबिनेट की बैठक कर यह दर्शाया गया कि हमारे इतिहास में निष्पक्ष और जरूरतमंदों की मदद के लिए सदैव अहिल्या बाई तैयार रहती थीं.उसी सिद्धांत में सरकार की सोच निहित है.
महिलाओं के सपने में भरे रंग
इंदौर (Indore) मुख्यालय होने के बावजूद शिवभक्त अहिल्या बाई(Ahilya Bai) ने नर्मदा (Narmda) किनारे महेश्वर (Maheshvar) को अपनी राजधानी बनाया. अहिल्या बाई (Ahilya Bai) ने इलाके में रोजगार देने खासकर महिलाओं को आगे बढ़ाने के मकसद से गुजरात से कुछ बुनकर परिवारों को यहां लाकर बसाया. सूती धागे से तैयार साड़ियों को विशेष तरह से बुनकर तैयार करने में जुट गए. धीरे-धीरे स्थानीय लोगों को काम मिलने लगा. महिलाएं भी इस काम में जुट गईं. अहिल्या बाई (Ahilya Bai) की यही दूर दृष्टि और महिलाओं सशक्तिकरण (Women Empowerment) की पहली शुरुआत थी. अहिल्या बाई (Ahilya Bai) ने तीन सौ साल पहले उनके सपनों में रंग भरे.
महिला बुनकर बना रही आधुनिक साड़ियां
समय के साथ महेश्वर (Maheshvar) में बुनकरों की संख्या बढ़ती चली गई. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के तहत स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) के गठन और सदस्यों ने भी इस इलाके में महेश्वरी साड़ियों को बनाने का काम अपनाया. मिशन के DPM Govind Mandloi बताते हैं- "महेश्वर ब्लॉक में इस समय 13 सौ समूह काम कर रहे. इसमें ढाई सौ परिवार परिवार साड़ियां को तैयार कर रहे. यही उनकी आजीविका का साधन बन गया."
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महेश्वर (Maheshvar) के ही हेंडलूम (Handloom) और आश्रय साड़ी शो रूम के संचालक अखिलेश केशवरे बताते हैं- "यहां कई पीढ़ियां बदल गई, लेकिन लोकमाता का नाम आज भी आस्था के साथ लिया जाता है. नगर और आसपास लगभग पांच हजार बुनकर साड़ियां निर्माण में जुटे हुए हैं. यह देवी अहिल्या बाई की देन है."
8 हजार लूम और पांच हजार बुनकर
देवी अहिल्या बाई होल्कर(Ahilya Bai Holkar) ने जो नींव रखी उसका विस्तार देश की सीमा से बाहर विदेशों तक पहुंच गया. आशीष केशवरे कहते हैं- "नगर में इस समय आठ हजार से ज्यादा हैंडलूम हैं और पांच हजार से ज्यादा बुनकर काम कर रहे.हमें ख़ुशी है कि नगर में बुनकरों को बड़ा रोजगार मिल रहा."
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हेंडलूम पर साड़ी बनाने वाली पूजा पंवार कहती हैं- " मेरे परिवार के कई सदस्य इस बुनकर और साड़ी बनाने में जुटे हुए हैं. ज़िंदगी में आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई.हम साड़ियां और दूसरे कपड़े भी डिमांड पर बनाते हैं."
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देश विदेश की एक्सिबिशन में महेश्वरी साड़ियों का दबदबा बना हुआ है. इन Maheshvari Sarees की खासियत में किले के कंगूरे और संस्कृति को उकेरा जाता है. 800 रुपए से लगा कर 8 हजार रुपए तक की कॉटन और सिल्क की साड़ियां तैयार की जा रहीं हैं.
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तीन सौ साल बाद भी महेश्वर(Maheshvar) की कारीगरी बनी हुई है. Khargone कलेक्टर भव्या मित्तल कहती हैं- "महेश्वर में बुनकर बेहद मेहनती हैं. लगातार जिला प्रशासन ट्रेनिंग, नए पैटर्न की डिज़ाइन और प्रशासन ऐसे बुनकरों को प्रोत्साहन दे रहा. यही वजह कारोबार लगातार निखार रहा है. Self Help Group की महिलाओं को नई पहचान मिली.इसके अलावा नगर में निजी हेंडलूम और शो रूम महेश्वर आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है.हमारा प्रयास हैं मां अहिल्या बाई की इस पहचान को और सशक्त बनाएं."